नई दिल्ली। चीन के साथ जारी सीमा विवाद के बीच भारतीय नौसेना ने दो प्रिडेटर (MQ-9 सी गार्डियन) ड्रोन की मदद से समुद्री इलाकों पर पैनी नजर बनाए रखी। नौसेना ने बताया कि इन ड्रोन की मदद से हमें पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री बल की निगरानी बढ़ाने में मदद मिली। इसके जरिए हमने समुद्री इलाकों से गुजरने वाले उन जहाजों पर भी पैनी नजर रखी, जो नियमों का पालन नहीं करते। इन ड्रोन्स की मदद से हमने दुश्मन की हर हरकत पर बहुत ही नजदीक से नजर बनाए रखने में सफल हो पाए।
ड्रोन ने हमारी क्षमता बढ़ाई : नेवी वाइस चीफ
न्यूज एजेंसी ANI को दिए इंटरव्यू में नेवी के वाइस चीफ वाइस एडमिरल जी अशोक कुमार ने कहा कि MQ-9 सी गार्डियन ड्रोन हमें एक बड़े इलाके पर नजर रखने की ताकत देते हैं और इससे हमें अपने समुद्री निगरानी का दायरा भी बढ़ा सकते हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या जिन दुश्मन जहाजों पर नजर रखने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया, उसमें चीनी वॉरशिप शामिल था?
इस पर उन्होंने कहा कि ड्रोन का उपयोग संभावित दुश्मनों पर नजर रखने के लिए किया जाता है, लेकिन इसका इस्तेमाल उन जहाजों की निगरानी के लिए भी किया जाता है, जिनका मूवमेंट हमें चिंताजनक लगे यानी वे जो समुद्री सीमाओं के कानून का पालन नहीं करते। यह चीन या जापान, या किसी भी देश से हो सकते हैं।
प्रिडेटर ड्रोन की खासियत
- प्रिडेटर सी गार्डियन में टर्बोफैन इंजन और स्टील्थ एयरक्राफ्ट के तमाम फीचर हैं। ये अपने टारगेट पर सटीक निशाना लगाता है।
- प्रिडेटर 2,900 किलोमीटर तक उड़ सकता है। यह ड्रोन 50 हजार फीट की ऊंचाई पर 35 घंटे तक उड़ान भरने में सक्षम है।
- यह 6500 पाउंड का पेलोड लेकर उड़ सकता है। इसे अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स एयरोनॉटिकल सिस्टम्स ने बनाया है।
- 8.22 मीटर लंबे और 2.1 मीटर ऊंचे इस ड्रोन के पंखों की चौड़ाई 16.8 मीटर है। इसकी फ्यूल कैपिसिटी 100 गैलन तक है।
दो मिसाइलों से दुश्मन को कर सकता है बर्बाद
प्रिडेटर ड्रोन मिसाइलों को लेकर उड़ान भर सकता है। 50,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर उड़ने की वजह से दुश्मन इस ड्रोन को आसानी से पकड़ नहीं पाते हैं। इसमें दो लेजर गाइडेड AGM-114 हेलफायर मिसाइलें लगाई जा सकती हैं। इसे ऑपरेट करने के लिए दो लोगों की जरूरत होती है, जिसमें से एक पायलट और दूसरा सेंसर ऑपरेटर होता है। अमेरिका के पास ऐसे 150 से ज्यादा ड्रोन हैं।
अमेरिका से लीज पर लिए ड्रोन
लद्दाख की गालवान घाटी में संघर्ष के बाद तीनों सेनाएं पूरी तरह अलर्ट पर थी और किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहती थीं। इसलिए समुद्री सीमाओं में चीनी वॉरशिप और अन्य संदिग्ध जहाजों की आवाजाही पर कड़ी नजर रखने में मदद करने के लिए इन दो ड्रोन को भारतीय नौसेना ने अमेरिका से लीज पर लिया था। दोनों ड्रोन पिछले साल नवंबर के मध्य में भारत आए थे और नवंबर के तीसरे हफ्ते में इस सिस्टम को चालू कर दिया गया था।