10 जून को ज्येष्ठ महीने की अमावस्या है। सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए इस पर्व पर तीर्थ स्नान, दान और व्रत करने का महत्व बताया गया है। ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हर तरह के पाप और दोष दूर हो जाते हैं। साथ ही कई गुना पुण्य मिलता है। इस अमावस्या पर भगवान शिव-पार्वती, विष्णुजी और वट वृक्ष की पूजा की परंपरा है। इसलिए ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को पुराणों में बहुत ही खास माना गया है।
अमावस्या पर तृप्त होते है पितर
ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को तीर्थ स्नान के साथ ही तर्पण और श्रद्धा अनुसार अन्न एवं जल दान किया जाता है। ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं। इस तिथि पर सुबह जल्दी उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देकर पितरों की शांति के लिए तर्पण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण भोजन और जल दान का संकल्प लेना चाहिए। दिन में अन्न और जल दान करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ संतुष्ट होते हैं और परिवार में समृद्धि आती है।
दांपत्य सुख के लिए शिवजी की पूजा
ज्येष्ठ अमावस्या पर स्नान, दान और पुण्य कर्म करने का विशेष महत्व है। इसके साथ ही ये दिन उन लोगों के लिए भी बेहद खास है, जिनकी शादी होते होते रुक जाती हैं या फिर शादीशुदा जीवन में किसी तरह की कोई रुकावट आ रही हो। तो ऐसे लोगों को इस दिन सफेद कपड़े पहनकर शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा हर परेशानी दूर हो जाती है।
सौभाग्य और पति की लंबी उम्र के लिए वट पूजा
नारद पुराण में इस दिन वट पूजा का विधान बताया गया है। इस दिन महिलाएं श्रृंगार करके पति की लंबी उम्र की कामना से वट वृक्ष यानी बरगद की पूजा की करती हैं। इस दिन बरगद की पूजा के साथ सत्यवान और सावित्री की कथा भी सुनती हैं। ग्रंथों के अनुसार सावित्री के पतिव्रता तप को देखते हुए इस दिन यमराज ने उसके पति सत्यवान के प्राण वापस करते हुए उसे जीवनदान दिया था।