15-16 जून 2020, भारत के लिए सबसे मनहूस तारीख। गलवान घाटी में चीन के साथ हुई हिंसक झड़प में हमारे एक के बाद एक 20 जवान शहीद हो गए। आज उनकी शहादत को एक साल पूरा हो रहा है। उनकी पहली बरसी पर हमने बिहार, छत्तीसगढ़ और पंजाब के पांच शहीदों के परिवार से बात की। एक साल में उन पर क्या कुछ गुजरा, आज वे किस हाल में हैं? सरकार की तरफ से उन्हें क्या मदद मिली? इसे समझने की कोशिश की। आप भी पढ़िए हमारे जवानों की शहादत की 5 अमर कहानियां...
पहली कहानी : बेटा शहीद हुआ तो क्या, अब दोनों पोतों को भी फौज में भेजेंगे
मेरा बेटा शहीद हो गया, दुख तो बहुत है। उसी पर घर-परिवार का सारा अरमान था। हम खेती-किसानी करते हैं। इकलौता वही कमाने वाला था। कहकर गया था कि अबकी बार छुट्टी लेकर आएंगे तो मकान बनवाएंगे। आज भी मकान नहीं बना। पता नहीं अब बनेगा भी कि नहीं, लेकिन कोई शोक नहीं मनाना है। जो लड़ेगा वही न मरेगा। जिस दिन मुझे उसकी शहादत की खबर मिली उसी दिन मन में ठान लिया कि अपने दोनों पोतों को भी फौज में भेजेंगे। ये कहना है बिहार के सहरसा जिले के रहने वाले शहीद कुंदन के पिता निमिन्दर यादव का।
शहीद कुंदन यादव के पिता निमिन्दर यादव अपने बेटे की तस्वीर दिखाते हुए।
कुंदन 2012 में आर्मी में भर्ती हुए थे। अगले साल यानी 2013 में उनकी शादी हुई। अभी उनके दो बेटे हैं। एक 6 साल का और दूसरा 4 साल का। कुंदन के पिता के साथ ही उनकी पत्नी बेबी यादव भी कहती हैं कि हम अपने बच्चों को फौज में भेजेंगे। आखिरी बार 11 जून को उनकी बात कुंदन से हुई थी। पहाड़ों पर नेटवर्क नहीं होने के चलते हफ्ते में एक बार बात होती थी। जल्द ही छुट्टी लेकर घर आने की बात उन्होंने अपनी पत्नी से कही थी।
कुंदन दो भाई थे। उनका बड़ा भाई मानसिक रूप से ठीक नहीं है। जबकि पिता खेती-बाड़ी का काम संभालते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। हाल ही में बिहार सरकार की तरफ से उनकी पत्नी को नौकरी मिली है। कुंदन आखिरी बार फरवरी में घर आए थे।
अब तक नहीं बना स्मारक, सांसद-विधायक कहते हैं फंड ही नहीं है
कुंदन के पिता कहते हैं कि स्मारक और गांव के मुख्य द्वार पर गेट के लिए कई बार प्रशासन के पास गया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। बिहार चुनाव के समय हर दिन कोई न कोई नेता आता था और एक से बढ़कर एक वादा करके जाता था कि ई करेंगे, ऊ करेंगे, लेकिन आज तक कुछ नहीं किया।
गलवान घाटी में शहीद हुए कुंदन यादव के दोनों बच्चे। एक की उम्र 6 साल और दूसरे की 4 साल है।
सांसद दिनेश चंद्र यादव के पास भी कई बार गया। स्थानीय विधायक के पास भी गया। दोनों कहते हैं कि उनके पास फंड ही नहीं है। अभी कहां से बनवाएं। कोरोना बीतने दो फिर बात करना। पप्पू यादव भी चुनाव के टाइम पेट्रोल पंप खुलवाने का भरोसा दिलाए थे, लेकिन अब वे भी नहीं आते हैं। हम तो अपनी जमीन देने को तैयार हैं कि स्मारक बनवा दीजिए, लेकिन कोई सुने तब तो। कुंदन की शहादत के बाद पीएम मोदी ने फोन कर निमिन्दर से बात की थी।
दूसरी कहानी : शहीद अमन कुमार के घर तक जाने के लिए रोड भी नहीं है
मेरा बेटा देश के लिए शहीद हो गया, मेरी किसी से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन तकलीफ होती है। एक शहीद के परिवार को अलग-थलग छोड़ दिया गया। उसके गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं है, घर तक जाने के लिए रोड नहीं है। सरकार एक स्मारक भी नहीं बनवा पाई। एक गेट भी बनाया तो बस खानापूर्ति कर दिया। मंत्री जी ने वादा किया था, उनका वादा, वादा ही रह गया।
