न किरायेदारों पर मनमाने नियम थोपे जा सकेंगे, न ही मकान मालिक को कोई परेशान कर सकेगा; नए कानून के बारे में सबकुछ

Posted By: Himmat Jaithwar
6/7/2021

मकान किराये पर देना और लेना, दोनों में ही खूब झंझट है। इन्हीं परेशानियों को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते मॉडल टेनेन्सी एक्ट को मंजूरी दी है। यह कानून किराये और इससे जुड़े मसलों पर फ्रेमवर्क की तरह काम करेगा। राज्य अपने रेंट कंट्रोल एक्ट में संशोधन कर या इसे जस का तस अपने यहां लागू कर सकते हैं।

वैसे तो इस कानून में किरायेदार और मकान मालिक, दोनों के लिए ही नियम बनाए गए हैं। एडवांस किराया कितना लिया जा सकेगा? औपचारिक रेंट एग्रीमेंट कैसे बनेगा? रेंट एग्रीमेंट की अवधि खत्म होने पर क्या होगा? इस तरह के तमाम प्रश्नों के जवाब इसमें दिए हैं। एग्रीमेंट में होने वाले प्रावधानों को भी स्टैंडर्डाइज किया गया है। ताकि कोई मकान मालिक मनमानी शर्तें किरायेदारों पर न थोपें। हमने इस नए कानून के प्रावधानों को समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट आशुतोष शेखर पारचा की मदद ली। 

मॉडल टेनेन्सी कानून क्या है?

  • देश में इस समय किरायेदारी से जुड़े मामलों के लिए रेंट कंट्रोल एक्ट 1948 लागू है। इसके आधार पर राज्यों ने अपने कानून बनाए हैं। महाराष्ट्र में रेंट कंट्रोल एक्ट 1999 लागू है तो दिल्ली में रेंट कंट्रोल एक्ट 1958 और चेन्नई में अपना तमिलनाडु बिल्डिंग (लीज एंड रेंट कंट्रोल) एक्ट 1960 लागू है।
  • दरअसल, जमीन राज्यों का विषय है, इसलिए नियम उनके ही चलते हैं। मॉडल कानून केंद्र की एक कोशिश है पूरे देश में एक-सा कानून बनाने की। यह उनके लिए फ्रेमवर्क तय करेगा, जिसके तहत वे अपने नियमों को आकार दे सकेंगे।
  • मॉडल टेनेन्सी एक्ट का उद्देश्य देश में किरायेदारी से जुड़े मामलों के लिए फ्रेमवर्क तैयार करना है ताकि हर आय वर्ग के लोगों को किराये पर मकान उपलब्ध हो सकें। यह कानून मकान को किराये पर देने की प्रक्रिया को धीरे-धीरे औपचारिक बाजार में बदलकर उसे संस्थागत रूप देने की कोशिश है।
  • रेंटल मार्केट को संस्थागत बनाने को बढ़ावा देता है ताकि खाली मकानों का बेहतर इस्तेमाल हो सके। उदाहरण के लिए अमेरिका में रेंटल मार्केट में कई बड़ी कंपनियों का प्रभुत्व है। वहां बड़ी संख्या में प्रॉपर्टी मैनेजर्स भी काम करते हैं।

रेंट कंट्रोल कानून में क्या खामियां थीं, जो उसे बदलने की जरूरत पड़ी?

  • नाम से ही साफ है कि यह रेंट को कंट्रोल करता था। उसके पीछे विचार यह था कि मनमाने ढंग से किराया न बढ़ाया जाए और किरायेदारों को घर से बेवजह बाहर न निकाला जाए। इसका गलत फायदा भी उठाया गया। किरायेदारों ने मकानों पर कब्जा कर लिया। इससे मकान मालिक किरायेदार रखने से डरते हैं।
  • रेंट कंट्रोल एक्ट किरायेदारों और मकान मालिकों के लिए पारदर्शी, पेशेवर और बेहतर इकोसिस्टम नहीं देता। इसमें दो दशकों से कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। किराये की ऊपरी सीमा भी 1990 के दशक की है। यही वजह है कि 2011 की जनगणना के अनुसार आज एक करोड़ से अधिक मकान खाली पड़े हैं।
  • अब तक जो भी रेंट एग्रीमेंट हो रहे थे, वे अनौपचारिक होते थे। मकान मालिक मनमाने नियम डालते थे। मुंबई और बेंगलुरू जैसे शहरों में तो एक-एक साल का सिक्योरिटी डिपॉजिट ले रहे थे। कानूनी रूप से जानकार किरायेदारों से डील करने में मकान मालिकों को दिक्कत आ रही थी।
  • पुराने रेंट कंट्रोल कानून राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील हैं। दक्षिण मुंबई जैसे इलाकों में जहां प्रॉपर्टी पर कई दशकों से किरायेदारों का कब्जा है। किरायेदार बेहद कम किराये पर रेसिडेंशियल और कमर्शियल प्रॉपर्टी पर कब्जा कर बैठे हैं।

किरायेदारों और मकान मालिकों के लिए क्या नया होगा?

