7 मई गुरुवार को वैशाख महीने की पूर्णिमा तिथि है। ये हिंदी महीने का आखिरी दिन रहेगा। इसके अगले ही दिन ये ज्येष्ठ महीना शुरू हो जाएगा। ज्येष्ठ हिन्दू पंचांग का तीसरा महीना है। ये महीना 8 मई से 5 जून तक रहेगा। इस महीने में गर्मी का मौसम अपने चरम पर रहता है। इसलिए इस महीने में जल की पूजा भी की जाती है और जल को बचाने का प्रयास किया जाता है। प्राचीन समय में ऋषियों ने पानी से जुड़े दो बड़े व्रत और त्योहार की व्यवस्था इसी महीने में की है। इसके अलावा ऋषियों ने पर्यावरण का ध्यान रखते हुए और भी व्रत और त्योहार बताए हैं, जिनमें पेड़-पौधों की पूजा की जाती है। इस बार तिथियों की घट-बढ़ के कारण ये महीना 28 दिनों का ही रहेगा।
संकष्टी चतुर्थी - ज्येष्ठ माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश जी की पूजा के लिए ये व्रत किया जाता है। ये व्रत 10 मई को किया जाएगा। संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती हैं।
अपरा एकादशी - ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी या अचला एकादशी भी कहा जाता है। अपरा एकादशी के दिन तुलसी, चंदन, कपूर, गंगाजल सहित भगवान विष्णु की पूजा की जानी चाहिए। कहीं-कहीं बलराम-कृष्ण का भी पूजन करते हैं। इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या, परनिन्दा, भूतयोनि जैसे कर्मों से छुटकारा मिल जाता है। इसके प्रभाव से कीर्ति, पुण्य तथा धन की वृद्धि होती है।
रुद्र व्रत - यह व्रत ज्येष्ठ महीने के दोनों पक्षों की अष्टमी और दोनों चतुर्दशी तिथि पर किया जाता है। इस दिन गौ दान करने का महत्व है। संभव न हो तो गाय की पूजा करके उसे दिनभर का घास, चारा आौर खाने की चीजें दें। इस व्रत को एक साल तक एकभुक्त होकर करना चहिए। यानी सालभर तक हर महीने की अष्टमी और चतुर्दशी तिथि को किय जाता है। इस व्रत के आखिरी में सोने का बैल या गाय के वजन जितने तिल का दान करना चाहिए। इस व्रत को करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। चिन्ताओं से मुक्ति मिलती है और शिवलोक प्राप्त होता है।
शनि जयंती - ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन शनि देव का जन्म हुआ था। शनि जयंती पर व्रत और शनि पूजा करने से कुंडली में शनि दोष खत्म हो जाते हैं। इसके अलावा हर तरह की परेशानियां इस व्रत से दूर होती है।
वट सावित्रि व्रत - ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि वट सावित्रि व्रत भी किया जाता है। इस व्रत पर बरगद के पेड़ की पूजा और परिक्रमा की जाती है। पूजा के बाद सत्यवान और सवित्रि की कथा सुनाई जाती है। इस व्रत को करने से पति की उम्र बढ़ती है और परिवार में समृद्धि बढ़ती है।
रम्भा तृतीया - ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया पर रम्भातृतीया व्रत किया जाता है। इस दिन देवी पार्वती की पूजा की जाती है। ये व्रत एक साल तक किया जा सकता है। रम्भा तृतीया व्रत खासतौर से महिलाओं के लिए ही होता है। इस व्रत को करने से सौभाग्य प्राप्त होता है। रंभा ने इसे सौभाग्य प्राप्ति के लिए ही किया था। इसलिए इसे रम्भा तृतीया कहा गया है।
गंगा दशहरा - गंगा दशहरा एक प्रमुख त्योहार है। ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की दशमी को ये व्रत किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान और विशेष पूजा की जाती है। इसके साथ ही इस दिन दान का भी महत्व है। ऐसा करने वाला महापातकों के बराबर के दस पापों से छूट जाता है।
निर्जला एकादशी - हिन्दू कैलेंडर के ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत किया जाता है। यह व्रत बिना पानी पीए किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है। इस व्रत को करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। निर्जला एकादशी का व्रत करने सालभर की सभी एकादशी का फल मिलता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा - इस महीने की पूर्णिमा का व्रत और दान करने से सौभाग्य प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा पर व्रत करने से संतान सुख भी मिलता है। इस बार ये व्रत 5 जून को किया जाएगा। इसे वट पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन भी सत्यवान और सवित्रि की पूजा की जाती है और बरगद की पूजा की जाती है।