जहां सड़कें नहीं जातीं, वहां 600 रु. में ड्रोन से पहुंचेंगी वैक्सीन की 10 हजार शीशियां; कर्नाटक में आज से ट्रायल शुरू, तेलंगाना में भी जल्द ही

Posted By: Himmat Jaithwar
6/18/2021

 जल्द ही दूरदराज के गांवों में ड्रोन उड़ते नजर आएंगे। भारत में पहली बार दवाइयों और वैक्सीन की सप्लाई के लिए ड्रोन का इस्तेमाल होने जा रहा है। कर्नाटक में 18 जून से 100 घंटे का ट्रायल शुरू हो रहा है, जिसमें 13 ड्रोन कंपनियां शामिल हो रही हैं। इस ट्रायल का उद्देश्य दवाएं ही नहीं बल्कि अन्य सामान पहुंचाने की संभावनाएं तलाशना भी है।

तेलंगाना सरकार ने भी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के साथ ‘मेडिसिंस फ्रॉम द स्काई’ प्रोजेक्ट पर काम करने का फैसला किया है। इसमें दवाएं और इमरजेंसी मेडिकल इक्विपमेंट पहुंचाने की योजना बनाई गई है। इसके ट्रायल 21 या 22 जून से शुरू हो सकते हैं। इसके अलावा 11 जून को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने भी टेंडर जारी किए हैं ताकि दूरदराज के इलाकों में वैक्सीन पहुंचाने में ड्रोन की मदद ली जा सके। यह कैसे होगा और कितना सस्ता व तेज होगा, यह समझने के लिए हमने स्काई (Skye) एयर मोबिलिटी के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर विंग कमांडर एस. विजय (वेटरन) से बात की। साथ ही तेलंगाना सरकार और ICMR की ओर से जारी टेंडर को भी समझा। विंग कमांडर एस विजय के शब्दों में समझिए, भारत में ड्रोन से सामान डिलीवरी को लेकर क्या हुआ है और आगे हो रहा है...

यह कितना तेज और सस्ता होगा?

  • सुनने में यह बहुत महंगा लग सकता है। पर सच यह है कि ड्रोन तेज भी है और सस्ता भी। 30 किमी की दूरी पर वैक्सीन या सामान पहुंचाने में ड्रोन पर 500-600 रुपए ही खर्च होंगे। समय भी सिर्फ 30 मिनट ही लगेंगे। दिन में 15 ट्रिप्स तक हो सकती हैं।
  • अगर यही सामान बाइक पर कोई व्यक्ति लेकर जाए तो सड़क की दूरी बढ़ सकती है। साथ ही ईंधन और लेकर जाने वाले व्यक्ति का खर्च भी लगेगा। और तो और, यहां बात उन इलाकों की हैं जहां सड़क नेटवर्क नहीं है या उनकी हालत अच्छी नहीं है। तब तो समय भी ज्यादा लगेगा। व्यक्ति भी दो से ज्यादा ट्रिप्स नहीं लगा सकेगा।
  • मौजूदा प्रक्रिया में दूरदराज के इलाकों में दवाएं या वैक्सीन पहुंचाने के लिए ट्रकों से लेकर बाइक तक का इस्तेमाल हो रहा है। इसमें कर्मचारी चाहिए और वाहन भी। ट्रैफिक जाम या सड़कें खराब होने से वैक्सीन की क्वालिटी खराब होने का डर भी है। जिन इलाकों में सड़कों का नेटवर्क नहीं हैं या जहां मानसून में ट्रांसपोर्ट संभव नहीं होता, वहां वैक्सीनेशन प्रभावित होगा। वहां ड्रोन की मदद से काम बड़ी आसानी से हो जाएगा।

सबसे पहले बात ड्रोन से डिलीवरी के नियमों की

  • ICMR ने तो 11 जून को टेंडर जारी किए हैं। यह पूरी तरह से कोविड वैक्सीन की डिलीवरी को लेकर है। पर ड्रोन से सामान डिलीवरी पर काम लंबे समय से चल रहा है। डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) ने 2019 में बियॉन्ड द विजुअल लाइन ऑफ साइट (BVLOS) यानी 30-35 किमी दूर तक सामान डिलीवर करने के लिए कंपनियों से प्रस्ताव मांगे थे। इसमें 20 कंसोर्टियम (कंपनियों के ग्रुप्स) ने रुचि दिखाई है। इसी के पहले प्रायोगिक ट्रायल्स बेंगलुरू में होने हैं।

बेंगलुरू में क्या होगा?

