नई दिल्ली. भारत और चीन के बीच एक बार फिर तनाव की स्थिति बन गई है। इसका असर शेयर बाजार से लेकर देश की अर्थव्यवस्था पर साफ दिख रहा है। 1962 में भी भारत और चीन के बीच युद्ध की वजह से ऐसे हालत बने थे। तब शेयर बाजार में 16 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
वित्तीय संस्थानों ने पैसे की जरूरत को पूरा करने के लिए ज्यादा उधार लिया था। विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने के लिए सरकार ने नियंत्रण शुरू किया था, जिसके तीन हफ्ते में सोने की कीमतें 30 प्रतिशत तक गिर गईं थीं।
जून 1963 को समाप्त हुए साल में बाजार 16% गिर गया था
जून 1963 को समाप्त साल के लिए आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि 1958 में शेयर बाजारों में तेजी देखी गई थी, लेकिन 1962 में लड़खड़ा गई थी। एसएंडपी बीएसई सेंसेक्स के 17 साल पहले स्टॉक परफॉर्मेंस को मापने वाले इंडेक्स में जुलाई से दिसंबर 1962 के बीच 8.2 फीसदी की गिरावट आई थी। जून 1963 को खत्म हुए साल में यह 16 प्रतिशत गिर गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में ऐसे हालात की वजह भारत और चीन की जंग थी।
दिसंबर 1961 में शुरू की गई समान मार्जिन प्रणाली पर्याप्त नहीं थी। प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज पर होने वाला व्यापार अस्थायी रुप से बंद होने से संकट ऊंचाई पर पहुंच गया था। जिसके बाद सरकार ने 29 नवंबर, 1962 को प्रभावी स्टॉक एक्सचेंजों पर फॉरवर्ड ट्रेडिंग को स्थगित करने का आदेश दिया था। जब दबाव कम हुआ तब प्रतिबंध धीरे-धीरे हटा लिया गया। जून 1963 में फॉरवर्ड ट्रेडिंग फिर से शुरू हो गई थी।
सरकार ने सोने के कारोबार पर प्रतिबंध लगाया
आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, उन दिनों कर्ज अधिक आसानी से उपलब्ध कराया जा रहा था, क्योंकि इक्विटी पूंजी को टैप करना मुश्किल हो गया था। 1962-63 में दिए गए कर्ज के प्रतिशत के रूप में डिस्बर्समेंट 67 प्रतिशत हो गया था, जो उसके पिछले वर्ष में 47 प्रतिशत था।
भुगतान के संतुलन पर सरकार को भी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। उसने विदेशी मुद्रा भंडार के संरक्षण के लिए कदम उठाए और सोने के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को विनियमित करना शुरू किया था। नवंबर 1962 में सोने के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। तब सरकार ने सोने के बॉन्ड पेश किए थे।
सोन की कीमत गिरकर 82 रुपए प्रति 10 ग्राम हो गई
सरकार के इन कदमों से सोने की कीमतें अस्थिर हो गई थीं। नवंबर 1962 में 10 ग्राम सोने की कीमत 121.65 रुपए के उच्च स्तर को छू लिया। 24 नवंबर, 1962 को यह गिरकर 86 रुपए पर आ गई। जून 1963 तक यह 112 रुपए पर थी।
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई वी रेड्डी ने 28 नवंबर, 1996 को नई दिल्ली में वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल द्वारा आयोजित गोल्ड इकोनॉमिक कॉन्फ्रेंस में एक भाषण में कहा था कि कैसे उन दिनों में भी परिवारों से सोना जमा करने की अपील की गई थी।
उन्होंने कहा था, "सरकार द्वारा सोने के बॉन्ड लाकर जनता को सोने की खरीद से रोकना था और उस पर अपनी पकड़ मजबूत करनी थी। आरबीआई ने कमर्शियल बैंकों को सलाह दी कि वे सोने की सुरक्षा के एवज में दिए गए कर्ज को वापस लेने पर विचार करें।"