70 हजार की आबादी वाला लक्षद्वीप इन दिनों उबल रहा है। हर जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। सोमवार को यहां लगभग हर कोई हाथों में पोस्टर लिए खड़ा दिखा। चाहे चमकीली रेत हो, पानी के भीतर, घरों के बाहर, फिरोजा लगून के किनारों पर, फिशिंग बोट्स पर, या फिर बीच हाउस हो। हर जगह बस एक ही मंजर नजर आया। हाथों में पोस्टर लिए लोग, जिन पर लिखा था- सेव लक्षद्वीप। बड़ी बात ये है कि इस प्रदर्शन में केंद्र में सत्तारूढ़ BJP की स्थानीय यूनिट भी शामिल हुई।
शबाना नूर अपने बेटे के साथ हाथ में पोस्टर लिए खड़ी दिखीं, जिस पर लिखा था, 'हम अपनी मिट्टी के मालिक हैं, हमारी सेवा करो, हम पर हुकूमत मत करो। हम विकास के ऊपर शांति को तरजीह देते हैं।' नूर के बेटे के भी हाथ में एक पोस्टर था, जिस पर लिखा था, 'एलडीएआर को वापस लो, लक्षद्वीप को बचाओ।'
इस प्रदर्शन के पीछे बड़ी वजह है- हाल के महीनों में लक्षद्वीप प्रशासन की तरफ से किए गए बदलाव। दरअसल, केंद्र सरकार यहां ग्लोबल टूरिज्म और डेवलपमेंट को बढ़ावा देना चाहती है। इसका मतलब है, यहां बाहरी लोगों की दखल और पहुंच बढ़ जाएगी। स्थानीय लोग इसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा मान रहे हैं।
शबाना नूर अपने बेटे के साथ हाथ में पोस्टर लिए खड़ी हैं जिस पर लिखा है, 'हम अपनी मिट्टी के मालिक हैं, हमारी सेवा करो, हम पर हुकूमत मत करो।'
मिनीकॉय द्वीप की रहने वाली असीरा मनीका भी सोमवार को हुए प्रदर्शनों में शामिल थीं। असीरा कहती हैं, 'ये प्रदर्शन हमारे अधिकारों, हमारी मानवता और हम सब की शांति के लिए है।'
MBA के छात्र अफसाल हुसैन कहते हैं, 'नए प्रशासन के दमन के खिलाफ यहां की पूरी आबादी ने भूख हड़ताल की। ये आजादी के बाद यहां इस तरह का पहला प्रदर्शन था। वे कहते हैं, 'बीफ पर बैन और हर तरह के सनकी नियम असल में कॉर्पोरेट और राजनीतिक हितों को ढंकने का ढकोसला हैं। सबसे बड़ा मजाक तो गुंडा एक्ट है। ये ऐसी जगह लाया जा रहा है जहां भारत में सबसे कम अपराध होते हैं।'
इस विवाद की शुरुआत कब हुई?
लक्षद्वीप दुनिया के ऐसे चुनिंदा इलाकों में है, जहां दिसंबर 2020 तक कोरोना संक्रमण नहीं पहुंचा था। जब वैक्सीन आई भी नहीं थी, लक्षद्वीप कोरोना मुक्त इलाका था। दिसंबर 2020 में लक्षद्वीप के प्रशासक दिनेश्वर शर्मा का निधन हो गया। जिसके बाद प्रफुल्ल पटेल को इस यूनियन टेरिटरी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। प्रभार संभालते ही पटेल ने कोविड को लेकर नए प्रोटोकॉल बनाए और लक्षद्वीप में दाखिल होने के लिए 7 दिन के अनिवार्य क्वारैंटाइन नियम को हटा दिया। जिससे लोग कोरोना निगेटिव रिपोर्ट के आधार पर बिना क्वारैंटाइन हुए यहां दाखिल होने लगे। इससे यहां भी संक्रमण फैल गया। अब तक यहां संक्रमण के 8 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।
फसीला इब्राहीम एडवोकेट हैं। वह कहती हैं कि हमें जरूरत है अच्छे हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की। हमें माइनिंग, क्वेरी या बड़े-बड़े हाईवे की जरूरत नहीं है।
