पहली नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल के सम्मान में यह दिन मनाया जाता है, आज उनका 200वां जन्मदिन; संक्रामक रोगों का डेटा जुटाना इनकी पहल

Posted By: Himmat Jaithwar
5/12/2020

नई दिल्ली/मुंबई. आधुनिक नर्सिंग की फाउंडर फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म इटली के फ्लोरेंस में हुआ। वे गणित और डेटा में जीनियस थीं। इस खूबी का इस्तेमाल उन्होंने अस्पतालों और लोगों की सेहत सुधारने में किया। फ्लोरेंस ने जब पहली बार नर्सिंग में जाने की इच्छा जाहिर की तो माता-पिता तैयार नहीं हुए। बाद में उनकी जिद के आगे झुके और ट्रेनिंग के लिए जर्मनी भेजा।

1853 में क्रीमिया युद्ध के दौरान उन्हें तुर्की के सैन्य हॉस्पिटल भेजा गया। यह पहला मौका था जब ब्रिटेन ने महिलाओं को सेना में शामिल किया था। जब वे बराक अस्पताल पहुंची, तो देखा कि फर्श पर गंदगी की मोटी परत बिछी है। सबसे पहला काम उन्होंने पूरे अस्पताल को साफ करने का किया। सैनिकों के लिए अच्छे खाने और साफ कपड़ों की व्यवस्था की।

ये पहली बार था कि सैनिकों की ओर इतना ध्यान दिया गया। उनकी मांग पर बनी जांच कमेटी ने पाया कि तुर्की में 18 हजार सैनिकों में से 16 हजार की मौत गंदगी और संक्रामक बीमारियों से हुई थी। फ्लोरेंस की कोशिशों से ही ब्रिटिश सेना में मेडिकल, सैनिटरी साइंस और सांख्यिकी के विभाग बने। अस्पतालों में साफ-सफाई का चलन इन्हीं की देन है।

इस अस्पताल में नाइट शिफ्ट में वे मशाल थाम कर मरीजों की सेवा करती थीं। इसलिए ‘द लेडी विद द लैम्प’ के नाम से मशहूर हुईं। आज भी उनके सम्मान में नर्सिंग की शपथ हाथों में लैम्प लेकर ली जाती है। इसे नाइटिंगेल प्लेज कहते हैं। 1860 में उनके नाम पर ब्रिटेन में नर्सिंग स्कूल की स्थापना हुई। 1910 में फ्लोरेंस 90 साल की उम्र में उनका निधन हुआ। वे ‘ऑर्डर ऑफ मेरिट’ सम्मान पाने वाली पहली महिला थीं।


कसाब का सामना करने वाली अब कोरोना वाॅरियर

मुंबई से मनीषा भल्ला... 26/11 हमले के समय आतंकी कसाब का सामना करने वाली अंजलि कुलाथे कामा हॉस्पिटल में क्वारैंटाइन स्टॉफ की देखभाल कर रही हैं। वे कहती हैं कि इस वक्त 12 नर्स क्वारैंटाइन हैं। इनके खाने-पीने से लेकर स्वैव टेस्ट कराने का ध्यान रखना होता है। ये लोग निराश न हो, इसलिए इन्हें पॉजिटिव बनाए रखने के लिए मोटिवेशनल किस्से सुनाती हूं।

वे कहती हैं, ये लोग मुझसे मुंबई हमले के भी किस्से सुनते हैं। मुंबई हमले के दौरान अंजलि ने 20 प्रेग्नेंट महिलाओं को बचाया था। उस दिन को याद करते हुए कहती हैं- अचानक गोलियां चलने लगीं। मैंने बाहर झांका तो देखा कि जेजे स्कूल ऑफ आर्ट वाली रोड पर दो आतंकी फायरिंग करते हुए भाग रहे हैं। मैंने वॉर्ड की सभी पेशेंट को इकट्टा करना शुरू किया। एक महिला बाथरूम में थी। उसे लेने भागी।

इस बीच आतंकी अस्पताल में घुस आए। दो गोली मेरे पास से गुजरी, जिसमें से एक सर्वेंट को लगी। मैं उस महिला को लेकर वॉर्ड की तरफ भागी। मैंने सभी को एक पैंट्री में छुपा दिया। बाद में पुलिस ने कई बार कसाब की शिनाख्त के लिए मुझे बुलाया। जब मैंने पहली बार उसे पहचाना तो वह जोर से हंसने लगा और बोला हां मैडम, मैं ही अजमल कसाब हूं।

वे कहती हैं कि अस्पताल आने के बाद घर नहीं, परिवार नहीं, मरीज ही सब कुछ है। मैं यूनिफॉर्म को वर्दी मानती हूं। अंजलि के पति नेवी में ऑफिसर हैं।

84 की उम्र में भी कोरोना मरीजों को देखने का साहस

लंदन से ये कहानी... 84 साल की नर्स मार्गेट थेपली की। कोरोना की वजह से जान गंवाने वाली वे दुनिया की सबसे उम्रदराज वर्किंग नर्स हैं। ब्रिटेन के विटनी कम्यूनिटी हॉस्पिटल में मार्गेट नाइट शिफ्ट में लगातार काम करती रहीं और कोरोना संक्रमित मरीज के संपर्क में आने से संक्रमित हो गईं। सोशल मीडिया पर उन्हें सबसे परिश्रमी, केयरिंग और परिपूर्ण महिला के रूप में याद किया जा रहा है।