  • ड्रोन उड़ाने का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है, इसलिए इस प्रक्रिया में DGCA के साथ ही गृह मंत्रालय और खुफिया ब्यूरो (IB) भी शामिल हैं। रूट प्लानिंग में मिलिट्री स्टेशन जैसे संवेदनशील स्थानों को अलग रखा गया है। सभी विभागों से कंपनियों और रूट को क्लियरेंस मिलने के बाद 18 जून को बेंगलुरू में 100 घंटे की प्रायोगिक उड़ान भरी जा रही है।
  • इस प्रयोग में 20 कंसोर्टियम भाग ले रहे हैं। सब कंपनियों का उद्देश्य अलग-अलग है। जैसे तीन कंपनियां मैपिंग के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करना चाहती हैं। वहीं, कुछ कंपनियां डिलीवरी के लिए। स्काई एयर मोबिलिटी भी डिलीवरी स्टार्टअप डुंजो डिजिटल प्रा.लि. के पार्टनर के तौर पर इन ट्रायल्स में भाग ले रही है।
  • ये प्रयोग सिर्फ दवाओं और वैक्सीन की डिलीवरी तक सीमित नहीं है। नेशनल हाईवे की मैपिंग, रेलवे ट्रैक की मैपिंग, खेती से जुड़े स्मार्ट वर्क, कृषि भूमि का सर्वे, जंगलों की निगरानी, सर्विलांस जैसे कई कामों के लिए ड्रोन के इस्तेमाल की व्यवहारिकता जांची जाएगी। हो सकता है कि आगे चलकर ई-कॉमर्स डिलीवरी भी ड्रोन से की जाए।

तेलंगाना का प्रोजेक्ट कितना अलग है?

  • इस पर काम मार्च 2020 में ही शुरू हो गया था। तेलंगाना के चार जिलों की पहचान की गई, जहां सड़कों का नेटवर्क नहीं है। सड़कें हैं भी तो उनकी हालत बहुत अच्छी नहीं है। मानसून में रोड नेटवर्क पूरी तरह टूट जाता है। इन जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं को तेज गति से पहुंचाने के लिए ड्रोन के इस्तेमाल पर विचार शुरू हुआ। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) के ‘मेडिसिंस फ्रॉम द स्काई’ प्रोग्राम के तहत प्लानिंग हुई।
  • शुरुआत में इसका उद्देश्य मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं यानी दवाएं और ब्लड आदि पहुंचाने के लिए ड्रोन के इस्तेमाल की संभावनाओं को तलाशना था। चूंकि, नीति आयोग भी इस प्लान में हिस्सेदार था, इसलिए उसने कोविड से जुड़ी दवाओं और वैक्सीन की डिलीवरी को भी इसमें जोड़ने का प्रस्ताव दिया।
  • इस प्रोजेक्ट में 8 कंपनियों को चुना गया है। इनमें से तीन कंसोर्टियम के साथ भी काम कर रही हैं, जो फ्लिपकार्ट, डुंजो डिजिटल प्रा.लि. और ब्लूडार्ट के हैं। इस प्रोजेक्ट के लिए सभी अनुमतियां मिल चुकी हैं। ट्रायल्स 21-22 जून के आसपास शुरू हो सकते हैं। तारीखें अभी तय नहीं हैं।
  • प्रोजेक्ट में तीन किलो पेलोड के साथ ड्रोन उड़ान भरने वाले हैं। इसमें डेढ़ किलो वजन वैक्सीन की 10 हजार शीशियों का होगा। बचा डेढ़ किलो वजन कोल्ड बॉक्स और ड्राई आइस का होगा, जो वैक्सीन का टेम्परेचर मेंटेन करने के लिए जरूरी है।

तो ICMR ने टेंडर क्यों जारी किया?

  • जब कर्नाटक और तेलंगाना में ड्रोन के इस्तेमाल पर काम शुरू हुआ तो ICMR ने भी सोचा कि दूरदराज के इलाकों तक वैक्सीन पहुंचाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर सकते हैं। आईआईटी-कानपुर के साथ मिलकर उसने एक फिजिबिलिटी स्टडी की। यह देखा कि क्या यह संभव है? इसके लिए DGCA से जरूरी अनुमतियां ली गईं।
  • यह सब हो गया, तब ICMR की ओर से केंद्र सरकार के लिए वैक्सीन खरीद रही मिनीरत्न कंपनी एचएलएल इंफ्रा टेक सर्विसेज ने 11 जून को टेंडर जारी किए। इसमें कुछ शर्तों के साथ उन कंपनियों से प्रस्ताव मंगवाए गए, जो देशभर में दूरदराज के इलाकों में वैक्सीन की ड्रोन से डिलीवरी कर सकती हैं।
  • ड्रोन से वैक्सीन या सामान की डिलीवरी कब तक : कर्नाटक और तेलंगाना में जो प्रयोग चल रहे हैं, उनके नतीजों के आधार पर ही सब कुछ तय होगा। यह अनुमतियां DGCA को देनी हैं, जो प्रयोगों के आधार पर तारीखें तय करेगी। सब ठीक रहा तो इस मानसून में ही हम भारत में ड्रोन से डिलीवरी होते देखेंगे। वैसे, अच्छी बात यह है कि भारत में ड्रोन से सामान डिलीवरी की शुरुआत दवाओं और वैक्सीन के तौर पर हो रही है। आगे चलकर ई-कॉमर्स कंपनियां भी दूरदराज के इलाकों में डिलीवरी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर सकती हैं।



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