अगर आपको आसमान में होने वाली घटनाओं में रुचि है तो आज का दिन आपके लिए खास है। आज साल का दूसरा और पहला पूर्ण चंद्रग्रहण है। जनवरी 2019 के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है। छह साल में पहली बार सुपरमून और चंद्रग्रहण का संयोग बन रहा है। यानी आसमान में चांद आम रातों के मुकाबले ज्यादा बड़ा और चमकीला दिखाई देगा। आज चांद धरती के सबसे नजदीक है।
समझते हैं सुपरमून क्या होता है, आज का चंद्रग्रहण क्यों खास है और इसका आपके ऊपर क्या असर होने वाला है....
सुपरमून होता क्या है?
- पूर्णिमा पर चांद जब पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है तो हमें वह बड़ा और चमकीला नजर आता है। इसे ही सुपरमून कहते हैं। इस दौरान सामान्य चंद्रग्रहण के मुकाबले चांद 30% तक ज्यादा बड़ा और 14% तक ज्यादा चमकदार दिखाई देता है। यानी सुपरमून की 2 शर्तें हैं; पहली चांद पृथ्वी के सबसे नजदीक हो और दूसरी उस दिन पूर्णिमा भी हो।
- वैसे तो चांद का न आकार बदलता है और न ही चमक, पर धरती के पास होने से हमें ऐसा आभास होता है। दरअसल चांद, पृथ्वी के आसपास अंडाकार रेखा में चक्कर लगाता है। इस वजह से कई बार यह पृथ्वी के काफी नजदीक आ जाता है। इससे हमें उसका आकार सामान्य से बड़ा दिखता है।
- नासा के मुताबिक सुपरमून तब होता है जब चांद की कक्षा पृथ्वी के सबसे नजदीक होती है और पूर्णिमा हो। नासा के मुताबिक 1979 में एस्ट्रोलॉजर रिचर्ड नोल ने पहली बार सुपरमून शब्द का इस्तेमाल किया था। एक सामान्य वर्ष में दो से चार सुपरमून हो सकते हैं। पिछली पूर्णिमा के मुकाबले इस महीने पृथ्वी और चांद करीब 0.04% नजदीक रहने वाले हैं।
कुछ इस तरह दिखाई देगा आज का ब्लड मून। नासा के साइंटिफिक विजुअलाइजेशन स्टूडियो ने 2021 के पूर्ण चंद्रग्रहण का टेलिस्कोपिक विजुअलाइजेशन किया है।
पूर्णिमा और सुपरमून में क्या रिश्ता है?
- हर 27 दिन में चांद पृथ्वी का एक चक्कर पूरा कर लेता है। 29.5 दिन में एक बार पूर्णिमा भी आती है। हर पूर्णिमा को सुपरमून नहीं होता, पर हर सुपरमून पूर्णिमा को ही होता है। चांद पृथ्वी के आसपास अंडाकार रेखा में चक्कर लगाता है, इसलिए पृथ्वी और चांद के बीच की दूरी हर दिन बदलती रहती है। जब चांद पृथ्वी से सबसे ज्यादा दूर होता है, उसे एपोजी (Apogee) कहते हैं और जब सबसे नजदीक होता है तो उसे पेरिजी (Perigee)। पेरिजी के समय पृथ्वी से चांद की दूरी होती है करीब 3.60 लाख किमी, जबकि एपोजी के समय करीब 4.05 लाख किमी।
तो फिर ब्लडमून क्या होता है?
- आपने बचपन में रोशनी के सात रंगों के बारे में पढ़ा होगा। प्रिज्म के साथ प्रयोग भी किया होगा कि जब रोशनी की किरण प्रिज्म से गुजरती है तो वह सात रंगों में टूट जाती है। इसे हमने VIBGYOR यानी वॉयलेट (V), इंडिगो (I), ब्लू (B), ग्रीन (G), यलो (Y), ऑरेंज (O) और रेड के तौर पर याद भी किया होगा।
- इससे पृथ्वी के वायुमंडल से रोशनी फिल्टर होगी और तब हमारे ग्रह की छाया चांद पर पड़ रही होगी। वॉयलेट (बैंगनी) की वेवलेंग्थ सबसे कम होती है और लाल की सबसे ज्यादा। चंद्रग्रहण के दौरान सूरज और चांद के बीच पृथ्वी आ जाती है। तब सूर्य की रोशनी को चांद तक पहुंचने से पृथ्वी रोक देगी। सबसे अधिक वेवलेंग्थ वाला लाल रंग प्रभावी होगा। इससे चांद पर लाल रंग की चमक दिखेगी, जिसकी वजह से इसे ब्लड मून भी कहते हैं।
31 जनवरी 2018 में रूस के एक शहर से ब्लड सुपरमून का नजारा।
भारत में दिखेगा या नहीं?
