बीकानेर। राजस्थान में थार के रेगिस्तान में दूर बैठे किसानों को मौसम विज्ञान की कोई जानकारी नहीं है, लेकिन वे सिर्फ हवा की रफ्तार देखकर बता देते हैं कि इस बार मानसून जल्दी आ रहा है या देर से। कम बारिश होगी या ज्यादा। वे यह भी पता लगा लेते हैं कि इस साल फसल पर टिडि्डयों का होगा या नहीं। यहां मौसम की भविष्यवाणी करने की यह कला सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होती रही है।
ठेठ राजस्थानी की भाषा में कहें तो ‘अच्छा जमाना आने वाला है।’ सदियों पुरानी इन पंक्तियों को आज भी सच मानें तो इस बार टिडि्डयों का ज्यादा प्रकोप नहीं होने वाला, मानसून भी अच्छा आने की उम्मीद की जा सकती है।
वैसे 16 और 17 जून की हवा पर विशेष नजर रखनी होगी। मृगशिरा नक्षत्र के इन नौंवे और दसवें दिन हवा तेज होने पर अकाल नहीं पड़ता और उसके अगले दो दिन हवा बेहतर होने पर ज्यादा तापमान भी नहीं रहता। इसके बाद भी हवा अगर तेज गति में रहती है तो किसी तरह की बीमारी भी नहीं फैलती। अगर कोरोना के मद्देनजर देखें तो गांवों में हवा की गति पर ध्यान रखना चाहिए। पश्चिमी राजस्थान में अकाल को दूरभग कहा जाता है।
काव्य के आधार पर होती है गणना
ग्रामीणों ने सदियों पुराने इन टपुकड़ों (काव्य पंक्तियों) को आज भी सहेजकर रखा है।
दोए टिड्डी दोए कातरा दोए मुसा दोए सांप
दोए मोया दुरभग पड़े दो मोया चढ़े ताप
खोडियो मिरग मोयजा सावन का दिन 17 ले
इन पंक्तियों में मृगशिरा नक्षत्र के बारे में बताया गया है। इस बार 8 जून से मृगशिरा नक्षत्र शुरू हो गया है। 14 दिन के मृगशिरा नक्षत्र को दो-दो दिन में बांटा जाता है। इन दिनों में हवा की रफ्तार और दिशा के आधार पर अलग-अलग भविष्यवाणी की जाती हैं। मृगशिरा नक्षत्र के पहले दो दिन अगर हवा अच्छी होती है तो टिड्डी का प्रकोप नहीं होता। इस बार 8 और 9 जून को रेगिस्तानी क्षेत्र में हवा की गति कमजोर नहीं रही। 10 और 11 जून को मृगशिरा नक्षत्र का चौथा और पांचवां दिन है। इन दो दिनों में अगर हवा अच्छी होती है तो कातरा का असर नहीं होता। कातरा एक तरह का कीड़ा है जो फसल को बर्बाद कर देता है।
हवा तेज रही तो सांप-बिच्छू का प्रकोप भी ज्यादा नहीं होगा
श्रीडूंगरगढ़ के किसानों का मानना है कि हवा की गति कुछ कम रही है, ऐसे में कातरा का प्रकोप थोड़ा बहुत परेशान कर सकता है। वहीं, 12 और 13 जून को मृगशिरा नक्षत्र का पांचवां और छठा दिन है। इन दो दिनों में हवा की गति तेज रहती है तो चूहों का प्रकोप कम होगा। रेगिस्तान में चूहे भी कई बार फसल को बर्बाद कर देते हैं। अगर मृगशिरा नक्षत्र के इन दिनों में हवा तेज होती है तो चूहे बिल से बाहर नहीं आते। इसी तरह 14 और 15 जून को हवा तेज रही तो सांप-बिच्छू का प्रकोप भी ज्यादा नहीं होगा।
सावन की भविष्यवाणी
सदियों पहले सावन की भविष्यवाणी भी हो जाती थी। यहां तक बता दिया जाता कि बारिश कब होगी। टपूकड़ो में कहा गया है कि ‘खोडियो मिरग मोयजा सावन का दिन 17 लें’ यानी अगर मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम दो दिन तेज हवा और आंधी नहीं आती है तो सावन के महीने में 17 दिन बाद बारिश होती है। आधा सावन बारिश के इंतजार में ही निकल जाता है। एक दोहे में कहा गया है कि ‘रोहण तपै, मिरग बाजै तो आदर अणचिंत्या गाजै।’ यानी यदि रोहिणी नक्षत्र में गर्मी अधिक हो तथा मृगशिरा नक्षत्र में आंधी जोरदार चले, तो आर्द्रा नक्षत्र के लगते ही बादलों की गरज के साथ वर्षा होने की संभावना बन सकती है।
खेत में झोपड़ी बनानी है या नहीं?
मौसम में हवाओं को देखकर तब किसान को खेत में जाने या फिर नहीं जाने की सलाह दी जाती थी। एक दोहे में कहा गया है कि
‘मिरगा बाव न बाजियौ, रोहण तपी न जेठ।
क्यूं बांधौ थे झूंपड़ौ, बैठो बड़ले हेठ।।’
इसका मतलब है अगर मृगशिरा नक्षत्र में हवा न चले और रोहणी नक्षत्र न तपे तो फिर बरसात नहीं होगी। ऐसे में किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे खेतों में झोपड़ियां न बनाएं, क्योंकि इनकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। आर्द्रा नक्षत्र की शुरुआत में ही अगर बूंदा-बांदी हो जाए तो इसे शुभ माना जाता है और जल्दी ही बरसात होने की आशा बंधती है।
कितनी सच होती हैं ये भविष्यवाणी?
आमतौर पर यह भविष्यवाणी सही साबित होती है, क्योंकि हवाओं की गति और मौसम का आपस में संबंध है। जब भी रेगिस्तानी क्षेत्र में अकाल के हालात होते हैैं तब किसान खेत में खर्च नहीं करता। उसे पता होता है कि इस बार अकाल ही पड़ना है। खासकर जिन किसानों के खेतों में सिंचाई का साधन नहीं है उसके लिए ये भविष्यवाणियां काफी मददगार साबित होती हैं।
टिड्डी की भविष्यवाणी
इस बार टिड्डी नियंत्रण विभाग ने फिर से टिडि्डयों के हमले की आशंका जताई है। इन टपुकड़ों के अनुसार जहां हवा तेज चली है, वहां टिडि्डयों का असर नहीं होगा। अगर किसी क्षेत्र में मृगशिरा नक्षत्र के दौरान हवा तेज रफ्तार से नहीं बही है तो वहां इसकी आशंका रह सकती है। पिछले साल हवा कम रफ्तार से चली तो श्रीडूंगरगढ़ में भी टिडि्डयों का असर देखा गया।