यह कहते कहते समस्तीपुर जिले के सुल्तानपुर पूरब के शहीद अमन कुमार के पिता सुधीर सिंह का गला रुंध जाता है। खुद को संभालते हुए कहते हैं कि पिछले साल चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय गांव आए थे। सड़क बनाने का वादा किया था, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई।
15 महीने पहले हुई थी शादी
24 साल के अमन 2014 में आर्मी में भर्ती हुए थे। पिछले दो साल से वे गलवान में तैनात थे।
सुधीर सिंह गांव में खेती-किसानी का काम करते हैं। वे कहते हैं कि अमन घर का एक मात्र कमाऊ लड़का था। उसी की बदौलत घर का खर्च चलता था। वो वहां से एक-एक पैसा बचाकर घर भेजता था। ताकि घर में किसी चीज की दिक्कत नहीं हो। 15 महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी। अब बिहार सरकार की तरफ से अमन की पत्नी को नौकरी मिली है।
हैदराबाद पोस्टिंग हो गई थी, कोरोना के चलते नहीं गए
24 साल के अमन 2014 में आर्मी में भर्ती हुए थे। पिछले दो साल से वे गलवान में तैनात थे। साल 2020 में उनकी पोस्टिंग हैदराबाद के लिए हुई थी, लेकिन कोरोना के चलते वे नहीं जा सके। सुधीर सिंह कहते हैं कि अमन आखिरी बार फरवरी में घर आया था और जुलाई में आने की बात कही थी। उनसे फोन पर भी नेटवर्क के चलते रोज बात नहीं होती थी। हफ्ते में एक दो बार ही फोन आता था। आखिरी बार शायद 11 तारीख को मेरी बात हुई थी। तब तक सबकुछ ठीक था। उन्होंने चीन या किसी तरह के तनाव की बात नहीं बताई थी। 16 जून की रात उसके यूनिट से शहादत की खबर मिली थी।
तीसरी कहानी : एक बेटा शहीद हुआ है, एक और भेजेंगे लेकिन डरेंगे नहीं
बिहार के वैशाली जिले के रहने वाले शहीद जय किशोर सिंह दो साल पहले ही सेना में भर्ती हुए थे। अभी उनकी उम्र महज 22 साल थी। उनके बड़े भाई नंद किशोर भी आर्मी में हैं। पिछले साल जब गलवान में झड़प हुई थी तब वे सिक्किम में पोस्टेड थे। छोटे भाई की शहादत की खबर आर्मी की तरफ से उन्हें ही मिली थी।
वे बताते हैं कि सेना में भर्ती होने से मेरा भाई बहुत खुश था। जब भी मुझसे बात होती थी तो कहता था कि कोई दिक्कत नहीं है और उसका मन लग रहा है। नेटवर्क नहीं मिलने के चलते महीने भर पहले बात हुई थी। मुझे पता था कि चीन से टेंशन है लेकिन ऐसी हिंसक झड़प होगी, इसका अंदाजा नहीं था।
शहीद जय किशोर सिंह अपनी मां के साथ। वे दो साल पहले ही सेना में भर्ती हुए थे।
नंद किशोर कहते हैं कि एक और छोटा भाई है, उसे भी हम सेना में भेजेंगे। एक के शहीद होने से हम डरने वाले नहीं हैं। उनके पिता भी कहते हैं कि लड़ाई लगा है तो पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है। हमेशा कदम अगाड़ी रहता है। तुम एक मारोगे हम इधर से एक और भेजेंगे। उधर शहीद जय किशोर की मां गुमसुम सी रहती हैं। हमेशा अपने बेटे की तस्वीर साथ रखती हैं। लोगों से कम ही बातचीत करती हैं।
गांव के लोग नहीं बनने दे रहे हैं स्मारक
वे कहते हैं कि बिहार सरकार की तरफ से छोटे भाई को नौकरी मिली है, लेकिन दुख इस बात का है कि अभी तक मेरे भाई का स्मारक नहीं बना। छुट्टी लेकर जब भी प्रशासन के पास जाता हूं तो आज आना कल आना करके टाल देते हैं। हम जमीन देने के लिए भी तैयार हैं। लेकिन गांव के लोग अड़चन लगा रहे हैं। उन्हें लालच है कि सरकार की तरफ से इसे पैसा मिला है तो कुछ ले लें।