एक्टिविस्ट और अधिवक्ता फसीला इब्राहीम कहती हैं, 'जहां जीरो कोविड केस थे, वहां नए SOP बनाते ही कोरोना केस आने लगे। लक्षद्वीप के लोगों और पंचायत ने इसका शुरू से ही विरोध किया था। लोगों को लग रहा था कि प्रशासन हमारे हित में नहीं है। हम एक छोटा द्वीपसमूह हैं, जहां हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत मजबूत नहीं हैं। ऐसी जगह इस तरह का कदम उठाना सही नहीं था।' प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ प्रोटेस्ट की शुरुआत यहीं से हुई।
एक के बाद एक बनाए नए नियम-कानून
जनवरी में लक्षद्वीप प्रशासन ने विरोध को रोकने के लिए प्रिवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्टीविटीज एक्ट (जिसे लक्षद्वीप में गुंडा एक्ट भी कहा जा रहा है) प्रस्तावित किया। जिसके तहत सरकार का विरोध करने पर किसी को भी एक साल तक बिना जमानत के जेल में रखा जा सकता है।
फरवरी में लक्षद्वीप प्रशासन ने पंचायत कानून में बदलाव लाने की बात की। लक्षद्वीप में कोई विधानसभा नहीं है। यहां एक संसद सदस्य है और पंचायत के सदस्य निर्वाचित होते हैं। पंचायत की शक्तियां लक्षद्वीप के लोगों के लिए बहुत अहम हैं। फरवरी में प्रस्तावित कानून के तहत उन लोगों को चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया, जिनके दो से अधिक बच्चे हैं। साथ ही कई अहम विभागों में पंचायत की शक्तियों को सीमित करने की बात कही गई है।
फसीला इब्राहिम कहती हैं, 'शिक्षा, स्वास्थ्य, एनिमल हसबैंड्री जैसे विभागों में पंचायत की शक्तियों को कम किया गया है और इन्हें सीधे प्रशासन के हाथों में देने की बात है। पंचायत के लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया है।
इन दिनों लक्षद्वीप में हर जगह प्रशासन के नए आदेशों का विरोध हो रहा है। लोग अपने घरों से भी विरोध जता रहे हैं।
इसके बाद प्रशासन ने एक और नया कानून प्रस्तावित कर दिया। इसका नाम है लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेजोल्यूशन (एलडीएआर)। प्रशासन का तर्क है कि ये लक्षद्वीप के विकास के लिए हैं, लेकिन लक्षद्वीप के लोग इसे अपनी जमीन के लिए खतरा मान रहे हैं।
फसीला इब्राहिम कहती हैं, 'इस एक्ट के तहत प्रशासन को ये शक्ति दी गई है कि वो लक्षद्वीप के किसी भी इलाके को डेवलपमेंट एरिया घोषित कर सकता है। डेवलपमेंट कैसे होगा, ये प्रशासन तय करेगा। जमीन के मालिकों के क्या अधिकार होंगे, ये नहीं बताया गया है। लोगों में ये डर है कि उन्हें उनकी जमीन से हटा दिया जाएगा। लक्षद्वीप में सबसे ज्यादा विरोध इसी एक्ट का हो रहा है।'
हमें हाईवे और इस तरह के विकास की जरूरत नहीं है
लक्षद्वीप का कुल इलाका सिर्फ 32 वर्ग किलोमीटर का है। इसका सबसे बड़ा द्वीप सिर्फ पांच वर्ग किलोमीटर में फैला है। कुछ टापू तो छोटे गांवों के बराबर हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि यहां के सभी 36 द्वीपों का कुल एरिया उत्तर प्रदेश के नोएडा के सातवें हिस्से के बराबर है। यहां के लोग भी सवाल कर रहे हैं कि जहां जमीन पहले से ही बहुत कम है, वहां ऐसे डेवलपमेंट की क्या जरूरत है?
एलडीएआर के तहत खनन, क्वेरी, रेलवे और नेशनल हाईवे डेवलप करने की बात की जा रही है। फसीला कहती हैं, 'प्रशासन का तर्क है कि वो लक्षद्वीप को डेवलप करना चाहता है, लेकिन हमारा सवाल है कि हमें हमारी जमीन से हटाकर वो किसके लिए डेवलपमेंट करना चाहते हैं?'
