व्यक्ति का प्रेरणा स्रोत कुछ भी हो सकता है। किसी को अपने परिवार से पढ़ने की प्रेरणा मिलती है तो किसी को अपने दोस्तों से आगे बढ़ने की। कोई किसी लड़की के प्यार में पड़कर सफल हो जाता है तो कोई किसी की नफरत के कारण टॉप पर पहुंच जाता है। यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है। आईआईटी रुड़की का सॉफ्टवेयर इंजीनियर जो अपनी लाइफ की सक्सेस स्टोरी शुरू करने वाला था कि तभी अचानक पुलिस वालों ने उसके पिता को इस कदर बेइज्जत किया कि उसके गुस्से में आकर लड़का भारतीय पुलिस सेवा का अधिकारी बन गया। उसने अपने गुस्से को टॉप पर पहुंचने के लिए प्रेरणा बनाया।
फर्स्ट अटेम्प्ट में IIT एंट्रेंस एग्जाम क्रैक कर दिखाया
यह कहानी उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अफसर नवनीत सिकेरा की है। जिन्हें लोग एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के नाम से भी जानते हैं। सोशल मीडिया पर लोग इन्हें सम्मान के साथ सुपर कॉप कहते हैं। इनकी छोटी सी प्रोफेशनल लाइफ पर एक वेब सीरीज 'भोकाल' बनाई जा चुकी है। नवनीत ने एटा जिले के आल बॉयज स्कूल से हाई स्कूल पास किया जिसके बाद वह दिल्ली के हंसराज कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचे लेकिन कॉलेज में उनको अंग्रेजी ना आने के कारण एडमिशन फॉर्म नहीं दिया गया। फार्म ना मिलने पर उन्होंने हार नहीं मानी और खुद से किताबें खरीद कर पढ़ाई की। अपनी मेहनत-लगन से उन्होंने एक ही बार में आईआईटी जैसा एग्जाम क्रैक कर दिखाया और आईआईटी रूड़की से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन पूरी की।
IIT रुड़की का सॉफ्टवेयर इंजीनियर IPS क्यों बना
अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर नवनीत ने आईआईटी दिल्ली में MTech में एडमिशन लिया। हालांकि उनके पिता के साथ हुए एक हादसे ने उन्हें पुलिस सेवा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। नवनीत बताते हैं कि उनके पिता को कुछ धमकी भरे फोन आ रहे थे। उनके पिता इसकी शिकायत करने थाने पहुंचे, लेकिन पुलिस ने कार्यवाही ना कर उनके पिता को ही बेइज़्जत कर पुलिस स्टेशन से निकाल दिया। इस घटना का नवनीत पर काफी प्रभाव पड़ा और उन्होंने MTech की पढ़ाई छोड़ कर सिविल सेवा की परीक्षा के लिए तैयारी करने का निर्णय लिया।
पहले ही एटेम्पट में UPSC क्लियर, IAS बन सकते थे लेकिन IPS चुना
नवनीत ने बिना किसी कोचिंग का सहारा लिए खुद की मेहनत और लगन से पहले ही एटेम्पट में सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली थी। उनकी रैंक इतनी अच्छी थी की उन्हें आसानी से IAS की पोस्ट मिल सकती थी। लेकिन उन्होंने IPS बनने का सपना देखा था और उसी को चुना। वह 32 वर्ष की उम्र में लखनऊ के सबसे युवा SSP बनें।