राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक की तीन किलोमीटर लंबी सड़क का हिस्सा खुदा हुआ है और यहां जगह-जगह जेसीबी काम करती नजर आती हैं। मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट 'सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट' का काम विरोध के बावजूद पूरी रफ्तार से चल रहा है। राजनीतिक बयानबाजी के साथ अदालत में भी इसका विरोध चल रहा है।
पहले मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। कोर्ट से अनुरोध किया गया था कि इस प्रोजेक्ट के काम पर तत्काल रोक लगा दी जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे करने से इनकार करते हुए कहा था कि तत्काल सुनवाई के लिए हाई कोर्ट में अपील की जाए। इसके बाद 10 मई से दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है।
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि कोरोना के दौरान जब सारे निर्माण कार्य रोक दिए गए हैं, तब यहां काम क्यों चल रहा है? इससे मजदूरों की जान खतरे में हैं। सरकार का कहना है कि साइट पर कोविड नियमों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है, मजदूर पूरी तरह सेफ हैं। जबकि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ऐसा नहीं है।
दैनिक भास्कर इंडिया गेट की कंस्ट्रक्शन साइट पर पहुंचा और वहां जाकर अदालत में सरकार द्वारा किए गए दावों और याचिका में लगाए गए आरोपों को परखने की कोशिश की ...
इंडिया गेट के पास के हिस्से में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत काम चल रहा है। यहां की कंस्ट्रक्शन साइट पर किसी को जाने और फोटो खींचने की इजाजत नहीं है। दिल्ली हाई कोर्ट में इसकी सुनवाई भी चल रही है।
1-कोर्ट में सरकार का दावा :
साइट पर कोविड प्रोटोकॉल फॉलो किया जा रहा है, कोई भी जाकर देख सकता है
हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में सवाल उठाया गया था कि कोरोना के खतरे के बावजूद काम क्यों चल रहा है? इस पर केंद्र सरकार के वकील ने कहा था कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत कंस्ट्रक्शन साइट पर लॉकडाउन के पहले से काम चल रहा था। दूसरे काम के दौरान इस बात का ध्यान रखा जा रहा है कि मजदूरों के बीच पर्याप्त दूरी रहे। सरकारी हलफनामे में कहा गया कि कार्यस्थल पर मजदूर पूरी तरह सुरक्षित हैं।
कंस्ट्रक्शन के दौरान ऐसा कैसे संभव है कि मजदूर अपने बीच पर्याप्त दूरी रख सकें? इस सवाल पर सरकारी पक्ष का कहना था कि याचिका में ज्यादातर बातें परसेप्शन के आधार पर कहीं गई हैं। साइट पर कोविड प्रोटोकाल का पालन किया जा रहा है? इसे कोई भी जाकर देख सकता है।
हकीकत:
कंस्ट्रक्शन साइट पर गार्ड किसी को नहीं जाने देते, फोटो खींचना भी मना
दैनिक भास्कर की टीम जब राजपथ के पास पहुंचती है, तो जगह-जगह जेसीबी मशीनें नजर आती हैं। दूर से देखने पर इक्का-दुक्का मजदूर भी दिखाई देते हैं, लेकिन, मोबाइल निकालते ही वहां तैनात गार्ड रोक देते हैं। बताया जाता है कि यहां फोटो खींचना मना है।
हम सिर्फ कंस्ट्रक्शन साइट पर मजूदरों को काम करते देखना चाहते हैं? इस सवाल पर साफ मना कर दिया जाता है और जहां काम चल रहा है, वहां जाने की इजाजत नहीं दी जाती है।
यानी अदालत में भले ही सरकारी तौर पर यह दावा किया जा रहा हो कि सेंट्रल विस्टा के मौजूदा काम को जाकर कोई भी देख सकता है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हैं। किसी को भी अंदर जाने की तो दूर फोटो खींचने तक की इजाजत नहीं है।