वे कहती हैं, 'अभी जो सड़के हैं वो हमारे लिए काफी हैं, हमें हाईवे की जरूरत नहीं है। लक्षद्वीप पर पहले से ही क्लाइमेट चेंज का गहरा असर हो रहा है। ऐसे में यहां जबरदस्ती विकास थोपना न तो इस द्वीप के हित में हैं और ना ही यहां के लोगों के हित में।'
लक्षद्वीप में करीब 95% आबादी मुसलमान है। प्रशासन के नए फैसलों के विरोध में पुरुषों के साथ महिलाएं भी शामिल हैं।
प्रशासक न इस द्वीप को समझते हैं और ना ही यहां के लोगों को
लक्षद्वीप के लोग बहुत सादा जीवन जीते हैं। यहां के लोग अपनी इकोलॉजी और इकोसिस्टम को समझते हैं। अधिकतर लोग मछली पकड़ने या नारियल से जुड़े उत्पाद बनाने के काम में जुटे हैं। इसके अलावा यहां कोई इंडस्ट्री या और कोई काम नहीं है।
फसीला कहती हैं, 'लक्षद्वीप के लोग वही काम करते हैं जो यहां के एन्वायरमेंट और इकोलॉजी को सपोर्ट करते हैं। यहां इससे ज्यादा विकास की जरूरत नहीं है। विकास इन आइलैंड को तबाह कर देगा। हमें जरूरत है अच्छे हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की। हमें माइनिंग, क्वेरी या बड़े-बड़े हाईवे की जरूरत नहीं है।'
लक्षद्वीप दिखने में मालदीव जैसा है। ऐसे में लक्षद्वीप की तुलना मालदीव से भी की जाती है। मालदीव में पर्यटन काफी विकसित है। इस लिहाज से लक्षद्वीप प्रशासन का तर्क है कि उसे भी मालदीव की तरह ही डेवलप किया जाना चाहिए ताकि आमदनी बढ़ सके। फसीला इस तुलना को नकारते हुए कहती हैं, 'मालदीव एक देश है। उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह पर्यटन पर निर्भर है, लेकिन लक्षद्वीप भारत का एक छोटा सा केंद्र शासित प्रदेश है। लक्षद्वीप को मालदीव की तरह विकसित करने की जरूरत नहीं है।'
प्रशासन का विरोध करने वाले लोग कहते हैं कि ये प्रदर्शन हमारे अधिकारों, हमारी मानवता और हम सब की शांति के लिए है।
वे कहती हैं कि लक्षद्वीप का इकोलॉजिकल सिस्टम मालदीव जैसा नहीं है। मालदीव में करीब दो हजार द्वीप हैं जो एक तरह से दूसरे द्वीपों और एटोल से सुरक्षित हैं, लेकिन लक्षद्वीप में ऐसा नहीं है। यहां के द्वीप गहरे समदंर में हैं। मानसून इन द्वीपों को प्रभावित करता है। यदि आप यहां कोई वॉटर विला शुरू करते हैं तो हर मानसून में उसकी मरम्मत करनी होगी। बात दरअसल ये है कि लक्षद्वीप के प्रशासक न इस द्वीप को समझते हैं और ना ही यहां के लोगों को।
नए-नए नियमों से परेशान हैं लोग
लक्षद्वीप प्रशासन बहुत तेजी से निर्णय ले रहा है और नए-नए नियम कानून बना रहा है। शुक्रवार को लिए गए एक निर्णय के तहत मछुआरों की हर नाव में सरकारी अधिकारी तैनात करने का प्रावधान किया गया है। लक्षद्वीप के लोग इसे अपनी निजता और कारोबारी अधिकारों का हनन मान रहे हैं।
फसीला इब्राहिम कहती हैं, 'मछली पकड़ना यहां के लोगों का मूल काम है। प्रशासन अब नावों पर अपने लोग तैनात कर रहा है। यानी यहां के लोगों को कुछ समझा ही नहीं जा रहा है। लोगों की प्राइवेसी और प्रोफेशन को निशाना बनाया जा रहा है। एडमिनिस्ट्रेशन चाहता है कि लोग यहां से चले जाएं।'
लक्षद्वीप पारंपरिक तौर पर केरल से जुड़ा रहा है। यहां की आबादी की जड़ें भी केरल के मालाबार कोस्ट पर रहने वाले लोगों से जुड़ती हैं। लक्षद्वीप के लोग केरल के जरिए ही कारोबार करते हैं। लेकिन अब प्रशासन केरल के कोच्चि में स्थित बेयपोर बंदरगाह पर मैंगलुरू बंदरगाह को तरजीह दे रहा है। इससे भी लक्षद्वीप के लोगों में गुस्सा बढ़ा है।