मूक बधिरों का समझा दर्द और खुद बन गईं उनकी 'वाणी', सांकेतिक भाषा सीख अब बच्चों को बना रहीं आत्मनिर्भर

Posted By: Himmat Jaithwar
9/23/2022

रायपुर। वर्षों पहले बालीवुड फिल्म 'कोशिश" में हीरो संजीव कुमार और हीरोइन जया भादुड़ी ने मूकबधिर यानी गूंगे-बहरे का अवस्मिरणीय किरदार निभाकर दर्शकों को रुला दिया था। राजधानी निवासी पद्मा शर्मा भी एक बार ऐसे ही मूकबधिरों की दशा देखकर रो पड़ी थीं। उन्हें लगा कि अच्छे खासे दिखने वाले ये बच्चे व युवा भीतर से कितने टूटे हुए होंगे। वे अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त कर पाते होंगे। इस सोच ने उन्हें सांकेतिक भाषा सीखने के लिए प्रेरित किया। आज उनकी संस्था कोपलवाणी में 110 बच्चे व युवक-युवतियां रहकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। पद्मा स्वयं उन्हें पढ़ाती हैं। यहां पढ़े कई युवा आज विभिन्न् कंपनियों, कैफ आदि में नौकरी कर स्वाभिमान की जिंदगी जी रहे हैं।

पद्मा बताती हैं कि आज से लगभग 18 साल पहले उन्होंने संस्था की शुरुआत की थी। तब एक कमरा किराए पर लेकर चार बच्चों को पढ़ाती थीं। आज यह वृहद स्वरूप ले चुका है। संस्था के कुछ युवा भी यहां के बच्चों को पढ़ाते हैं। पद्मा कहती हैं कि उन्हें इस बात की बहुत खुशी होती है कि ईश्वर उनसे यह नेक काम करा रहा है। मूकबधिर बच्चे किसी पर निर्भर न रहकर भविष्य के लिए स्वयं को तैयार कर रहे हैं। उनकी एक मुस्कान की कीमत करोड़ों रुपये से ज्यादा है।
अन्य राज्यों के बच्चे भी
कोपलवाणी पहला आवासीय विद्यालय है, जहां छत्तीसगढ़ के अलावा महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा और मध्य प्रदेश के बच्चे भी सांकेतिक भाषा से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। संस्था द्वारा दिव्यांगों के लिए प्रदेश का पहला महाविद्यालय भी संचालित किया जा रहा है, जहां बैचलर आफ आर्ट्स (बीए), डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (डीसीए) आदि करके युवा माल, फ्लिपकार्ट, रिलायंस मार्ट, नुक्कड़ कैफे, टपरी कैफे आदि जगहों पर काम कर रहे हैं।

हाथ नहीं तो पैरों से सांकेतिक भाषा
भिलाई निवासी गौकरण पाटिल ऐसे श्रवण बाधित हैं, जिनके दोनों हाथ नहीं हैं। सांकेतिक भाषा में बात करने के लिए हाथों की जरूरत होती है। ऐसे में उन्होंने पैरों के माध्यम से ही सांकेतिक भाषा सीखी। बैचलर आफ फाइन आर्ट्स (बीएफए), मास्टर आफ फाइल आर्ट्स (एमएफए), पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन कंप्यूटर साइंस (पीजीडीसीए) करके कोपलवाणी में ही अपने पैरों से पेंटिंग बनाने और कंप्यूटर का प्रशिक्षण दे रहे हैं।


मूकबधिर लवकुश गोयल ने बीकाम, एमकाम, पीजीडीसीए किया है। हैदराबाद से साइन लैंग्वेज के प्रशिक्षण के बाद सात वर्षों से कोपलवाणी विशेष विद्यालय में इंग्लिश और डीसीए की क्लास ले रहे हैं।
अंबिकापुर निवासी विशाखा पांडेय श्रवण बाधित हैं। इनका मानना है कि जो समस्याएं श्रवण बाधित बच्चों को आती हैं, उन्हें समझना श्रवण बाधित शिक्षक के लिए ज्यादा सरल होता है। वे पांच वर्षों से सेवा दे रही हैं।
श्रवण बाधित आसिया बानो पेंटिंग, भरतनाट्यम, डांस क्लासेस लेती हैं। एमए समाजशास्त्र के बाद पीजीडीसीए किया और सात वर्षों से विद्यालय में सेवा दे रही हैं।
झारखंड निवासी राहुल गोप सुन-बोल नहीं पाते। पढ़ाई के साथ बच्चों के लिए कोरियोग्राफी कर रहे हैं। म्यूजिक को स्वयं सुन नहीं सकते, फिर भी भाव-भंगिमाओं के माध्यम से नृत्य का अभ्यास कराते हैं। कई बड़े मंच पर मूकबधिर बच्चों ने इनके नेतृत्व में प्रस्तुति दी है। वे इसी स्कूल से 12वीं और डीसीए करके बीए कर रहे हैं।



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