कोर्ट में सरकारी वकील ने कहा है कि साइट पर ही मजदूरों के रहने का कैंप बनाया गया है, लेकिन मजदूरों का कैंप किस जगह पर बनाया गया है, अधिकारियों ने इस बात की जानकारी देने से इनकार कर दिया। सुरक्षाकर्मी किसी को भी कंस्ट्रक्शन साइट के भीतर नहीं जाने देते।
2- कोर्ट में सरकार का दावा
सभी मजूदर साइट पर ही रह रहे हैं, बाहर से नहीं आते
याचिका में आरोप लगाया गया है कि बस से मजदूरों को साइट पर ले जाया जाता है, जिससे उनमें कोरोना संक्रमण का खतरा है। याचिका और मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि मजदूरों को सराय काले खां के कैंप से लाया जाता है।
इसके जवाब में दाखिल शपथपत्र में सरकार ने कहा था कि 19 अप्रैल को दिल्ली में कोरोना कर्फ्यू लगने से पहले यहां चार सौ मजदूर काम कर रहे थे और इनमें से 250 के साइट पर बने कैंप में ही रहने की व्यवस्था थी। सरकार ने इस दावे को गलत बताया कि रोज मजूदर बस से काले खां से आते हैं। सरकार के मुताबिक सभी मजदूर इसी साइट पर रह रहे हैं और यहां थर्मल स्क्रीनिंग से लेकर आरटी-पीसीआर टेस्ट तक की व्यवस्था है। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि कांट्रैक्टर ने सभी मजूदरों को कोविड इंश्योरेंस भी दे रखा है।
हकीकत : कितने मजदूर काम कर रहे हैं, कोई यही बताने को तैयार नहीं
इंडिया गेट वाली साइट पर काम कर रहे किसी मजदूर से बात करना आसान नहीं है। पहले तो आप मजूदरों तक पहुंच ही नहीं पाएंगे और अगर पहुंच भी गए तो उन्हें इस बात के सख्त निर्देश दिए गए हैं कि वे मीडिया से कोई बात न करें। साइट पर फिलहाल 400 मजदूर काम कर रहे है या 250? सभी यहीं रहते हैं या कुछ काले खां से आते हैं? क्योंकि इस साइट पर काम करने वाले मजदूरों की संख्या 400 कही जाती है। और रहने की व्यवस्था की बात आने पर 250 कहा जाता है। आखिर सच क्या है? इस बात का जवाब वहां मौजूद कोई सुपरवाइजर देने को तैयार नहीं था।
कुछ सुरक्षाकर्मियों ने ये जरूर बताया कि सुबह बस मजदूरों को लेकर आती है और शाम को लेकर जाती है। लेकिन, कुछ गार्डों का कहना था कि ज्यादातर मजदूर कैंप में ही रह रहे हैं। जब हमने उनसे कैंप तक ले जाने की गुजारिश की तो उन्होंने इनकार कर दिया। यह तक जानकारी नहीं दी गई कि साइट पर मजदूरों के रहने की जगह कहां बनाई गई है।
मौके पर मजूदरों की रहने की जगह न दिखाने पर दैनिक भास्कर ने कंस्ट्रक्शन कंपनी शापूरजी पालोनजी के प्रबंधन को भी मेल किया कि क्या हमें साइट के भीतर कुछ चीजें दिखाई जा सकती हैं? शापूरजी पालोनजी का जनसंपर्क (PR) देखने वाली कंपनी कॉन्सेप्ट पीआर को भी मेल किया गया,लेकिन किसी का जवाब नहीं आया।
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने इस बारे में कुछ भी बोलेने से इन्कार कर दिया।
इंडिया गेट और उसके पास सार्वजनिक शौचालय और पार्किंग का काम होना है। सरकार का कहना है कि प्रोजेक्ट की इस साइट पर 400 मजदूर काम कर रहे हैं।
'लॉकडाउन में मेरी नौकरी क्यों खतरे में डालना चाहती हैं'
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर हाई कोर्ट में किए गए दावों को परखने का कोई तरीका नहीं है। राजपथ, मानसिंह रोड हर तरफ इस तरह के साइन बोर्ड लगे हैं कि आप यहां प्रवेश नहीं कर सकते। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने अब साइट्स के फोटो खींचने पर भी रोक लगा दी है। चारों तरफ सख्त पहरा है।
