ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की अपरा एकादशी 6 जून, रविवार को है। इसे अचला एकादशी भी कहते हैं। इस दिन स्नान, दान के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा और व्रत भी किया जाता है। जिससे जाने-अनजाने में हुए पापों का दोष नहीं लगता। संकट दूर होते हैं और इच्छाएं भी पूरी होती हैं। श्रीकृष्ण ने इस एकादशी के बारें में खुद बताया था। इसलिए महाभारत में इस व्रत का जिक्र किया गया है।
अपरा एकादशी की पूजा विधि
- धर्मग्रंथों के जानकार काशी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि इस दिन सूरज उगने से पहले उठकर नहाना चाहिए। अभी तीर्थ स्नान नहीं कर सकते इसलिए पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाकर नहाने से तीर्थ स्नान का फल मिलता है।
- नहाने के बाद पूजा की तैयारी कर लें और आसन पर बैठ जाएं। फिर पूरे दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु-लक्ष्मीजी की पूजा और श्रद्धा के हिसाब से जरूरतमंद लोगों को दान देने का संकल्प लें। इसके बाद भगवान की पूजा शुरू करें। पूजा करने के बाद कथा सुनें।
- पूर्व दिशा की ओर मुंह कर के भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी का ध्यान कर के उन्हें प्रणाम करें। फिर ऊं लक्ष्मी नारायणाय नम: मंत्र बोलते हुए भगवान की मूर्तियों को एक एक कर के गंगाजल, शुद्ध पानी, दूध और पंचामृत से अभिषेक करें।
- इसके बाद फिर चंदन, मौली, अक्षत, अबीर, गुलाल, कुमकुम, हल्दी, मेहंदी, जनेऊ, फूल और जो भी पूजा सामग्री हो सब चढ़ा दें। फिर धूप-दीप अर्पित कर के मौसमी फल और नैवेद्य लगाकर आरती करें और प्रसाद बांट दें।
खत्म हो जाते हैं संकट और पाप
पद्म पुराण और महाभारत में बताया गया है कि इस एकादशी का व्रत करने से हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती हैं। बताया जाता है कि पांडवों ने भी इस एकादशी का व्रत किया था तभी उनकों संकट भरे दिनों से छुटकारा मिला। इस व्रत को करने से जाने-अनजाने में हुए पाप का दोष भी नहीं लगता। इसलिए पांडवों को अपने ही भाइयों और परिवार वालों की हत्या का दोष नहीं लगा।
डॉ. मिश्र बताते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु-लक्ष्मी जी की पूजा करने से लक्ष्मी अचला यानी स्थिर रहती हैं। इससे कभी धन की कमी नहीं आती और समृद्धि बढ़ती है।