285 साल पहले भी रथयात्रा एक बार रोकी गई थी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कोराेना के बीच यात्रा निकली तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे

Posted By: Himmat Jaithwar
6/18/2020

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा के पुरी में 23 जून से शुरू होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पर गुरुवार को रोक लगा दी। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा- अगर कोरोना के बीच हमने इस साल रथयात्रा की इजाजत दी तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब महामारी फैली हो, तो ऐसी यात्रा की इजाजत नहीं दी जा सकती, जिसमें बड़ी तादाद में भीड़ आती हो। लोगों की सेहत और उनकी हिफाजत के लिए इस साल यात्रा नहीं होनी चाहिए। चीफ जस्टिस की बेंच ने ओडिशा सरकार से कहा कि इस साल राज्य में कहीं भी रथयात्रा से जुड़े जुलूस या कार्यक्रमों की इजाजत न दी जाए।

पिछली बार मुगलों ने यात्रा रोकी थी

285 साल में यह दूसरा मौका है, जब रथ यात्रा रोकी गई है। पिछली बार मुगलों के दौर में यात्रा रोकी गई थी। इस बार रथयात्रा पर पहले से असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। इस बीच, भुवनेश्वर के एनजीओ ओडिशा विकास परिषद ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर कर कहा था कि रथयात्रा से कोरोना फैलने का खतरा रहेगा। अगर लोगों की सेहत को ध्यान में रखकर कोर्ट दीपावली पर पटाखे जलाने पर रोक लगा सकता है तो रथयात्रा पर रोक क्यों नहीं लगाई जा सकती?

मंदिर समिति की कल मीटिंग

श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देब का कहना है कि महाप्रभु जगन्नाथजी के दुनियाभर में मौजूद भक्त सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निराश हैं, लेकिन फैसला मानना जरूरी है। मंदिर प्रबंधन समिति कल इस मसले पर मीटिंग करेगी। इसके बाद समिति सदस्य पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती से भी इस बारे में चर्चा करेंगे। 

फोटो गुरुवार की है। पुरी में मंदिर बनाने का काम आखिरी दौर में था। अब मंदिर प्रशासन के सूत्रों ने भास्कर को बताया है कि बीच का रास्ता निकालने की कोशिश रहेगी। इस बारे में कल मीटिंग होगी।

बिना श्रद्धालुओं के रथयात्रा निकालने का फैसला हुआ था

मंदिर समिति ने पहले रथयात्रा को बिना श्रद्धालुओं के निकालने का फैसला लिया था। रथ बनाने का काम भी तेज रफ्तार से चल रहा था। मंदिर समिति ने रथ खींचने के लिए कई विकल्पों को सामने रखा था। पुलिसकर्मियों, मशीनों या हाथियों से रथ को गुंडिचा मंदिर तक ले जाने पर विचार किया जा रहा था। मंदिर समिति के सदस्य और पुजारी पंडित श्याम महापात्रा ने भास्कर को बताया था कि चैनलों पर लाइव प्रसारण करके चुनिंदा लोगों के साथ रथयात्रा निकाली जा सकती है।

रथों के शिखर भी बनकर तैयार हो चुके हैं। मंदिर समिति ने इस बार तय किया था कि रथों पर भी चुनिंदा पुजारियों को ही बैठने दिया जाएगा।

1568 से 1735 के बीच कई बार रथयात्रा रद्द हुई, मूर्तियों की जगह भी बदली

  • 1568: मंदिर पर बंगाल के राजा सुलेमान किरानी के सेनापति काला पहाड़ के हमले के बाद 1568 से 1577 तक 9 साल तक रथयात्रा नहीं हुई थी।
  • 1601: बंगाल के नवाब के एक कमांडर मिर्जा खुरम ने मंदिर पर हमला किया। मूर्तियों की जगह बदले जाने से रथ यात्रा नहीं हुई।
  • 1607: ओडिशा के मुगल सूबेदार कासिम खान ने मंदिर पर हमला किया। इस वजह से उस साल रथयात्रा नहीं हुई।
  • 1611: अकबर के दरबारी टोडरमल के बेटे कल्याणमल की वजह से रथयात्रा नहीं हुई थी। वह ओडिशा का सूबेदार बन गया था। अकबर के कहने पर उसने मंदिर पर हमला कर दिया था।
  • 1617: कल्याणमल ने दूसरी बार मंदिर पर हमला किया। इस वजह से यात्रा नहीं हो सकी। 
  • 1621: मंदिर में मुस्लिम सूबेदार अहमद बेग ने हमला किया। मूर्तियों की जगह बदलने से 2 साल रथयात्रा नहीं हुई।
  • 1692: ओडिशा में मुगल कमांडर इकराम खान ने मंदिर पर हमला किया। हमले की वजह से मूर्तियां 1707 तक अलग-अलग जगहों पर रहीं। इस वजह से रथयात्रा नहीं की जा सकी। 
  • 1731: ओडिशा के नायब नाजिम (उप राज्यपाल) मोहम्मद तकी खान ने मंदिर पर हमला किया और यात्रा रद्द हुई।
  • 1733: तकी खान ने दूसरी बार जगन्नाथ मंदिर पर हमला किया। इस वजह से 1733 से 1735 तक 3 साल रथ यात्रा नहीं हुई।



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