बेटे से प्यार, शव के साथ डेढ़ साल रहा परिवार:24 घंटे AC ऑन; रोज कपड़े-बिस्तर बदलते, मालिश और डेटॉल से सफाई

Posted By: Himmat Jaithwar
9/24/2022

कानपुर में एक परिवार डेढ़ साल तक लाश के साथ रहा। 35 साल के आयकर अधिकारी विमलेश सोनकर की कोरोना की दूसरी लहर में 22 अप्रैल 2021 को मौत हो गई थी। अस्पताल ने डेथ सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया। लेकिन, परिवार को लग रहा था कि विमलेश मरा नहीं है। वह कोमा में है।

रावतपुर के कृष्णापुरी इलाके में विमलेश का संयुक्त परिवार रहता है। दो भाई, उनकी पत्नियां, बच्चे, माता-पिता एक घर में रहते हैं। यानी जहां लाश को रखा गया उस घर में 10 से ज्यादा मेंबर्स रहते हैं। शुक्रवार को इसका खुलासा तब हुआ जब विमलेश के लगातार ड्यूटी में न पहुंचने पर आयकर विभाग की टीम उनकी तलाश करते हुए घर तक पहुंची। वहां टीम को कमरे में विमलेश की ममी जैसी बन चुकी लाश मिली।

हैरान कर देने वाले इस मामले के सामने आने के बाद अब सवाल उठते हैं...

आखिर डेढ़ साल तक लाश घर में कैसे रखी?
लाश में सड़न-बदबू क्यों नहीं हुई?
परिवार ने आखिर लाश को कैसे संजोकर रखा?
लाश के साथ परिवार कैसे रहता था?
मौत के सदमे से क्या दो भाइयों का परिवार, मां-बाप और पत्नी मानसिक बीमार हो गए?
अंतिम संस्कार से पहले परिवार को शरीर में हरकत का एहसास हुआ
विमलेश कुमार आयकर विभाग में अहमदाबाद में असिस्टेंट ऑफिसर पद पर तैनात थे। कोविड की दूसरी लहर के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ी। परिजन अहमदाबाद से उनको लेकर लखनऊ आए। वहां सुधार नहीं हुआ तो फिर कानपुर लाए। यहां बिरहाना रोड स्थित मोती नर्सिंग होम में एडमिट कराया। इलाज के दौरान 22 अप्रैल 2021 को उनकी मौत हो गई। अस्पताल ने डेथ सर्टिफिकेट भी जारी करके शव परिजन को सौंप दिया।
ऑक्सीमीटर से हुआ वहम, परिवार लाश को जिंदा मान बैठा
23 अप्रैल की सुबह परिजन शव का अंतिम संस्कार करने जा रहे थे। तभी उन्हें शरीर में हरकत का एहसास हुआ। हाथ में ऑक्सीमीटर लगाया तो पल्स रेट और ऑक्सीजन लेवल बताने लगा। तब परिवार ने अंतिम संस्कार कैंसल कर दिया। कोरोना का वक्त था। ऐसे में अंतिम संस्कार में परिवार के लोग ही थे। परिजन फिर विमलेश को दूसरे हॉस्पिटल में भर्ती कराने का प्रयास किया, लेकिन कोविड की महामारी में हॉस्पिटल्स में कोई सुनने वाला नहीं था। किसी भी हॉस्पिटल ने न तो परिवार की बात ठीक से सुनी और न ही एडमिट किया।
शव को जिंदा मानकर वापस घर ले आए
थक-हारकर परिवार विमलेश के शव को जिंदा मानकर वापस घर ले आए। इसके बाद विमलेश की बैंक अफसर पत्नी मिताली, पिता राम अवतार, मां और साथ में रहने वाले दो भाई दिनेश और सुनील शव को जिंदा मानकर उसकी सेवा में लग गए। सुबह-शाम शव की डेटॉल से सफाई, तेल मालिश, रोजाना कपड़े और बिस्तर बदलना। कमरे का 24 घंटे एसी ऑन रखना। यह सब डेढ़ साल तक ऐसे ही चलता रहा है।

इसलिए शव से नहीं आई बदबू
शुक्रवार को शव रखे होने के खुलासे के बाद जांच के लिए एडिशनल CMO डॉ. गौतम टीम के साथ मौके पर पहुंचे। उन्होंने परिजन, खासकर उनके माता-पिता को भरोसे में लिया। कहा- अगर विमलेश जिंदा हैं तो हैलट अस्पताल में उनका इलाज किया जाएगा। इसके बाद उनकी टीम ममी जैसा बन चुके शव को लेकर अस्पताल लाए। जांच के दौरान मृत घोषित कर दिया।

