दिल्ली से ट्रेन चली तो न सोशल डिस्टेंसिंग के एहतियात, न ही नाम-पता पूछा, सिर्फ बॉडी का टेम्प्रेचर देख दे दी मुसाफिरों को एंट्री

Posted By: Himmat Jaithwar
6/3/2020

नई दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से जब हम मंगलवार शाम भोपाल एक्सप्रेस में सवार हुए तो न सोशल डिस्टेंसिंग से जुड़े एहतियात नजर आए, न पहले दिन की तरह किसी यात्री से उसका नाम, पता पूछा गया। सिर्फ बॉडी का टेम्प्रेचर देखकर एंट्री दे दी गई। ट्रेन में चढ़ने-उतरने और बैठने में कहीं भी दो गज की दूरी जैसी कोई बात नहीं मानी गई।

दिल्ली से लौटते वक्त भी भोपाल एक्सप्रेस आधी खाली ही आई। 9 बजे हजरत निजामुद्दीन से निकली इस ट्रेन के डी-4 कोच का एसी रात साढ़े नौ बजे ही बंद हो गया, इसमें पहली बार एलबीएच कोच लगाए गए हैं। इनमें खिड़की नहीं खुलती। इस कारण एसी बंद होते ही यात्री पसीना-पसीना हो गए। कोच में बुजुर्ग और बच्चे भी थे, जो घबराने लगे।

रात 10 बजे तक मैकेनिक एसी ठीक करने में लगे रहे लेकिन कर नहीं पाए।

मैकेनिक तुरंत रिपेयरिंग करने में जुट गए लेकिन यात्रियों का सब्र टूट गया। वे टीटीई पर भड़क गए। इसके बाद टीटीई ने डी-4 कोच के सभी पैसेंजर्स को बी-1 में शिफ्ट किया, तब कहीं जाकर स्थिति सामान्य हुई। ट्रेन करीब आधी खाली थी इसलिए यात्रियों को दूसरी सीटों पर शिफ्ट करने में दिक्कत नहीं हुई।

मेरी जांच एक सेकंड में हो गई, किसी ने कुछ पूछा ही नहीं

दिल्ली से ग्वालियर जा रहे नीरज कहते हैं, ‘मैं नोएडा में रहता हूं। नोएडा से दिल्ली आने में कहीं कोई पूछताछ नहीं हुई। मुझे लग रहा था कि हजरत निजामुद्दीन स्टेशन पर जांच की लंबी लाइन होगी लेकिन यहां तो कोई लाइन मिली ही नहीं। मुझसे बिना कोई जानकारी पूछे सिर्फ टेम्प्रेचर चेक कर एंट्री दे दी गई। इसलिए अंदर आने में बमुश्किल 2 मिनट का समय लगा होगा।

बी-2 कोच में मिले अजय शर्मा कहने लगे, स्टेशन पर कहीं भी सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो नहीं की जा रही है। किसी से पूछताछ भी नहीं की गई।  इसलिए सफर करने में थोड़ा डर लग रहा है। शर्मा हबीबगंज में फैक्ट्री चलाते हैं। लॉकडाउन के कारण पिछले दो माह से दिल्ली में ही फंसे थे। भोपाल नहीं आ सके थे।

प्लेटफार्म पर पुलिसकर्मी कुछ-कुछ देर में सोशल डिस्टेंसिंग के लिए हिदायत देते नजर आते हैं।

इसी कोच में बैठी एक अन्य महिला यात्री ने पहले तो नाम न लिखने का आग्रह किया और फिर बोलीं, पूरे स्टेशन में कहीं भी सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो नहीं हो रही इसलिए हम खुद काफी अवेयर हैं। खुद अपनी सीट को स्प्रे से सैनिटाइज करके बैठे हैं। बोलीं- दिल्ली को तो पूरा खोल दिया गया है, जबकि हर रोज नए केस आ रहे हैं इसलिए अब दिल्ली में रुकने में डर लगने लगा है।