  • पुराने रेंट कंट्रोल कानूनों में ऊपरी सीमा होने से मकान मालिक बरसों बाद भी काफी कम किराया पा रहे हैं। नए कानून में किराये की सीमा तय नहीं की है। पर रेंट एग्रीमेंट अनिवार्य किया है। इसे जिले की रेंट अथॉरिटी में सबमिट करना होगा।
  • किरायेदारी का एग्रीमेंट या कोई भी दस्तावेज जमा करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म होगा, जो राज्य में प्रचलित भाषा में उपलब्ध होगा। यह एग्रीमेंट मकान मालिक और किरायेदार की भूमिका और जिम्मेदारियों को स्पष्ट करेगा और विवादों को बचाएगा। मौखिक एग्रीमेंट्स को मान्यता नहीं दी जाएगी।
  • किरायेदार को सिक्योरिटी डिपॉजिट देना होगा। दो महीने के किराये से अधिक नहीं होगा। गैर-आवासीय संपत्ति के लिए एक महीने का किराया डिपॉजिट हो सकता है।
  • अगर किरायेदार परिसर का दुरुपयोग करता है तो रेंट कोर्ट मालिक को प्रॉपर्टी पर फिर से कब्जा करने की अनुमति देगा। दुरुपयोग में अनैतिक या गैरकानूनी गतिविधि, समुदाय को नुकसान पहुंचाने या पड़ोसियों को परेशान करना शामिल है।
  • किरायेदार एग्रीमेंट की अवधि खत्म होने के बाद भी मकान खाली करने से इनकार करता है तो मकान मालिक पहले दो महीने दोगुना और उसके बाद चार गुना किराया वसूल सकता है।

नए कानून को बनाने का आधार क्या है?

  • 2022 तक हाउसिंग फॉर ऑल मिशन (प्रधानमंत्री आवास योजना- अर्बन या PMAY-U) लॉन्च होने से पहले 2015 में यह तय किया गया कि जो दो करोड़ घर बनाए जा रहे हैं, उनमें से 20% किराये के लिए होंगे। यह फैसला केंद्र की रेंटल हाउसिंग पर बने टास्क फोर्स की 2013 की रिपोर्ट के आधार पर था। इसमें कहा गया था कि अफोर्डेबल ऑनरशिप हाउसिंग के बजाय सीधे-सीधे अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कमजोर तबकों से जुड़ी परेशानियों को दूर करेगी और आर्थिक वृद्धि के रास्ते खोलेगी।
  • केंद्र सरकार ने PMAY-U में रेंटल कम्पोनेंट के लिए 6,000 करोड़ रुपए रखे हैं। रेंटल हाउसिंग स्टॉक बनाने में होने वाले खर्च में 75 प्रतिशत हिस्सा केंद्र का करेगा। बची हुई राशि को राज्य, शहरी स्थानीय निकाय या एनजीओ या सीएसआर गतिविधियों के जरिए जुटाया जाएगा।

क्या राज्यों के लिए इस कानून को लागू करना जरूरी है?

  • नहीं। राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अपने रेंट कंट्रोल कानूनों में आवश्यक बदलाव कर सकते हैं या नए कानून को लागू कर सकते हैं। चूंकि, यह नियम बाध्यकारी नहीं हैं, इस वजह से किरायेदारी से जुड़े मसले राजनीतिक इच्छाशक्ति से ड्राइव होते हैं।
  • नए कानून में तीन स्तरों पर विवादों के निराकरण की व्यवस्था की गई है। जिला स्तर पर रेंट अथॉरिटी बनानी होगी। राज्यों को समय, संसाधन और प्रयास करने होंगे, तब जाकर यह बन सकेंगी। यह निचले स्तर की ज्युडिशियरी का बोझ कम करेगा।
  • मॉडल एक्ट नए मामलों पर लागू होगा, पुराने पर नहीं। अगर कोई पुराना विवाद है तो वह पुराने कानूनों के तहत ही हल होगा। उन पर नया कानून लागू नहीं होगा।

यह इकोनॉमी के लिए किस तरह फायदेमंद है?

  • सरकार का मानना है कि यह कानून रेंटल हाउसिंग के मार्केट को फॉर्मलाइज करेगा। खाली संपत्तियों को किराये के लिए उपलब्ध कराएगा। रेंटल यील्ड बढ़ाएगा। परेशान करने वाली पॉलिसी दूर करेगा। रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया से जुड़ी दिक्कतों को दूर करेगा। पारदर्शिता बढ़ाएगा और अनुशासन लाएगा।



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