चौथी कहानी : लड़की देखकर गए थे, शादी तय हो गई थी, लेकिन लौटे ही नहीं
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के रहने वाले गणेश राम कुंजाम बिहार रेजिमेंट के जवान थे। पिछले साल चीन के साथ हुई हिंसक झड़प में वे शहीद हो गए। उनकी छोटी बहन गंगा कुंजाम कहती हैं कि जब वे जनवरी में घर आए थे तब हम लोगों ने उनके लिए लड़की देखी थी। वे भी लड़की देखने गए थे। शादी का रिश्ता भी तय हो गया था। वे छुट्टी लेकर आते तो शादी होती लेकिन वे लौटे ही नहीं। हम लोगों ने तो तैयारी भी शुरू कर दी थी।
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के रहने वाले गणेश कुंजाम अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले सदस्य थे।
28 साल के गणेश 2011 में आर्मी में भर्ती हुए थे। उनके पिता इतवारु राम के पास थोड़ी सी जमीन है, खेती करते हैं। और कोई आमदनी का जरिया नहीं है। छोटी बहन को सरकार की तरफ से हाल ही में नौकरी मिली है।
घर के इकलौते चिराग थे कुंजाम
गणेश की बहन गंगा कहती हैं कि मेरा एक ही भाई था वो भी शहीद हो गया। वे ही एक थे जो नौकरी करते थे। अब तो सब जिम्मेदारी मुझ पर आ गई है। शहीद होने के एक महीना पहले उनसे मेरी बात हुई थी। तब तक सब कुछ ठीक था। वे नया मकान बनवाकर गए थे। लेकिन खुद ही नहीं रह पाए। हमें क्या पता था कि ऐसा कुछ होगा। अभी एक महीने ही तो उनकी गलवान में पोस्टिंग के हुए थे।
गंगा कहती हैं कि हमारी सरकार से एक ही मांग है कि भैया के लिए स्मारक बनवा दें। हम कलेक्टर के पास भी गए थे, लेकिन वे कह रहे हैं कि मूर्ति के लिए फंड नहीं आया है। ऐसे कैसे हो सकता है। सरकार को एक शहीद के लिए इतना तो करना ही चाहिए।
पांचवीं कहानी : हमें पता था चीन से टेंशन है, लेकिन उम्रभर का दर्द मिलेगा, इसका अंदेशा नहीं था
नायब सूबेदार सतनाम सिंह और उनकी पत्नी जसविंदर कौर। सतनाम सिंह के दो बच्चे हैं।
पंजाब के गुरुदासपुर जिले के रहने वाले नायब सूबेदार सतनाम सिंह 3 मीडियम रेजिमेंट के जवान थे। 1995 में उन्होंने आर्मी जॉइन की थी। उनका एक बेटा और बेटी है, जो अभी पढ़ाई कर रहे हैं। शहीद की पत्नी जसविंदर कौर कहती हैं कि 15 जून को उनसे एक मिनट के लिए बात हुई थी। नेटवर्क नहीं होता था इसलिए लंबी बात नहीं हो पाती थी, बस हाल चाल पूछा था।
वे कहती हैं कि हमें ये तो पता था कि चीन से सीमा पर तनातनी बढ़ी है। मन में थोड़ी चिंता भी थी, लेकिन उम्रभर का इतना बड़ा दर्द मिलेगा, इसका कोई अंदेशा नहीं था। जब वे शहीद हुए तो आर्मी की तरफ से हमें बताया गया कि उन्हें चोट लगी है। हमें तसल्ली हुई कि बच गए। लेकिन, सच हमसे छुपाया गया था। यहां के प्रशासन को जानकारी मिल गई थी कि वे शहीद हो गए हैं।
सतनाम सिंह 41 साल के थे। जसविंदर कहती हैं कि उन्हें इतना जल्दी नहीं जाना था। अभी तो घर के सब काम बाकी ही था। बच्चे भी पढ़ ही रहे हैं। उनकी जो पेंशन मुझे मिलती है, उससे घर का खर्च चलता है। सरकार ने बेटे को नौकरी देने की बात कही है। अभी वो ग्रेजुएशन कर रहा है, इसके बाद उसे नौकरी मिलेगी।
जसवंत कौर कहती हैं कि सरकार की तरफ से पूरी सहायता हमें मिली है। अभी भी लोग फोन करके हालचाल पूछते रहते हैं। प्रतिमा लगाने के लिए जमीन मिल गई है। उनके नाम पर एक स्कूल का भी नामकरण हुआ है। गांव के मुख्यद्वार पर उनके नाम का गेट लगा है।