इधर दोपहर 12.40 बजे जब कोटा-हजरत निजामुद्दीन प्लेटफॉर्म पर पहुंची तो आरपीएफ और पुलिस के जवान भारी संख्या में मौजूद थे। इन्होंने ट्रेन से उतरने पर यात्रियों से सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो करवाई लेकिन थोड़ी आगे बढ़ते ही यात्री आपस में मिल गए। 

इस दौरान हमसे एक थ्री स्टार अधिकारी ने वीडियो न बनाने की अपील करते हुए कहा कि, आप लोग नेगेटिव ही छापते हैं इसलिए आप यहां वीडियो शूट मत करिए। हालांकि बाद में समझाने पर उन्होंने वीडियो और फोटो लेने की परमिशन दे दी।

ड्राइवर के असिस्टेंट ने कहा, मास्क लगाकर इंजन में बैठना सबसे बड़ी चुनौती

हबीबगंज-हजरत निजामुद्दीन-जबलपुर शाम साढ़े पांच बजे प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर खड़ी थी। हमने इंजन के पास जाकर ट्रेन के ड्राइवर से बात करनी चाही लेकिन उन्होंने सरकारी नियमों का हवाला देते हुए कुछ भी कहने से मना कर दिया।

उनके असिस्टेंट ने बताया कि, हम लोगों ने मास्क पहली बार लगाए हैं। इंजन में एसी भी नहीं है। इंजन का टेम्प्रेचर ज्यादा होता ही है इसलिए सबसे बड़ी चुनौती अभी हमारे लिए गर्मी है। हालांकि जब ट्रेन चलती है तो आसपास की खिड़की से हवा आती है लेकिन कई बार लू के थपेड़े आते हैं। 

वे बोले, हर यात्रा के बाद जैसे पूरी ट्रेन को सैनिटाइज किया जाता है वैसे ही इंजन भी सैनिटाइज होता है। इसमें सिर्फ अधिकारी और टेक्नीशियन ही जांच के लिए आते हैं। अन्य किसी की एंट्री नहीं होती। उन्होंने बताया, शुरू में कुछ दिन ग्लव्स भी पहने थे लेकिन मास्क और ग्लव्स पहनकर इंजन में ज्यादा देर बैठना संभव नहीं है इसलिए अब सिर्फ मास्क ही लगाते हैं। ग्लव्स नहीं पहनते।

प्लेटफॉर्म पर खुल गए स्टॉल लेकिन सिर्फ मास्क ही बिक रहे

रेलवे प्लेटफॉर्म की रौनक धीरे-धीरे लौटना शुरू हुई है लेकिन स्टॉल पर सिर्फ मास्क और हैंड सैनिटाइजर ही बिक रहे हैं। मंदसौर के विशाल भावसार निजामुद्दीन स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर-3 पर बने स्टॉल में नौकरी करते हैं। विशाल ने बताया कि, लॉकडाउन के कारण में मंदसौर नहीं जा पाया। यहीं फंस गया था। जो पैसे जोड़े थे, वो बहुत काम आए। उसी से ढाई महीना निकाला।

प्लेटफार्म पर अब सिर्फ मास्क ही बिक रहे हैं। यहां न किताबों का कोई खरीदार दिखता है, न बाकी चीजों का।

बोले, मैं मंदसौर जाने ही वाला था कि इतने में सेठजी ने कहा कि सरकार ने परमिशन दे दी है स्टॉल खोल लो। स्टॉल खोल तो लिया लेकिन कुछ बिक्री नहीं हो रही। पहले दिनभर में 5 से 6 हजार की बिक्री हो जाती थी। अब तो सिर्फ हैंड सैनिटाइजर और मास्क ही बिक रहे हैं। 

एक अन्य स्टॉल के संचालक महेश ने बताया कि मैं अलीगढ़ का निवासी हूं। 23 मार्च को ही अपने घर चला गया था। 29 को लौटा हूं। यहां 5 हजार रुपए का कमरा किराये से लेकर रहता हूं। अब धंधा ठप है और मुझे पुराना किराया ही 15 हजार रुपए चुकाना है। बोले, जो माल खरीदा था उसमें से बहुत सारा एक्सपायर भी हो गया। वो नुकसान भी हमें हुआ। कोरोना के डर से बुक्स और मैग्जीन को तो कोई हाथ भी नहीं लगा रहा।



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