लोग कहते थे आप सीएए-एनआरसी का सर्वे करने आए हो, हमें उठाकर ले जाओगे, हमने उन्हीं के लहजे में बात कर विश्वास जीत लिया

Posted By: Himmat Jaithwar
4/15/2020

जोधपुर. परकोटे के बाहर व अंदर फैले नागौरी गेट व उदयमंदिर आसन में घनी आबादी वाली संकरी गलियों में पॉजिटिव केस ढूंढने का काम किसी बारूदी सुरंग से बम निकालने सरीखा ही है। इसे असंभव से कार्य को संभव करने वाली महिला मेडिकल वॉरियर्स की कहानी भी युद्ध में पराक्रम दिखाने जैसी ही हैं। पंद्रह दिन पहले इस टीम को जब नागौरी गेट और उदयमंदिर में सर्वे का जिम्मा सौंपा गया तो उनके सामने सबसे बड़ा संकट असहयोग व अविश्वास का था।

महिला डॉक्टर व एएनएम की टीम वहां जाती तो लोग उन्हें घेरकर कहते- आप तो सीएए और एनआरसी का सर्वे करने आए हों, हमें उठाकर ले जाओगे। सर्वे टीम की महिला चिकित्साकर्मियों ने स्थानीय लोगों के लहजे व बातचीत के अंदाज को हथियार बनाया। सीएए व एनआरसी को अफवाह बताकर उनका विश्वास जीता और मेडिकल कैंप लगाने के नाम पर बुलाकर उनके सैंपल लेने शुरू किए। इसका ही नतीजा था कि अब लगातार पॉजिटिव केस सामने आ रहे हैं। इन मुश्किल हालात में पॉजिटिव केस ढूंढने वाली डॉक्टर, एएनएम और नर्सिंगकमिर्यों का कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित ने सम्मानित किया। उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर उनकी हौसला अफजाई की। भास्कर इनमें से ही तीन कहानियां बता रहा है।

लोकल लोग, भाषा से विश्वास जीता फिर सैंपल लिए : डॉ. हिना आफताब

नागौरी गेट में टीम का नेतृत्व करने वाली डाॅ. हिना आफताब कहती हैं- मुझे 31 मार्च को नागौरी गेट भेजा गया। मैंने यहां जॉइन करते ही सर्वे की रणनीति तैयार की। यहां पहुंचीं तो ऐसा लगा कि मुश्किल हालात में ये काम कर पाऊंगी या नहीं? सर्वे टीमों को लीड करते हुए मैं भी फील्ड में एक टीम के साथ निकल गईं। यहीं से मुझे मुश्किल और मुसीबत शुरू हो गई। ये एरिया मेरे लिए नया और अनजाना था। यहां की गलियों से मैं वाकिफ भी नहीं थीं। जहां नगमा रहती थी, वहां से सर्वे शुरू किया तो लोग सहयोग की बजाय, हमें जाने को मजबूर कर रहे थे। उनके पास मोबाइल में अफवाहों वाले मैसेज आने के कारण वे भ्रमित थे। वे एकसाथ मुझसे कहते कि आप लोग एनआरसी और सीएए का सर्वे करने आए हों। वे समझ रहे थे, हम उनके लिए खतरा बने हुए हैं और उन्हें यहां से ले जाएंगे। वे हमारे से सवाल करते कि हमें उठाकर ले जाकर बंद करोगे क्या? गलत अफवाह के कारण डरे हुए थे। ऐसे में टेस्ट करवाना दूर की बात है, सर्वे के फाॅर्म में जो जानकारी पूछ रहे थे, उसका भी जवाब नहीं दे रहे थे। ऐसे में सर्दी, जुकाम, खांसी, गले में दर्द जैसे लक्ष्ण की बात करना तो उनके साथ सही नहीं था।

पहले दिन यहां की दो संकरी गलियों में संपर्क किया, लेकिन दिनभर यहां कोई सहयोग नहीं मिला। इस पर मैंने दो लोकल बंदे अपने साथ लिए और उन्हीं की भाषा व लहजे में उन्हें विश्वास में लेकर समझाया। इसके बाद हम उन्हें समझाते हुए चले गए। उन्हें हाथ धोने, मास्क लगाने के लिए जागरूक करते रहे। हमारे मोबाइल नंबर दिए और कहा कि कोई मिस गाइड करता है तो तुरंत बताओ। फिर भी टीमों से कहते थे कि हमें मेडिकल सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। वे सहयोग की बजाय हमें जाने के लिए कह रहे थे। फिर भी मैंने हार नहीं मानी और टीमों का गठन किया। 36 वार्ड को बीएलओ को बांट दिया। इनके साथ नर्सिंग स्टूडेंट, एएनएम को तैनात किया।

