दरभंगा। बिहार के दरभंगा की रहने वाली साइकिल गर्ल ज्योति कुमारी के पिता मोहन पासवान का हार्ट अटैक से निधन हो गया। उन्होंने सोमवार को पैतृक गांव सिरहुल्ली में अंतिम सांस ली। ज्योति वही लड़की है, जिसने पिछले लॉकडाउन में बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर करीब 1200 किलोमीटर गुरुग्राम से दरभंगा अपने गांव 8 दिन में पहुंची थी।
इस वाक्ये के बाद ज्योति के कारनामे की चर्चा दुनियाभर के मीडिया में हुई। उसकी तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बेटी इवांका ट्रम्प ने भी की थी। इवांका ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि 15 साल की ज्योति कुमारी ने अपने जख्मी पिता को साइकिल से 7 दिनों में 1,200 किमी दूरी तय करके अपने गांव ले गई। यह भारतीयों की सहनशीलता और उनके अगाध प्रेम की भावना का परिचायक है।
'इतना ही नहीं, फिल्मकार विनोद कापड़ी ने ज्योति के ऊपर फिल्म बनाने को लेकर भी करार किया था। विनोद कापड़ी ने कहा कि ज्योति लाखों लड़कियों के लिए आज प्रेरणा हैं और ऐसे में उन पर फिल्म बनाया जाना जरूरी है। उन्होंने बताया कि वह ज्योति और उनके पिता की कहानी को अलग तरह से पेश करना चाहेंगे, क्योंकि इसमें पिता और पुत्री का संघर्ष है।
ज्योति के पिता के निधन के बाद अब परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है। खुद ज्योति ने अपने परिवार की मदद की अपील की है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मदद की गुहार लगाई है।
बता दें कि इसी साल 25 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ज्योति कुमारी से वर्चुअली बात की थी। साइकिल गर्ल ज्योति इस बार प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार 2021 से भी नवाजी जाएंगी।
पिता की मौत के बाद बिलखती साइकिल गर्ल ज्योति।
दिल्ली में रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालते थे ज्योति के पिता
ज्योति के पिता मोहन पासवान दिल्ली में रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालते थे। एक हादसे में उनका घुटना टूट गया। जख्म तो भर गए, लेकिन अब वह ठीक से चल भी नहीं पाते हैं। परिवार इस संकट से उबर पाता इससे पहले ही लॉकडाउन लग गया। जमा किए गए पैसे और राशन खत्म हो गए तो भूखे मरने की नौबत आ गई। सामने एक ही रास्ता था घर लौटना। तब 13 साल की ज्योति ने अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर गांव ले आई थी।
पिता मोहन पासवान के साथ साइकिल गर्ल ज्योति।
1200 रुपए की साइकिल से की 1200 KM की यात्रा
पिछले साल लॉकडाउन के दौरान कोरोना राहत सहायता योजना में ज्योति के पापा को 1000 रुपए मिले थे। उसने 1200 रुपए में एक पुरानी साइकिल के लिए पड़ोस के अंकल से बात कर ली। उन्हें 500 रुपए तत्काल दे दिए और 700 रुपए बाद में देने की बात कही। इस पर वे राजी हो गए। ज्योति ने 500 रुपए रास्ते में खाने-पीने के लिए बचाकर रख लिए। 7 मई की रात ज्योति 1200 की साइकिल से 1200 KM की यात्रा पर निकल पड़ी। कभी साइकिल से, कभी पैदल तो कभी थोड़ी दूर ट्रक वालों से लिफ्ट लेकर 8 दिन बाद 15 मई की शाम दरभंगा के सिंहवाड़ा स्थित अपने गांव सिरहुल्ली पहुंच गई थी। ज्योति ने रोजाना 100 से 150 किमी साइकिल चलाई थी।
ज्योति के साथ उनके पिता मोहन पासवान।
पेट्रोल पंप पर रात गुजारती थी ज्योति
ज्योति अपनी इस यात्रा के दौरान शाम ढलने के बाद किसी पेट्रोल पंप पर रुक जाती थी। उसे इस दौरान बिल्कुल भी डर नहीं लगा, क्योंकि पूरे रास्ते में लोगों की भीड़ रहती थी। देखकर राहगीर चौंकते, लेकिन कोई क्या कर सकता था। सब मुसीबत के मारे थे। सबको किसी तरह घर पहुंचना था। बहुत-से लोग पेट्रोल पंप पर ठहरते थे। ज्योति वहीं फ्रेश होती और अगली सुबह फिर से बीमार पिता को साइकिल पर बैठा कर निकल पड़ती थी।