डॉ. गौतम ने बताया, "विमलेश बेहद दुबले-पतले थे। कोरोना के वक्त एक महीने की बीमारी में शरीर और कमजोर हो गया।
शव सूखकर अकड़ गया
डॉ. गौतम कहते हैं कि शव के सड़ने की प्रक्रिया में शव से पानी निकलता है। इससे दुर्गंध उठती है। विमलेश के शव से जो पानी निकलता था उसको बार-बार डेटॉल से परिजन साफ कर देते थे। इससे शव पर बैक्टीरिया नहीं पनप पाए। शव की तेल मालिश तक की जा रही थी। इन सब प्रक्रिया से शव सूखकर अकड़ गया। चमड़ी पूरी काली हो गई। बिल्कुल ममी की तरह। यानी डेढ़ साल तक शव की ऐसी केयर की कि पड़ोसियों को बदबू तक नहीं आई। अफसरों की टीम ने जब शव को बरामद किया तो उस पर साफ और नए जैसे कपड़े थे।

पड़ोस के लोग जब कभी विमलेश के बारे में पूछते तो कह देते थे कि विमलेश कोमा में हैं। आसपास के लोगों ने बताया कि परिवार थोड़ा रिजर्व रहता था। ऐसे में बाहरी लोगों से ज्यादा संपर्क नहीं था।
आयकर विभाग ने पत्नी से विमलेश के बारे में पूछा
विमलेश की पत्नी मिताली कोऑपरेटिव बैंक में मैनेजर हैं। वह शहर की किदवई नगर ब्रांच में पोस्टेड हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा, 'पति के निधन के बाद उनके माता-पिता को गहरा सदमा लगा। वह बेटे की मौत स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। एक बार तो मुझे भी लगा कि सांसें चल रही हैं, दिल धड़क रहा है। हालांकि, जब शरीर काला पड़ता गया और पूरी तरह से सूख गया तो मुझे यकीन हो गया कि अब शरीर में कुछ नहीं बचा है।'
मिताली कहती हैं, 'सास-ससुर को समझाने का प्रयास किया तो वह झगड़ने लगे। वह यह बात मानने को ही तैयार नहीं थे कि विमलेश की मौत हो चुकी है। इसके चलते मैं विरोध नहीं कर सकी। डेढ़ साल तक मुझे भी सास-ससुर और परिवार की हां में हां मिलाना पड़ा। इसके बाद आयकर विभाग को विमलेश के बारे में जानकारी दी।'

इसके बाद आयकर विभाग ने पूरे मामले की सूचना कानपुर DM को दी। DM के निर्देश पर आयकर विभाग की टीम, डॉक्टर, ACP और थाना पुलिस शुक्रवार को विमलेश के घर पहुंचीं। जांच की तो पूरे मामले की सच्चाई सामने आई।
सरकारी नौकरी में है पूरा परिवार
विमलेश का पूरा परिवार पढ़ा-लिखा और सरकारी नौकरी में है। पत्नी मिताली बैंक मैनेजर हैं। मिताली के 17 महीने की एक बेटी दृष्टि और 4 साल का बेटा संभव है। बेटा भी शहर के अच्छे स्कूल में पढ़ता है। पिता राम अवतार ऑर्डिनेंस फैक्ट्री कानपुर से रिटायर्ड हैं। छोटा भाई दिनेश कानपुर सिंचाई विभाग में हेड असिस्टेंट के पद पर कार्यरत है। दूसरा भाई सुनील बिजली विभाग में ठेकेदारी करते हैं। पूरा परिवार एक ही घर में रहता है।
अंधविश्वास एंगल पर भी चल रही जांच
कानपुर पुलिस कमिश्नर बीपी जोगदंड ने बताया कि इस मामले में एडिशन CMO के निर्देशन में डॉक्टरों की टीम ने जांच की है। यह पता लगाने का प्रयास किया जा रहा
है
पूरा परिवार शेयर्ड डिल्यूजन डिसऑर्डर बीमारी का शिकार तो नहीं?
कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज के साइकेट्रिक डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. गणेश शंकर से बात की गई। उन्होंने कहा, 'यह शेयर्ड डिल्यूजन डिसऑर्डर का केस लगता है। जब पूरे परिवार के सभी सदस्य झूठ पर भरोसा और विश्वास करने लगते हैं। शायद वे इस केस में मानते थे कि यह व्यक्ति अभी जिंदा है। जब मानसिक विक्षिप्तता परिवार के एक सदस्य से होकर परिवार के सभी सदस्यों तक पहुंच जाती है तो इसे शेयर्ड डिल्यूजन डिसऑर्डर बीमारी कहते हैं। इसे मेडिकल साइंस का रेयर केस माना जाता है। जब तक परिवार के सदस्यों से बातचीत और उनकी काउंसिलिंग नहीं की जा सकती, पूरे भरोसे के साथ कोई बात नहीं कही जा सकती है।'



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