जैविक कृषि के जानकार और गांधीवादी विचारक पद्मश्री कुट्टी मेनन का इंदौर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। शुक्रवार सुबह उन्हें हार्ट अटैक आया था, जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। देर रात तक स्थिति में कोई सुधार न होने के कारण उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा, लेकिन फिर भी उन्हें नहीं बचाया जा सका।
कुट्टी मेनन को उनकी सेवाओं के कारण और 1991 में पद्मश्री से विभूषित किया गया था। इसके पहले उन्हें इंदौर में कस्तूरबा गांधी के नाम पर स्थापित कस्तूरबा ग्राम में उनके जैविक खेती और पर्यावरण मित्र सिंचाई में किए योगदान के लिए 1989 में प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बता दें कि मूलतः केरल के त्रिश्शूर जिले के कोडुंगलुर कस्बे में 1940 में जन्मे कुट्टी मेनन एक बार इंदौर आए तो फिर यहीं के होकर रह गए।
ऐसा बनाया था घर की 44 डिग्री में भी एसी की जरूरत नहीं
कुट्टी मेनन का संवाद नगर मकान नंबर-46 घर कम और पेड़-पौधों के बीच छिपी कोई कुटिया अधिक नजर आती है। एक तरह से उन्होंने घर में ही जंगल बसा लिया था। करीब 3000 वर्गफीट के इस प्लॉट का 2000 वर्गफीट एरिया खुला है। यह ईको फ्रेंडली आर्किटेक्चर और ईको फ्रेंडली लाइफ स्टाइल की भी मिसाल है। उन्होंने अपना ये आशियाना इस ढंग से बनाया कि ये गर्मी में ठंडा और ठंड में गर्म रहता है। उनके घर में 2 हजार से ज्यादा पौधे लगे हैं। भरी गर्मी में जब इंदौर में पारा 44 के आसपास पहुंच जाता है, तब भी यहां एसी की जरूरत नहीं होती है।
2018 में मिलने पहुंचे थे कैलाश विजयवर्गीय।
270 किस्म के 2000 से ज्यादा पौधे लगे हैं घर में पर्यावारणविद् कुट्टी मेनन के यहां 270 किस्म के 2000 से भी ज्यादा पौधे लगे थे। इनमें तरह-तरह के फल, फूल और सब्जियों के अलावा गरम मसाले के पौधे भी शामिल थे। शायद ही कोई सब्जी ऐसी होगी जो उनके यहां नहीं उगती थी। इसके अलावा लीची का पेड़ भी थे और काॅफी का भी। उन्होंने एक आल स्पाइसेस नाम का पौधा लगाया थे, इसकी खासियत ये है कि इसकी पत्तियों में सभी तरह के खड़े मसाले की खुशबू आती थी। पेड़ पौधों की पत्तियों से वे घर में ही केंचुआ खाद बनाते थे। उन्होंने मच्छरों से निपटने के लिए कुछ खास तरह के पौधे भी लगा रखे थे ।
अपने घर में कचरे से खाद बनाते मेनन। (फाइल फोटो)
डिस्पोजेबल ग्लास कप और ग्लास में लगाते थे पौधे
मेनन अपने घर से कचरे का एक तिनका भी बाहर नहीं फेंकते। किचन और पेड़ पौधे के कचरे से वो खाद बनाते थे और घर में आए डिस्पोजेबल कप, ग्लास और डिब्बों का इस्तेमाल पौधे लगाने में कर लेते थे। चाय के कप में मिट्टी डालकर वे उसमें बीज लगा देते थे और अंकुर निकलने पर पौधा लगाने के लिए किसी मित्र, परिचित, पड़ोसी या रिश्तेदार को दे देते थे।