भास्कर रिपोर्टर एक गार्ड से अंदर जाने देने के लिए कहती है। इस पर गार्ड का जवाब आता है कि, 'बड़ी मुश्किल से ये नौकरी मिली है। लॉकडाउन में घर का खर्च चल पा रहा है। आप क्यों मेरी नौकरी को खतरे में डालना चाहती हैं।' वो हाथ जोड़कर कैमरा बंद करने की गुजारिश करता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सुरक्षाकर्मियों को कितने सख्त निर्देश दिए गए हैं।
मान सिंह रोड पर केंद्रीय सुरक्षा बलों की दो बसें भी खड़ी हैं। ये सुरक्षाकर्मी यहां आने-जाने वाले लोगों पर नजर रख रहे हैं। जगह-जगह दिल्ली पुलिस के जवान भी तैनात हैं।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की बाकी साइट भी टिन से घेर दी गई हैं
इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन के बीच काम चल रहा है। दिल्ली हाई कोर्ट में पड़ी याचिका इंडिया गेट वाली साइट के लिए ही है। इसके अलावा पुराने संसद भवन के पास नए संसद भवन की कंस्ट्रक्शन साइट को टिन की हरे रंग की ऊंची चादरों से घेर दिया गया है। झिर्री से झांकने पर यहां कंस्ट्रक्शन मशीनरी नजर आती है। साइट से ऊपर उठ रही कंस्ट्रक्शन क्रेनों के मूवमेंट से काम की तेज रफ्तार का अंदाजा होता है। ये काम समय पर पूरा हुआ तो नवंबर 2022 में देश की नई त्रिकोणाकार संसद यहीं खड़ी होगी। यहां भी किसी को भीतर जाने या फोटो खींचने की इजाजत नहीं है।
इंडिया गेट के अलावा पुरानी संसद भवन के पास सेंट्रल विस्टा के अन्य प्रोजेक्ट्स को टिन शेड्स से घेर दिया गया है। साइट्स की फोटो खींचना भी मना है।
राजपथ वाले हिस्से पर नवंबर 2021 तक काम पूरा होना है
केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने (सीपीडब्ल्यूडी) ने सेंट्रल एवेन्यू रीडेवलपमेंट के लिए इसी साल जनवरी में 502 करोड़ रुपए का टेंडर निकाला था। यह काम 487.08 करोड़ रुपए की बिड पर शापूरजी पालोनजी कंपनी को मिला था। 04 फरवरी को यहां काम शुरू हो गया था। तय शर्तों के तहत इस प्रोजेक्ट का काम 300 दिनों के अंदर पूरा किया जाना है।
सीपीडब्ल्यूडी की तरफ से कोर्ट में दायर हलफनामे में बताया गया है कि इंडिया गेट -राजपथ पर हो रहा काम सेंट्रल विस्टा एवेन्यू रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट का केवल एक हिस्सा है। इसके तहत राजपथ पर सार्वजनिक सुविधाओं को सुधारा जा रहा है। ये काम नवंबर 2021 तक पूरा हो जाना है, इसलिए काम रोकना ठीक नहीं होगा। विभाग की ओर से यह भी कहा गया है कि इस काम को इसलिए भी लेट नहीं किया जा सकता, क्योंकि यहीं पर गणतंत्र दिवस की परेड भी होती है। कुल मिलाकर सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के कई हिस्सों में तेजी से काम चल रहा है।
ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने जब रायसीना की पहाड़ियों पर तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा रहे भारत की नई राजधानी की कल्पना की थी, तब उन्होंने सेंट्रल विस्टा को इसका अहम हिस्सा बनाया था। विस्टा यानी दिलकश नजारा। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट जब पूरा होगा तो क्या शक्ल लेगा, ये अभी पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि अभी भी इसके बारे में बहुत सी जानकारियां सार्वजनिक नहीं हैं।