नई दिल्ली. कोरोना संकट के बीच एक तरफ दुनियाभर में स्वास्थ्य कर्मियों को जहां कोरोना वॉरियर्स के रूप में सम्मानित किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ उनके साथ मारपीट और हिंसा की घटनाएं भी लगातार बढ़ती जा रही हैं। अकेले भारत में ही अब तक दर्जन भर से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। इनमें डॉक्टर्स पर हमला करने से लेकर उन्हें अपशब्द कहने, उन पर थूकने व घरों से बाहर निकालने तक के मामले शामिल हैं।
एसीएलईडी की रिपोर्ट के अनुसार, 19 फरवरी से अब तक 45 दिन में दुनियाभर में डॉक्टर्स के विरुद्ध हुई हिंसा की कुल घटनाओं में 68% अकेले भारत में हुई हैं। मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तरप्रदेश, बैंग्लुरु जैसे राज्य इनमें शामिल हैं।
अलग-अलग कानून, लेकिन पूरी तरह निष्प्रभावी
कहने को डॉक्टर्स की सुरक्षा के लिए देश के 23 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदशों में अलग-अलग कानून हैं, लेकिन ये पूरी तरह निष्प्रभावी हैं। यह इसलिए क्योंकि, आज तक एक भी आरोपी को इन कानूनों के तहत सजा नहीं दी जा सकी है। डॉक्टर्स में असुरक्षा इस कदर हावी हो गई है कि अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना मरीज का इलाज करने वाले इन वॉरियर्स को सुरक्षा के लिए विरोध प्रदर्शन का रास्ता अपनाना पड़ा।
22 अप्रैल को देश में विरोध जताने का निर्णय लिया गया
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आह्वान पर 22 अप्रैल को देशभर में कैंडल जलाकर विरोध जताने का निर्णय लिया गया। हालांकि, महामारी के बीच डाॅक्टर्स के विरोध प्रदर्शन की जानकारी होते ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुरक्षा का आश्वासन देकर इसे रुकवाया।
23 अप्रैल को महामारी अधिनियम में बदलाव किए गए
इसके बाद केंद्र सरकार ने उनकी सुरक्षा को लेकर सख्त कदम उठाते हुए एक अध्यादेश जारी किया। 23 अप्रैल को लगभग 123 साल पुराने महामारी अधिनियम में कई बड़े बदलाव किए गए। इसमें अब 7 साल तक की सजा और 5 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। जानकारी के अनुसार, गुजरात में इस कानून के तहत पहला मामला दर्ज कर लिया गया है।
डॉक्टरों पर हमले : स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ 68% हिंसक घटनाएं अकेले भारत में हो रही हैं..
कोरोना की जांच और इलाज के दौरान दुनियाभर में डॉक्टरों और नर्सिंग कर्मियों पर हमले हो रहे हैं। लेकिन, सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि सबसे ज्यादा हमले भारत में हो रहे हैं। आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डेटा प्रोजेक्ट (एसीएलईडी) की रिपोर्ट के अनुसार, 19 फरवरी के बाद लगभग 45 दिन में दुनिया भर में स्वास्थ्य कर्मियों के विरुद्ध हुई कुल घटनाओं का 68% अकेले भारत में हुईं। एसीएलईडी विकासशील दुनिया में होने वाली राजनीतिक हिंसा की घटनाओं और उनके विश्लेषण को कवर करती है।
डॉक्टरों को तनाव : 2017 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने देश के 1681 डॉक्टर्स पर एक सर्वे किया था। इसमें 82.7% डॉक्टर्स ने यह कहा था कि उन्हें इस पेशे में तनाव का सामना करना पड़ रहा है।
- 82.7% भारतीय डाॅक्टर्स ने पेशे में तनाव की बात कही है।
- 46.3% डाॅक्टर्स मानते हैं हिंसा उनके तनाव का मुख्य कारण।
- 62.8% ने माना वे हिंसा के भय के बीच मरीज देखते हैं।
- 57.7% डॉक्टर्स सिक्योरिटी लेने के बारे में सोचते हैं।
- 38.0% हेल्थ वर्कर्स करते हैं हिंसा का सामना (WHO के अनुसार)
- देश में कुल 11.59 लाख एलोपैथिक डॉक्टर पंजीकृत हैं। जनंसख्या के अनुसार देखा जाए तो भारत में 1445 लोगों पर सिर्फ 01 डॉक्टर है।
- डॉक्टरों की कमी, अशिक्षा, अस्पतालों पर मरीजों का बोझ डॉक्टरों से मारपीट व अभद्रता का मुख्य कारण है।
- स्रोत: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय
Q&A समझिए, डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए किए गए नए प्रावधानों में क्या है
1. स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए नए प्रावधान क्या हैं?