टीम बनाकर काम शुरू किया

तीन टीमों में बांटकर हमने स्थानीय रहन-सहन के अनुसार उन्हें कम्युनिकेट करना शुरू कर दिया। इससे हमारी बात उनके समझ में आने लगी। मैं खुद साथ जाती थीं और उनके खाने, दवाई व दूसरी समस्याओं का समाधान करने लगे तो उन्हें विश्वास हो गया। इसके बाद उन्हें कम्युनिटी हॉल में मेडिकल कैंप लगाना बताकर बुलाया तो वहां भीड़ जुटी। वहां बुलाकर हमें जो संदिग्ध लगते थे, उनके नमूने लेते चले गए। इसका नतीजा था कि नागौरी गेट से प्रत्येक दिन दो और इससे ज्यादा पॉजिटिव केस सामने आ रहे हैं। यहां से 30 से ज्यादा केस सामने आने के बाद हम इस एरिया को फिर से फिल्टर कर रहे हैं। यहां तीन बार सर्वे हो चुका है। इस क्षेत्र में एजुकेशन की कमी है, इसके चलते वे सहयोग नहीं करते हैं। वहां लॉकडाउन की पालना नहीं होती है। मैं वहां जाती, तब उन्हें अंदर जाने को कहते थे। बाद में तो मुझे देखकर खुद ही अंदर दौड़ जाते। इस मौसम में हमारी टीमों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत सूट पहनकर घूमना। इससे पसीने से तरबतर हो जाते है और काम करने में दिक्कत आती है।

बातचीत का तरीका बदल कोरोनाग्रस्त अली को ढूंढा : एएनएम शोभा

उदयमंदिर क्षेत्र की एएनएम शोभा बताती हैं कि वे यहां लोकल लोगों के संपर्क में होने के बावजूद उनके लिए यहां काम करना अलग सी चुनौती था। मैंने उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लहजे में बातचीत और उनके साथ मिक्स होकर उनका विश्वास जीता। उन्हें नहीं लगा कि मैं अलग हूं। यहां के लोगों को प्रभावित करते हुए मैं आशा सहयोगिनी नरगिस के साथ सर्वे के लिए जुटी। यहां की गलियों में घूमते हुए उन्हीं की भाषा में बात की। मुझे किसी ने बताया कि हाथीराम का ओडा क्षेत्र में अयूब अली हैं। उन्हें किसी ने अस्पताल आने नहीं दिया है और वे घर पर ही बंद हैं। उन्हें ढूंढने के लिए मैं निकल गईं।

सर्वे करते हुए वहां रहवासी से मिले, लेकिन उन्होंने अयूब के बारे में नहीं बताया। वहां गईं, काफी लोगों ने बताने से इनकार कर दिया। उन्हें ढूंढने की ठान ली। वहां एक गली के बाहर दो-तीन पुरुष खड़े थे, पता पूछा तो मना कर दिया। आशा सहयोगिनी नरगिस साथ थीं। फिर हम एक गली में गए तो एक लड़का मिला, उसने सही पता बताया। हम उनके घर गए और पूछा कि आपको क्या दिक्कत है। वे बाले कि उनके गले में दर्द है। कोविड स्लिप बनाकर दी। 10 अप्रैल को उनका सैंपल लिया और 12 अप्रैल को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद इस इलाके में लगातार पॉजिटिव केस आने शुरू हो गए। इसके बावजूद यहां के लोग हमें सहयोग नहीं करते, जाने के लिए कहते और कोरोना फैलाने का ही आरोप लगाते।

कोविड वाली पर्ची निमंत्रण पत्र : एएनएम हेमलता व्यास
एएनएम हेमलता व्यास कहती हैं कि उनके लिए भी इस उदयमंदिर क्षेत्र में काम करना मुश्किल भरा था। सर्वे के लिए जब वे लोगों और महिलाओं से मिलती थीं तो वे दवा मांगते और सहयोग मांगते थे। मैं उन्हें कोविड-19 के सैंपल लेने की पर्ची देकर आती और अपना नंबर पीछे लिखती थीं। वे दोपहर दो बजे बाद कॉल करते तो दवा पहुंचा दी जाती। दवा मिलने के बाद जो भी उस परिवार का संदिग्ध होता, वो सैंपल देने के लिए डिस्पेंसरी चला आता था। कोविड वाली पर्ची हमारे लिए सिर्फ सैंपल लेने का साधन नहीं था, ये उनके लिए निमंत्रण देने जैसा था। इससे वे घर से बाहर निकलते और उन्हें कोई नहीं रोकता। इसी आजादी में वे डिस्पेंसरी आकर सैंपल देकर जा रहे हैं। मेरी ये रणनीति इस क्षेत्र में काम आ रही है।



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