- नहीं। देश के अधिकतर लोग चंद्रग्रहण नहीं देख सकेंगे क्योंकि ग्रहण के समय भारत के अधिकांश हिस्सों में चांद पूर्वी क्षितिज से नीचे होगा। जब चंद्रोदय हो रहा होगा, तब पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों के लोग चंद्रग्रहण का आखिरी हिस्सा देख सकेंगे।
- भारतीय समयानुसार अपराह्न चार बजे पृथ्वी सूर्य और चांद के ठीक बीच में होगी। दुनियाभर के ऑब्जर्वर आसमान साफ होने पर सुपरमून को देख सकेंगे। पर भारत, नेपाल, पश्चिमी चीन, मंगोलिया और पूर्वी रूस के कुछ हिस्सों में आंशिक ग्रहण ही दिखेगा। इस दौरान चांद, पृथ्वी की छाया से बाहर निकल रहा होगा।
कब से कब तक रहेगा?
- ज्योतिष गणना के अनुसार भारत में दिन के 2 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर शाम 7 बजकर 19 मिनट तक चंद्रग्रहण रहेगा। यानी कुल 5 घंटे 2 मिनट तक चंद्रग्रहण रहेगा।
21 जनवरी 2019 की यह तस्वीर दक्षिण-पूर्वी इंग्लैंड की है। साफ दिख रहा है कि पृथ्वी की छाया चांद पर पड़ रही है।
चंद्रग्रहण होते कितने तरह के होते है?
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से समझिए चंद्रग्रहण कितने तरह के होते है, क्या इस चंद्रग्रहण में सूतक काल लगेगा और आपके ऊपर क्या असर होने वाला है...
पूर्ण चंद्रग्रहणः पूर्ण चंद्रग्रहण में चांद और सूर्य के बीच में पृथ्वी आ जाती है और पृथ्वी चांद को पूरी तरह से ढक लेती है। ज्योतिषियों के मुताबिक पूर्ण चंद्रग्रहण का असर प्रकृति पर पड़ता है। साथ ही इसका शुभ-अशुभ असर सभी राशियों पर भी होता है। इस ग्रहण में सूतक काल भी प्रभावी होता है। जो कि 12 घंटे पहले से शुरू हो जाता है। सूतक के दौरान धार्मिक कामों पर रोक लग जाती है।
आंशिक चंद्रग्रहणः आंशिक चंद्रग्रहण में सूर्य और चांद के बीच में पृथ्वी पूरी तरह से नहीं आ पाती और पृथ्वी की छाया चांद के कुछ हिस्से पर ही पड़ती है। इसे आंशिक चंद्रग्रहण कहा जाता है। ज्योतिर्विज्ञान और धर्मग्रंथों के मुताबिक इस ग्रहण में भी सूतक काल के नियमों का ध्यान रखा जाता है। ऐसे ग्रहण का असर भी सभी राशियों पर पड़ता है।
उपच्छाया चंद्रग्रहणः ज्योतिषियों के मुताबिक, उपच्छाया चंद्रग्रहण, पृथ्वी की छाया वाला माना जाता है जिसमें चांद के आकार पर कोई असर नही पड़ता है। इसमें चांद की रोशनी धुंधली हो जाती है और उसका रंग थोड़ा मटमैला भी हो सकता है। इस ग्रहण में चांद, पृथ्वी और सूरज तीनों एक लाइन में नहीं आ पाते हैं और सूरज की रोशनी का हिस्सा चांद तक नहीं पहुंच पाता है। इसे पेनुम्ब्रल या उपच्छाया चंद्रग्रहण कहा जाता है।
सूतक काल लगेगा या नहीं?
- ये चंद्र ग्रहण आंशिक चंद्रग्रहण होगा, लेकिन ये ग्रहण खत्म होते वक्त थोड़े समय के लिए भारत के कुछ ही हिस्सों में दिखेगा। इसलिए इसका सूतक पूरे देश में नहीं माना जाएगा। सिर्फ उन जगहों पर ही ग्रहण के नियमों का पालन होगा, जहां ये दिखेगा।