नई दिल्ली। भारत समेत पूरी दुनिया कोरोना वायरस महामारी से त्रस्त है। दुनियाभर में अब तक 15 लाख से ज्यादा लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं जबकि करीब 89 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। बात अगर भारत की करें तो अब तक इस खतरनाक वायरस ने 5,734 लोगों को संक्रमित किया है, जबकि 166 लोगों की मौत हो चुकी है। वैसे दुनियाभर में करीब 3,33,000 लोग इलाज के बाद ठीक भी हो चुके हैं। भारत में यह आंकड़ा 473 है।
इस वायरस के सामने दुनिया के अमीर से अमीर और ताकतवर से ताकतवर देशों की भी हालत खस्ता है। इससे बचने के लिए सबसे बड़ा हथियार घरों में रहना है। वायरस ने अगर संक्रमित कर भी दिया तो सकारात्मक सोच और सही इलाज से इसे हराया जा सकता है। हालांकि, यह जानना जरूरी है कि अगर कोई शख्स वायरस के संक्रमण का शिकार हो जाता है, तो उसमें कब और कैसे लक्षण दिखते हैं? आइए बताते हैं।
कैसे फैलता है संक्रमण?
कोरोना वायरस यानी SARS-Cov-2 सांस के जरिए भीतर जाता है। अगर किसी संक्रमित व्यक्ति ने नजदीक में छींका या खांसा है तो वहां स्वस्थ लोगों में भी सांस के जरिए यह वायरस भीतर चला जाता है। कोरोना वायरस की मौजूदगी वाली चीजों, सतहों को छूने से भी यह वायरस आपको चपेट में ले सकता है। अगर आप दूषित सतह को अपने हाथ से छूते हैं और बाद में उसी हाथ से अपने चेहरे को स्पर्श करते हैं तो यह वायरस आपको भी चपेट में ले लेगा। इसीलिए हैंड सैनिटाइजर या बार-बार हाथ धोने की सलाह दी जाती है।
पहला चरण
कोरोना वायरस का पहला टारगेट आपके गले की कोशिकाएं और फेफड़े होती हैं और संक्रमण के बाद ये हिस्से 'कोरोना वायरस की फैक्ट्री' में तब्दील हो जाती हैं। इन संक्रमित कोशिकाओं से और ज्यादा वायरस पैदा होते हैं जो आपके शरीर की और ज्यादा कोशिकाओं को संक्रमित करने लगते हैं। यह इनक्यूबेशन पीरियड की शुरुआत है, जिस दौरान आपको पता भी नहीं चलता कि आप बीमार हो चुके हैं। कुछ लोगों में तो कभी भी इसके लक्षण नहीं दिखते और ऐसे लोगों को एसिम्पटोमैटिक कैरियर कहा जाता है। अलग-अलग लोगों में इनक्यूबेशन पीरियड अलग-अलग होता है और इसका औसत 5 दिनों का होता है।
शांतिकाल
कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले 80 प्रतिशत मरीजों में यह बीमारी बुखार और खांसी के रूप में हल्के संक्रमण के तौर पर प्रकट होती है। इसके अलावा साथ में अन्य लक्षण जैसे शरीर में दर्द, गले में खराश और सिरदर्द जैसे लक्षण दिख भी सकते हैं और नहीं भी। बुखार और बीमार होने का अहसास दरअसल तब होता है जब आपके शरीर का इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक तंत्र किसी वायरस से लड़ता है। वायरल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए हमारा शरीर साइटोकाइन्स नाम के एक केमिकल को रिलीज करता है।
जब बिना अस्पताल में भर्ती हुए ठीक हो सकता है मरीज
कोरोना संक्रमण की वजह से शुरुआत में जो खांसी होती है वह सूखी होती है। इसकी वजह यह है कि संक्रमित कोशिकाएं गले में जलन, चुभन या असहजता पैदा करती हैं। कुछ लोगों में सूखी खांसी कुछ दिनों में ऐसी हो जाती है कि उसके साथ बलगम भी आने लगता है। यह सामान्य बलगम नहीं होता बल्कि इसमें वायरस की वजह से मारी गईं कोशिकाएं होती हैं। यह चरण आम तौर पर एक हफ्ते का होता है और इस दौरान वायरस को कुछ बुनियादी सावधानियों से भी हराया जा सकता है। इस स्टेज में अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। बस आराम करने, बड़ी मात्रा में तरल पदार्थों को लेने और पैरासेटमॉल खाने से शख्स ठीक हो सकता है। इस दौरान हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम संक्रमण से लड़ता है और अगर उस दौरान ये सामान्य सी बुनियादी सावधानियां बरती गईं तो इम्यून सिस्टम वायरस को हरा देता है।
खतरे की घंटी
अगर बीमारी गंभीर हो गई तो यह फेफड़ों को बहुत नुकसान पहुंचा देती है। दरअसल वायरस के खिलाफ हमारा इम्यून सिस्टम पूरी ताकत झोंक देता है। इसके बाद भी अगर वायरस का पलड़ा भारी पड़ता है तो शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है यानी तेज बुखार के लक्षण दिखने लगते हैं। अगर फेफड़े में जलन हुई तो यह न्यूमोनिया का रूप ले लेता है। ऐसी स्थिति में फेफड़े के एयर साक्स यानी हवा की थैलियों में पानी भरना शुरू हो जाता है। इस वजह से मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। ज्यादा तकलीफ बढ़ने पर मरीज को सांस लेने में मदद के लिए वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत पड़ती है। कोरोना वायरस के करीब 14 प्रतिशत मामले इस चरण में पहुंचते दिख रहे हैं।
नाजुक पल
कोरोना वायरस के 6 प्रतिशत मामले बेहद गंभीर श्रेणी में पहुंच जाते हैं। इस स्टेज में शरीर का इम्यून सिस्टम बेकाबू हो जाता है और यह वायरस के बजाय शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगता है। ऐसी स्थिति में ब्लड प्रेशर बहुत ही निचले स्तर पर पहुंच जाता है और अंगों के फेल होने का खतरा भी बढ़ता है। इस स्टेज में मरीज एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिन्ड्रोम से पीड़ित होता है और तब फेफड़ों में जलन बहुत ज्यादा होती है। इस वजह से शरीर को पर्याप्त ऑक्सिजन ही नहीं मिल पाता। ऐसी स्थिति में आखिरी प्रयास के तौर पर कृत्रिम फेंफड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस वक्त तक शरीर के अंग इतने क्षतिग्रस्त हो चुके होते हैं कि वे शरीर को जिंदा रखने में असमर्थ होते हैं।