कोरोना बुजुर्गों के लिए सबसे घातक साबित हो रहा है। मार्गेट के पास भी विकल्प था कि वे अपनी ड्यूटी से मुक्त हो सकती थीं, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। डॉक्टर और साथी कहते हैं कि वे वार्ड में सबसे लोकप्रिय थीं। अस्पताल के चीफ एक्जीक्यूटिव स्टूअर्ट वेल कहते हैं कि अपने कॅरिअर में जितनी भी महिलाओं से मैं मिला हूं, मार्गेट उनमें सबसे प्रभावशाली थीं।

मैंने अपने जीवन में उनसे ज्यादा सशक्त महिला कभी नहीं देखी। वे इस उम्र में भी नाइट शिफ्ट में काम कर रही थीं। वे समर्पण की मिसाल थी और अस्पताल के लोगों को परिवार का हिस्सा मानती थीं। मार्गेट के पोते टॉम वुड कहते हैंं कि मुझे अपनी दादी पर गर्व है। उन्हीं को देखकर मैं भी नर्स बना। उन्हें तो बहुत पहले रिटायर हो जाना था, लेकिन उन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया था। वे कोरोना के खतरे से वाकिफ थीं, पर खुद को अस्पताल से दूर नहीं रख सकती थीं।

नर्स बहुत ज्यादा दर्द सहती है, मरीज से भी ज्यादा

न्यूयॉर्क से डा. ताजीन बेग... कुछ दिन पहले डाउन सिंड्रोम और कोरोना से पीड़ित अपनी मरीज को देखने आईसीयू में गई। मैंने देखा खिड़की में बहुत सुंदर डॉल रखी है। पता चला मरीज का मन बहलाने के लिए यह डॉल नर्स लेकर आई थी। मैं यहां 600 बेड वाले ब्रूक यूनिवर्सिटी अस्पताल में एनीस्थिसियोलॉजिस्ट हूं। यह लॉन्ग आइलैंड का सबसे बड़ा अस्पताल है। इसे अब कोविड अस्पताल में तब्दील कर दिया गया है।

मेरा काम आईसीयू के मरीजों को ब्रीदींग टयूब लगाना और वेंटिलेटर पर डालना है। मेरे साथ नर्सिंग स्टाफ भी होता है। मरीज के बारे में बेसिक जानकारी नर्स से ही मिलती है। डॉक्टर तो आईसीयू या वॉर्ड में आते-जाते रहते हैं, वे दिमाग से मरीज का इलाज करते हैं। लेकिन असली हीरो नर्स होती है। आईसीयू हो या फ्लोर चारों ओर पीपीई किट और मास्क लगाए नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर दिखते हैं।

नर्सें फौजियों की तरह दिन-रात काम कर रही हैं। बड़े-बड़े हॉल में वेंटिलेटर ही वेंटिलेटर, चारों ओर ब्रीदिंग ट्यूब, बीप-बीप की आवाजें, मरीजों की उखड़ती सांसें, इंफेक्शन का खतरा। मरीज कभी गुस्सा हो रहे हैं तो कभी रो रहे हैं। किसी के बदन पर सूजन है तो किसी की किडनी फेल हो गई है। नर्स उनकी बेडशीट बदल रही हैं, सफाई कर रही हैं, उन्हें खाना खिला रही हैं। उनकी बात परिजन से करा रही हैं।

मरीजों के लिए इधर से उधर भाग रही हैं। कभी किसी मरीज को ड्रिप लगानी है, दवा देनी है, इंजेक्शन देना है, मरीजों को देखने भाग रही हैं। मास्क से उनका मुंह छिल जाता है। खाना नहीं खा पाती हैं। ऐसे वाॅर रूम में हर वक्त मुस्तैद रहती हैं। वे सच में मां होती हैं।

भारत में 30 लाख नर्स, हर नर्स पर 50 से 100 मरीज का जिम्मा

  • देश में करीब 30 लाख नर्स हैं। 1000 लोगों पर 1.7 नर्स। यह संख्या अंतरराष्ट्रीय मानक से 43% कम है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 1000 आबादी पर 3 नर्स होनी चाहिए। 
  • भारत में हर नर्स रोज 50 से 100 मरीज देख रही है। इंडियन नर्सिंग काउंसिल के अनुसार तीन मरीजों पर एक नर्स होनी चाहिए। नाइट डयूटी में 5 मरीजों पर एक नर्स जरूर हो।
  • देश में करीब 30 लाख नर्स हैं, इसमें से 18 लाख केरल से हैं। केरल की 57% नर्सें विदेश चली जाती हैं। इसके बाद सबसे ज्यादा नर्स तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक में हैं। 
  • देश में इस समय 20 लाख नर्सों की कमी है। 2030 तक देश को कुल 60 लाख नर्सों की जरूरत होगी। दुनिया मेें कुल 2 करोड़ नर्सें हैं। इसमें से 80% नर्स 50% देशों में ही हैं। 

548 डॉक्टर-नर्स कोरोना की चपेट में हैं
देश में कोरोनावायरस से अब तक 548 डॉक्टर, नर्स और मेडिकल स्टॉफ संक्रमित हो चुके हैं। इनमें भी संक्रमित में होने वाली 90 फीसदी नर्सें हैं। नर्स 12 घंटे की शिफ्ट में औसतन 10 किमी चलती हैं, जबकि आम इंसान 18 घंटे में 5 किमी चलता है।



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