22 अप्रैल को केंद्र सरकार ने "महामारी अधिनियम 1897" में संशोधन किया है। इसके तहत स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने वालों को सात साल तक की सजा और 5 लाख तक का जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। स्वास्थ्यकर्मी की गाड़ी या क्लीनिक को नुकसान पहुंचाने वाले को संपत्ति के बाजार मूल्य से दोगुनी राशि का भुगतान करना होगा।
2. बदलाव क्यों करना पड़ा?
लॉकडाउन के बाद स्वास्थ्य कर्मियों को हिंसा का सामना करना पड़ रहा था। इंदौर में मेडिकल कर्मियों पर पत्थर बरसाए गए, उन पर थूका गया। मुरादाबाद सहित कई शहरों में ऐसा हुआ। इसके विरोध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने 23 अप्रैल को काला दिवस मनाने का एलान किया था। डॉक्टरों के विरोध को देखते हुए सरकार ने अधिनियम में बदलाव किए।
3. पुराने कानून की तुलना में ये बदलाव कितने कारगर साबित होंगे?
पुराने कानून में मामले का फैसला आने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं थी। लेकिन, नए कानून में स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ हुई हिंसा को गैर - जमानती अपराध बनाने के साथ ही 30 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल करने का नियम भी जोड़ा गया है। साथ ही मामले का फैसला आने की समय सीमा (1 साल) भी निर्धारित कर दी गई है।
4. डॉक्टरों के लिए अलग कानून है?
2007 में आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वायएस राज शेखर रेड्डी ने डॉक्टर्स के खिलाफ हिंसा के विरुद्ध पहला कानून लागू किया था। इसे वाइलेंस अगेंस्ट हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स एंड स्टेब्लिसमेंट एक्ट नाम दिया गया। इसके तहत तीन साल तक की सजा और 50,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान रखा गया। इसके बाद दिल्ली, हरियाणा समेत 22 राज्यों में इसी तरह के विभिन्न कानून लागू किए जा चुके हैं।
5. डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए इससे पहले कानून की कवायद हुई?
स्वास्थ्य मंत्रालय ने सितंबर 19 में ‘हेल्थकेयर सर्विस पर्सनल एंड क्लिनिकल एस्टेबलिस्मेंट एक्ट- 2019’ का ड्राफ्ट जारी किया था। विधेयक को कानून और वित्त मंत्रालय से मंजूरी मिल गई। लेकिन गृह मंत्रालय ने इसे पुनर्विचार के लिए यह कहते लौटा दिया कि मौजूदा आईपीसी, सीआरपीसी में पर्याप्त प्रावधान हैं। इससे मामला अटक गया।
6. दूसरे देशों में क्या स्थिति है?
ब्रिटेन : इमरजेंसी सर्विसेज में काम करने वाले कर्मचारियों से दुर्व्यवहार पर 12 माह तक की सजा का प्रावधान है।
अमेरिका: अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग कानून है। दर्जन भर राज्यों में इसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
ऑस्ट्रेलिया : स्वास्थ्य कर्मी से बदसलूकी पर 14 साल तक की कैद का प्रावधान।
भास्कर एक्सपर्ट : डॉ. राजन शर्मा, अध्यक्ष, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन
प्रश्न : देश में डॉक्टरों को हिंसा से बचाने वाले कानून की क्या स्थिति है?
जवाब : लगभग 13 साल पहले 2007 में आंध्रप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वायएस राज शेखर रेड्डी ने डॉक्टरों के खिलाफ हो रही हिंसा के विरुद्ध पहला कानून लागू किया था। इसे वाइलेंस अगेंस्ट हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स एंड स्टेब्लिसमेंट एक्ट नाम दिया गया। इसके तहत डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर्स पर हमला करने के आरोपी को तीन साल तक की सजा और 50,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान रखा गया था। यह गैर-जमानती अपराध होगा। इसके बाद दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान समेत देश के 22 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेश में इस कानून काे लागू किया जा चुका है।
प्रश्न : कानून का देश में कितना पालन हो रहा है?
जवाब : डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर्स के साथ देश में हर साल हिंसा की अनगिनत घटनाएं होती हैं। कोरोना महामारी में ही अब तक दर्जन भर से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन देश में डाॅक्टर्स की सुरक्षा के लिए बने कानून के तहत एक भी मामले में किसी आरोपी को सजा नहीं हुई। चूंकि कोरोना ताजा मामला है ऐसे में अभी तक निश्चित डेटा प्राप्त नहीं हुआ है, लेकिन ये घटनाएं चिंताजनक हैं। गंभीर बात यह है कि तीन डॉक्टर्स को कोरोना से मृत्यु के बाद दफनाने तक नहीं दिया गया जबकि यही डॉक्टर्स सैकड़ों लोगों की जान बचा चुके हैं। हम उम्मीद करते हैं कि कानून में हुए संशोधन से परिस्थितियां कुछ बदलेंगी।