अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सामने अमेरिका में बढ़ते कोरोना के मामलों को रोकने, अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत होने के बाद भड़के प्रदर्शनों से निपटने और इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए रणनीति तय करने की चुनौती है। वहीं, वुहान से निकलकर दुनियाभर में फैले कोरोनावायरस की वजह से राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने चीन की इमेज सुधारने की चुनौती है।
ट्रम्प अपने घर में ही मुश्किलों से जूझ रहे
ट्रम्प के लिए 2020 का अब तक का वक्त कई बड़ी घटनाओं से भरा रहा है। इस साल अमेरिका ने आईएसआईएस का सफाया किया। सीरिया में रूस के दखल को रोका। ईरान को बैकफुट पर कर दिया। बहरहाल, ट्रम्प अपने ही घर में अमेरिका फर्स्ट की पॉलिसी पर अमल नहीं करा सके। अब कोरोना और जॉर्ज फ्लॉयड केस की वजह से ट्रम्प के लिए चुनाव जीतने की राह आसान नहीं है।
ट्रम्प पहले कोरोना को महामारी मानने को तैयार नहीं थे
जनवरी में ट्रम्प ने कोरोना को महामारी मानने से ही इनकार कर दिया था। कोविड-19 को मामूली वायरस बताया था। तब वे मास्क पहनने का विरोध कर रहे थे। कीटनाशक दवाई से इंजेक्शन बनाने जैसी बातें कर रहे थे। इस वजह से पूरी दुनिया में उनका मजाक उड़ा था।
फिर ट्रम्प ने स्ट्रैटजी बदली
राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपनी स्ट्रैटजी में अब बदलाव किया है। अमेरिका में आक्रामक सोच रखने वाले समूहों का सपोर्ट बनाए रखने के लिए ट्रम्प MAGA यानी मेक अमेरिका ग्रेट अगेन को ही अपने इलेक्शन कैम्पेन का नारा बना रहे हैं। वे अमेरिका को इंटरनेशनल लेवल पर मिली कामयाबी का मुद्दा उठा रहे हैं। वे चाइना कार्ड खेल रहे हैं। उनका कहना है कि चीन उन्हें हराने की साजिश रच रहा है।
ट्रम्प की पहली रैली 19 जून
ट्रम्प ओकलाहोमा में 19 जून को अपनी पहली रैली करेंगे। यह ट्रम्प का गढ़ माना जाता है। ट्रम्प ने जेसन मिलर को अपने कैम्पेन का चीफ एडवाइजर बनाया है। मिलर डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन और उनके बेटे हन्टर बिडेन के चीन के साथ रिश्तों को उजागर करने वालों में शामिल रहे हैं।
ट्रम्प के लिए हालात मुश्किल हैं। सितंबर तक भी कोरोना खत्म नहीं होगा। 3 नवंबर से इलेक्शन प्रोसेस शुरू होगी। उनके सामने खतरा यह है कि उनके विरोधी ज्यादा ताकतवर तरीके से वोटिंग कर सकते हैं।
दुनिया का नेता बनने की जिनपिंग की ख्वाहिश पर ब्रेक लगा
67 साल के हो रहे जिनपिंग माओ जेडोंग और चाउ एन लाई के बाद सबसे असरदार नेता माने जाते हैं। चीन की पॉलिसी का पहला हिस्सा साम्राज्यवाद था। दूसरा- मैन्यूफैक्चरिंग और तीसरा- ग्लोबल मार्केट पर कब्जा करना। इसकी जिम्मेदारी अब जिनपिंग पर है। कोरोना ने चीन की इमेज खराब की, लेकिन जिनपिंग अब इसे सुधारना चाहते हैं।
दुनिया के सामने चीन अच्छा बन रहा
चीन का भारत के साथ सीमा विवाद है, लेकिन वह भारतीय बाजार में सालाना 80 हजार करोड़ रुपए का सामान बेचता है। जब वह सीमा पर तनाव पैदा करता है तो भारत में उसके विरोध के सुर उठते हैं। नेपाल और पाकिस्तान को उकसाने में उसकी भूमिका पर भी सवाल उठते हैं, लेकिन वह दुनिया के सामने अच्छा बने रहना चाहता है।
यूरोप के देश सामानों के लिए अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर चीन पर निर्भर हैं। कोरोना को नहीं रोक पाने में चीन की नाकामी के बाद यूरोप में भी उसके प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। जर्मनी और फ्रांस भी इस मोेर्चे पर चीन के खिलाफ और अमेरिका के साथ खड़े हैं।
ट्रेड वॉर से लेकर वर्ल्ड डिप्लोमेसी में चीन का अमेरिका से टकराव है। इस वजह से चीन ने दो साल में 165 तरह की मैन्यूफैक्चरिंग में 70 करोड़ डॉलर का बिजनेस खोया है।
जिनपिंग की नई नीति कैसी होगी?
सीरिया विवाद में चीन का रवैया नर्म करने में कामयाब रहा। इससे दुनिया में उसकी तारीफ हुई। हो सकता है कि अब चीन भारत के साथ सीमा विवाद कम कर दे और पाकिस्तान के आतंकी एजेंडे का यूएन में समर्थन करना रोक दे।
यूरोप और भारत के बाजार में हुए नुकसान की भरपाई के लिए चीन अब अफ्रीकी देशों पर फोकस कर सकता है। जॉन हॉपकिंस स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के मुताबिक, पिछले 5 साल में चीन ने अफ्रीकी देशों के साथ बिजनेस 120 अरब डॉलर से बढ़ाकर 185 अरब डॉलर कर दिया है।