दुनिया का दूसरा और एशिया का सबसे बड़ा मिलिट्री म्यूजिक स्कूल है मप्र के पचमढ़ी में, यहां तैयार होते हैं म्यूजीशियन सोल्जर

Posted By: Himmat Jaithwar
5/3/2020

पचमढ़ी. आज 3 मई है। आपको पता ही होगा कि कोरोना वॉरियर्स का शुक्रिया अदा करने के लिए आर्मी बैंड आज देशभर के कोविड अस्पतालों के बाहर परफॉर्मेंस देंगे। लेकिन, क्या आपको ये पता है कि ये आर्मी बैंड्स, यानी संगीत के सैनिक बनते कहां हैं? यानी इनकी ट्रेनिंग कहां होती है? इसकी भी एक रोचक कहानी है। तो पढ़िए...

देश में संगीत के सैनिकों की ट्रेनिंग की एकमात्र जगह है पचमढ़ी। यहीं है आर्मी म्यूजिक स्कूल। 70 साल पुराना यह म्यूजिक स्कूल एशिया का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मिलिट्री म्यूजिक स्कूल है। पहले नंबर पर आता है लंंदन का मिलिट्री म्यूजिक स्कूल। अंतरराष्ट्रीय स्तर की डिजिटल म्यूजिक ट्रेनिंग के लिए पचमढ़ी में बने भारतीय सेना के मिलिट्री म्यूजिक विंग को आईएसओ सर्टिफिकेट भी मिल चुका है। 1997 में सबसे बड़े मिलिट्री बैंड के लिए इसका नाम गिनीज बुक में दर्ज हुआ था। 

पचमढ़ी में 70 साल पुराना यह आर्मी म्यूजिक स्कूल एशिया में सबसे बड़ा है।

म्यूजिक स्कूल करिअप्पा कंपनी के कमांडर रह चुके रिटायर्ड कर्नल हरि दुबे के मुताबिक, यहां देश के 51 म्यूजिक बैंड और 10 हजार से ज्यादा म्यूजिक सोल्जर तैयार हुए हैं। यही नहीं भारत के अलावा श्रीलंका, अफगानिस्तान, माली, भूटान, म्यांमार और नेपाल जैसे 14 देशों के अफसर-जवान भी यहां म्यूजिक की ट्रेनिंग लेते हैं। सैनिकों के लिए यहां 3 महीने से लेकर 148 हफ्तों के दस कोर्स चलाए जाते हैं। सेना के अलावा नौसेना, वायुसेना के साथ पुलिस, असम राइफल, सीआरपीएफ, बीएसएफ, पैरामिलिट्री फोर्सेस भी अपने सैनिक-अफसरों को यहां ट्रेनिंग के लिए भेजती हैं।

यहां पर श्रीलंका, अफगानिस्तान, भूटान, म्यांमार, नेपाल जैसे 14 देशों के सैनिक म्यूजिक सीखने आते हैं।

संगीत ने पहुंचाया जवान से कमिशन ऑफिसर तक
मेजर विमल जोशी सेना के म्यूजिक विंग की सबसे खूबसूरत कहानी हैं। वह बतौर जवान भर्ती हुए थे और आज कमिशन ऑफिसर हैं। यही नहीं इन दिनों वो दिल्ली स्थित आर्मी हेडक्वार्टर में डायरेक्टर ऑफ मिलिट्री बैंड हैं। बिना एसएसबी पास किए वह सिर्फ संगीत के दम पर ऑफिसर बने हैं।


वह भारतीय सेना में होने वाली सभी बैंड ट्रेनिंग कर चुके हैं। इलाहाबाद की प्रयाग संगीत समिति से संगीत प्रभाकर पास हैं। सेना बैंड के लिए कई सारी धुन और गाने कंपोज करने चुके हैं। कैप्टन जोशी दस साल के थे जब उन्होंने संगीत सीखना शुरू किया। देश में कोई भी ऐसा इंस्टीट्यूट नहीं जो मिलिट्री म्यूजिक बैंड के सभी इंस्ट्रूमेंट के साथ हिंदुस्तानी संगीत के यंत्र सिखाता हो। ये स्पेशलाइजेशन सिर्फ सेना के मिलिट्री म्यूजिक विंग के पास है। भारतीय मिलिट्री में वेस्टर्न म्यूजिक अंग्रेजों के समय से था, फिर 1997 में भारतीय संगीत को शामिल किया गया।

यहां मिलिट्री म्यूजिक बैंड के सभी इंस्ट्रूमेंट के साथ जवानों को हिंदुस्तानी संगीत के यंत्र भी सिखाए जाते हैं।

संगीत के साथ कॉम्बैट ट्रेनिंग भी
पचमढ़ी में म्यूजिक सीख रहे ऑफिसर-सोल्जर को फायरिंग की ट्रेनिंग भी दी जाती है। यहां आने के लिए हर जवान को म्यूजिक एप्टीट्यूड टेस्ट के साथ फिजिकल टेस्ट भी पास करना होता है। हर जवान की कैम्प सिक्योरिटी की नाइट ड्यूटी लगती है। ट्रेनिंग पूरी होने पर अपनी यूनिट में जाकर वह आम सैनिकों की तरह कॉम्बैट में हिस्सा भी लेते हैं। सीमा की रखवाली करते हैं और जरूरत पड़े तो युद्ध भी लड़ते हैं। ट्रेनिंग के दौरान हर सैनिक का दिन सुबह 4 बजे शुरू होता है। सबसे पहले रियाज, फिर 6 बजे से पीटी और फिजिकल ट्रेनिंग। फिर 8 बजे से 10 बजे तक म्यूजिक ट्रेनिंग। उसके बाद कुछ घंटो का ब्रेक और शाम को गेम्स। फिर रात को थ्योरी क्लास। विंग में पंडित उदय भट्‌ट 21 सालों से क्लासिकल म्यूजिक सिखा रहे हैं। 

युद्ध शुरू होने के लिए बजने वाला बिगुल हो या युद्ध के दौरान सैनिकों में जोश भरने के लिए वीर रस का गीत। युद्ध में जीत मिलने पर गौरव गान हो या शहादत के बाद श्रदांजलि। सेना के बैंड की जरूरत हर जगह होती है। संगीत सचमुच सीमाओं के पार ले जाता है। फिर चाहे वह दो देशों की सीमाएं हो। मिलिट्री के कड़े अनुशासन के बीच रैंक चाहे कोई भी हो संगीत सभी साथ सीखते हैं।

अभी तक महिलाओं को नहीं मिला मौका
अफसोस ये है कि भारतीय सेना की महिलाएं अब तक इस विंग में शामिल नहीं हुई हैं। कारण, इस विंग में केवल जवानों के स्तर पर एंट्री मिलती है। और भारतीय सेना में अब भी महिलाएं बतौर जवान भर्ती नहीं होतीं।



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