जीवन के सुखी और सफल बनाने के सूत्र महाभारत की विदुर नीति में बताए गए हैं। महाभारत के उद्योगपर्व में धृतराष्ट्र और विदुर के संवाद बताए गए हैं। इन संवादों में विदुर ने जो बातें धृतराष्ट्र को बताई थीं, वही विदुर नीति कहलाती है। इस ग्रंथ के उद्योगपर्व में 35वें अध्याय के 44वें श्लोक में बताया है कि हमारा जीवन कैसे सुखी बन सकता है...
श्रीर्मङ्गलात् प्रभवति प्रागल्भात् सम्प्रवर्धते।
दाक्ष्यात्तु कुरुते मूलं संयमात् प्रतितिष्ठत्ति।।
इस श्लोक के अनुसार अच्छे कर्म से स्थाई लक्ष्मी आती है। परिश्रम और ईमानदारी से किए गए कामों से जो धन मिलता है, उससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। गलत काम करने वाले लोग कुछ समय का सुख प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन वे हमेशा सुखी नहीं रह पाते हैं। महाभारत में दुर्योधन ने छल और गलत तरीके से पांडवों से उनकी धन-संपत्ति छीन ली थी, लेकिन ये संपत्ति उसके पास टिक ना सकी। दुर्योधन धन के लालच में अधर्म करता रहा और अंत में उसके पूरे वंश का नाश हो गया।
हमें धन का प्रबंधन या निवेश सही तरीके से करना चाहिए। अगर हम धन सही कार्यों में पैसा लगाएंगे तो अच्छा लाभ मिल सकता है। जो लोग जल्दी लाभ कमाने के चक्कर में धन का निवेश गलत तरीके से करते हैं, वे अंत में दुखी होते हैं। महाभारत में दुर्योधन ने धन का उपयोग पांडवों को नष्ट करने में किया था, लेकिन उसका धन किसी काम नहीं आया।
सुखी रहने के लिए बुद्धिमानी से योजनाएं बनानी चाहिए कि धन कहां खर्च करना है और कहां नहीं, इसका ध्यान रखना चाहिए। आय-व्यय में संतुलन बनाए रखना चाहिए। महाभारत में पांडव दुर्योधन से सबकुछ हार गए थे, इसके बाद उन्होंने अभाव का जीवन व्यतीत किया था, लेकिन वे अभाव में भी सुखी और प्रसन्न थे।
धन के संबंधी कामों में धैर्य रखना बहुत जरूरी है। अगर हम हमेशा सुख और शांति प्राप्त करना चाहते हैं तो मानसिक, शारीरिक और वैचारिक संयम बनाए रखना जरूरी है। धन का दुरुपयोग न करें। गलत आदतों से बचें। युधिष्ठिर अपनी गलत आदत द्युत क्रीड़ा खेलने की वजह में ही सब कुछ हार गए थे। इस एक गलत आदत की वजह से सभी पांडवों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था।