बीकानेर. पीबीएम पीडिएट्रिक हाॅस्पिटल में पहुंची पांच वर्षीय बच्ची के गले में दिक्कत और श्वांस लेने में तकलीफ की बात सुनकर काेराेनाकाल में एकबारगी डाक्टर चाैंके लेकिन जब उन्हें पता चला कि बच्ची ने कुछ निगल लिया है ताे इसे ईएनटी हाॅस्पिटल भेज दिया। ईएनटी हाॅस्पिटल में औसतन साल में दाे साै ऐसे बच्चे आते हैं जिनके गले में कुछ फंस जाता है। डाक्टर एंडाेस्काेप से 10 मिनट में निकाल घर भेज देते हैं।
इस मामले में भी डाक्टर्स ने एक्सरे में देखा कि विंड पाइप से आगे लेफ्ट ब्राेंकस में एक पत्थरनुमा चीज है। इसे निकालने के प्रयास शुरू हुए लेकिन एक-दाे नहीं कई बार काेशिश के बाद भी असफलता हाथ लगी। वजह, नगीने जैसा यह पत्थर इतनी चिकनी सतह का था कि विंड पाइप तक लाते-लाते छूट जाता।
औजाराें से पकड़ में ही नहीं आ रहा था। ऐसे में आनन-फानन में पूरी टीम जुटाकर सर्जरी की तैयारी करनी पड़ी। ईएनटी के प्राेफेसर-एचओडी डा.दीपचंद, डा.गाैरव गुप्ता काे घर से बुलाया गया। साथ र्एनटी-एनस्थीसिया के 10 डाक्टर, नर्सेज, ओटी स्टाफ आदि की टीम बनी।
दाे घंटे मशक्कत के बाद पत्थर निकालने में सफलता मिली लेकिन इसके लिए ट्रेकियाेस्टाेमी के जरिये गले में छेद करना पड़ा। ऑपरेशन सफल हाेने के बाद जहां बच्ची की जान बचाने की खुशी डाक्टर्स के चेहरे पर दिखी वहीं इस आपरेशन काे लेकर भी चर्चा हुई। डाक्टर्स ने माना ऐसे केस सालाें में कभी-कभार ही हाेते हैं। बच्ची काे अब पीडिएट्रिक हाॅस्पिटल में शिफ्ट किया गया है। एक-दाे दिन में छुट्टी दी जाएगी।
कैसा ऑपरेशन, क्या किया
विंड पाइप यानी श्वास नली से हाेते हुए यह पत्थर आगे दाे फेफड़ाें की तरफ जाने वाले दाे भागाें में विभक्त हाेता है जिन्हें ब्राेंकस कहते हैं। यह पत्थर लेफ्ट ब्राेंकस में फंसा था। ऊपर लाने के दाैरान छाेटी जगह पर फंसकर फिर नीचे गिर जाता।
ऐसे में 34 साल से ऐसे आपरेशन कर रहे प्राेफेसर दीपचंद ने ट्रेकियाेस्टाेमी करने का निर्णय लिया। टीम जुटाई। ट्रेकियाेस्टाेमी यानी गले में छेद कर निकालने के लिए भी पत्थर काे वहां तक लाना काफी मुश्किल था।
यह काम खुद डा.दीपचंद ने अपने हाथा में लिया। बाकी टीम औजाराें से सपाेर्ट देने में जुटी। तीन एनस्थेटिस्ट पल्स से लेकर अन्य सभी पैरामीटर पर नजर गड़ाए रहे और डा.गाैरव गुप्ता ने इसे पाॅजीशन में आते ही बाहर निकाल दिया।
10 साल में सैकड़ाें केस देखे, 10 मिनट में फाॅरेन बाॅडी से निकाल देते हैं, ऐसा केस पहली बार : डा.गुप्ता
ईएनटी सर्जरी लगभग 10 साल से कर रहा हूं। आमताैर पर मूंगफली, चना, सुपारी आदि फंसी हाेती है। एक बार ताे एक दिन में ही ऐसे छह मामले आ। इन्हें लगभग 10 मिनट के प्राेसेस में निकाल देते हैं। आज जैसा केस सामने आया है, मेरे लिए इस तरह का पहला है।
ऑपरेशन करने वाली टीम
ईएनटी के एचओडी, प्राेफेसर डा.दीपचंद, एसाेसिएट प्राेफेसर डा.गाैरव गुप्ता, डा.मनफूल, डा.हर्ष, डा.चरणसिंह, डा.निधि, डा.चारू। एनस्थीसिया की डा.काेमल, डा.रूपक, डा.निवेदिता, स्टाफ नर्स मीना, अटेंडेंट नरेन्द्र आदि।
एक्सपर्ट व्यू
34 साल में 3000 फाॅरनबाॅडी गले में से निकाल चुका, लेकिन ऐसे मामले दाे से तीन ही आए : डा.दीपचंद
वर्ष 1986 से यानी 34 वर्ष से ईएनटी सर्जरी कर रहा हूं। गले में कुछ फंस जाने से मामलाें काे हम चिकित्सकीय भाषा में फाॅरनबाडी कहते हैं। ऐसे लगभग 3000 केस कर चुका हूं लेकिन यह जाे मामला था ऐसे मामले तीन हजार में दाे या तीन ही हाेंगे। काफी मशक्कत से हमे सफलता मिली। अब बच्ची ठीक है।बच्चाें से ऐसी चीजें दूर रखें जाे वे निगल सकते हैं। मसलन, मूंगफली, चना, सुपारी, छाेटे पत्थर, नगीने आदि।
पीबीएम ईएनटी हाॅस्पिटल में हर साल औसतन ऐसे 200 मामले आते हैं जिनमें बच्चाें के गले में कुछ न कुछ फंसा हाेता है। कई बार ये चीजें इतनी खतरनाक स्थिति में फंसी हाेती हैं कि हाॅस्पिटल पहुंचने से पहले ही बच्चे की जान भी जा सकती है।