अपने साथियों को खोने वाले मजदूर ने बताया- न पैसे मिल रहे थे, न पास बन पा रहा था, इसलिए पैदल ही निकल पड़े

Posted By: Himmat Jaithwar
5/8/2020

औरंगाबाद. लॉकडाउन के 45 दिन से ज्यादा बीत चुके थे। मजदूरी का काम भी बंद था। पैसा खत्म हो रहा था। ऐसे में महाराष्ट्र के जालना में रहने वाले 20 मजदूर पिछले कुछ दिन से घर जाना चाहते थे। इन्हें पता चला कि भुसावल या औरंगाबाद से मध्यप्रदेश के भोपाल के लिए ट्रेन मिल जाएगी। फिर क्या था सभी ने निकलने का फैसला लिया। सोचा था कि ट्रेन मिली तो ठीक नहीं तो पैदल ही घर तक का सफर किया जाएगा। सड़क पर पुलिस का पहरा था। इसलिए, ट्रेन की पटरियों का रास्ता चुना। यही, रास्ता उन्हें मौत तक ले गया। पैदल चलते-चलते औरंगाबाद में करमाड स्टेशन के पास पहुंच गए। इतना थक गए कि पटरियों पर ही लेट गए। सुबह मालगाड़ी की चपेट में आकर इनमें से 16 की मौत हो गई। इस हादसे में दो मजदूर वीरेंद्र सिंह और सज्जन सिंह ने बताया  की नींद टूटी तो उनके सामने उसके 16 साथियों की लाशें बिखरी हुई थीं। 

'ठेकेदार पैसे देने की स्थिति में नहीं था, 7 मई को भी तनख्वाह नहीं मिली'

अपने साथी को खोने वाले मजदूर वीरेंद्र सिंह ने दिव्य मराठी को बताया, ‘‘ठेकेदार हमें पैसे दे पाने की स्थिति में नहीं था। वादा किया कि 7 मई को पैसे मिलेंगे। लेकिन 7 तारीख को भी पगार नहीं मिला। मध्यप्रदेश में हमारे परिवार को भी हमारी जरूरत थी। घर के लोग परेशान हो रहे थे। इसलिए हम एक हफ्ते से पास बनवाने की कोशिश में थे। दो-तीन बार कोशिश कर चुके थे, लेकिन मदद नहीं मिल पा रही थी।’’

'मालगाड़ी के ड्राइवर ने हॉर्न बजाया, लेकिन उसकी रफ्तार काफी तेज थी'

वीरेंद्र सिंह ने बताया,‘‘जब कोई रास्ता नहीं बचा तो हमने तय किया कि पटरियों के रास्ते हम सफर तय करते हैं। पहले औरंगाबाद पहुंचेंगे और वहां से आगे का रास्ता तय करेंगे। हम जालना से गुरुवार शाम 7 बजे रवाना हुए। कई किलोमीटर का रास्ता तय कर लिया। देर रात जब थक गए तो कुछ-कुछ दूरी पर हमारे साथी पटरियों पर बैठने लगे। मैंने कई साथियों से कहा कि पटरियों से दूर रहो। लेकिन जो साथी आगे निकल गए थे, वे पटरी पर लेट गए। उनकी नींद लग गई। हम पटरी से थोड़ा दूर थे, इसलिए बच गए। हमने मालगाड़ी को आते देखा। मालगाड़ी के ड्राइवर ने हॉर्न भी बजाया, लेकिन उसकी रफ्तार तेज थी। हमने आवाज दी, लेकिन तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था। हम दौड़कर नजदीक पहुंचते तब तक मालगाड़ी गुजर चुकी थी।’’

हादसे के बाद मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने स्थानीय लोगों की सहायता से शव के टुकड़ों को बटोरा।

'हम बैग लादे ही लेट गए थे, ट्रेन आई और बैग खींच ले गई'

इस हादसे में बाल-बाल बचे और हॉस्पिटल में भर्ती सज्जन सिंह ने बताया कि हमारी आंख लग गई थी। हम इतना थक गए थे कि मालगाड़ी की आवाज ही नहीं आई। हम लोग पटरी से थोड़ा दूर थे। हमने बैग पीठ पर लाद रखा था। बैग लादे ही हम उसके सहारे टिककर सो गए। जब मालगाड़ी गुजरी तो बैग खींचते हुए ले गई। जान तो बच गई, लेकिन चोटें आईं। जो साथी बैग सहित पटरी के बीच में थे, वे नहीं बच सके।



Log In Your Account