रायपुर। आज से 8 साल पहले 25 मई 2013 की शाम नक्सलियों ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। बस्तर की दरभा-झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर 30 लोगों की हत्या कर दी थी। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व मंत्री व तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, पूर्व मंत्री महेंन्द्र कर्मा, पूर्व विधायक उदय मुदलियार समेत कांग्रेस के दिग्गज नेता, कार्यकर्ता, जवान मारे गए थे।
हार चढ़ी ये तस्वीरें अब कांग्रेस दफ्तर में, कई कार्यक्रमों के दौरान दिखती हैं।
सवालों में जांच
इस घटना का सबसे दुखद पहलू यह है कि कई जांच के बाद भी 8 साल में घटना की वास्तविकता सामने नहीं आई। उसमें शामिल बड़े नक्सली नेताओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकी। आतंकी मामलों की जांच में माहिर नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी, एनआईए ने छह साल की जांच के बाद 39 नक्सलियों के खिलाफ दो चार्जशीट पेश की, 9 नक्सलियों को गिरफ्तार किया, लेकिन वह भी सच क्या है यह नहीं बता सकी। कांग्रेस के वकीलों, नेताओं ने एनआईए की जांच को सिरे से नकार दिया। आरोप लगाया गया कि एनआईए ने तत्कालीन भाजपा सरकार की लापरवाही छिपाने के लिए घटनास्थल की अच्छे से जांच नहीं की, घायलों के बयान तक नहीं लिए। हालात यह थे कि घटना के लगभग 25 दिन बाद झीरम घाटी पहुंचे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को वहां से विद्याचरण शुक्ला का चश्मा और चप्पल समेत कई चीजें मिलीं। एनआईए पर यह आरोप भी लगा कि उसने इस हमले के मास्टर माइंड दो बड़े नक्सली नेता गणपति और रमन्ना के नाम चार्ज शीट से हटा दिए।
बस्तर के गांवों में NIA के ये पोस्टर लगे थे, जिसमें झीरमकांड को अंजाम देने वाले आरोपी नक्सलियों की तस्वीर थी।
केंद्र और राज्य की सियासत में उलझी जांच
न्यायिक आयोग में कांग्रेस की तरफ से पैरवी कर रहे एडवोकेट सुदीप श्रीवास्तव कहते हैं उस समय राज्य की भाजपा सरकार इस मुद्दे पर ठीक से जांच कराना नहीं चाह रही थी और अब एनआईए और केंद्र की भाजपा सरकार जांच होने देना नहीं चाह रही है। हमने एनआईए से झीरम घाटी हत्याकांड से संबंधित दस्तावेज मांगे हैं। हमने कहा कि उनकी जांच पूरी हो गई है तो हमें दस्तावेज दे दें, लेकिन वो नहीं दे रहे हैं, क्योंकि उसमें कई गड़बड़ियां हैं। हमले में दिवंगत उदय मुदलियार के बेटे ने पिछले वर्ष दरभा थाने में एक अलग FIR लिखवाई। इसको NIA ने कोर्ट में चुनौती देदी। उनका कहना था वे मामले की जांच कर चुके हैं। दूसरी एजेंसी उसकी जांच नहीं कर सकती। राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर NIA से झीरम घाटी जांच की डायरी दिलवाने की मांग की है। 2019 में दौलत रोहड़ा उच्च न्यायालय से अलग जांच की मांग कर चुके हैं।
ये उन गाड़ियों के ड्राइवर हैं जिसमें नेता थे, गोलीबारी के बाद ऐसे ही पड़े मिले।
न्यायिक आयोग का गठन और सुनवाई पूरी
हमले के तीन दिन बाद ही तत्कालीन भाजपा सरकार ने जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग बनाया था। आयोग को तीन माह में अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन यह समय बढ़ता चला गया। इस आयोग में कई गवाहियां हुई, तथ्य पेश किए गए। 2018 में जब कांग्रेस की सरकार आई तो उसने आयोग को जांच का दायरा बढ़ाने का आवेदन दिया और 8 नए तथ्यों की जांच करने कहा।
- "महेंद्र कर्मा की सुरक्षा की समीक्षा क्या प्रोटेक्शन रिव्यू ग्रुप ने की थी।
- कर्मा द्वारा मांगी गई अतिरिक्त सुरक्षा पर क्या कार्रवाई की गई।
- नंदकुमार पटेल को क्या अतिरिक्त सुरक्षा दी गई थी।
- पूर्व के बड़े हमलों की समीक्षा कर कोई कदम उठाया गया।
- यूनिफाइड कमांड की नक्सल विरोधी ऑपरेशन में भूमिका।
- 25 मई 2013 को बस्तर में कुल कितना पुलिस बल था।
- क्या माओवादी बंधक की रिहाई के बदले अपनी मांग मनवाते हैं।
- एलेक्स पॉल मेनन की रिहाई के लिए क्या समझौते किए गए।
एलेक्स पॉल मेनन छत्तीसगढ़ कैडर के IAS हैं। नक्सलियों ने 2012 में उनका अपहरण कर लिया था। उस समय वे सुकमा जिले के कलेक्टर थे। कहा जाता है न्यायिक आयोग की जांच पूरी हो गई है और अभी उसने अपनी रिपोर्ट सरकार को नहीं सौंपी है। लिहाजा अभी भी यह नहीं मालूम कि इस पूरे नरसंहार के पीछे कौन था, उसका उद्देश्य क्या था।
नेताओं की गाड़ियां फायरिंग के बाद।
आंखों देखा हाल
उस हमले से सुरक्षित लौटे कांग्रेस नेता दौलत रोहड़ा बताते हैं, “ वह 25 मई 2013 का दिन था। परिवर्तन यात्रा भी समापन की ओर थी। शाम 3.30 बजे हम लोग सुकमा से रवाना हुए। 4 बजे तक झीरम घाटी पहुंच गए। वहां नक्सलियों ने हमपर हमला कर दिया। सबसे आखिरी गाड़ी में मैं विद्या भइया (विद्याचरण शुक्ल) के साथ था। हमसे आगे वाली गाड़ियों में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार आदि थे। 4 बजकर 5 मिनट पर विद्या भइया को सबसे पहली गोली लगी। उसके बाद लगातार गोलियां चलती रहीं। हमारी कार पर 200 से 250 गोलियां दागी गई थीं। वहां नक्सलियों की तादाद 250 के आसपास थी जो 25 से 35 की उम्र के आसपास के थे। एक नक्सली वॉकीटॉकी से किसी को लगातार पूरी जानकारी दे रहा था। सवा छह बजे तक गोलियां चलती रहीं। उसके बाद नक्सलियों ने हम लोगों को बंधक बना लिया। उसके बाद वे पूछने लगे कि महेंद्र कर्मा कौन है? नंद कुमार पटेल कौन है? यानी वे नेताओं का नाम जानते थे वे उन्हें शक्ल से पहचानते नहीं थे।
दौलत रोहरा विद्याचरण शुक्ल के करीबी लोगों में से हैं।
दौलत आगे बताते हैं, इसका साफ मतलब है कि वे सुपारी किलर थे। हम लोगों से पूछा गया कि महेंद्र कर्मा का लड़का कौन है। आईडी कार्ड देखकर पहचान की। सबने कार्ड दिखाया। इस बीच नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा, नंद कुमार पटेल, दिनेश पटेल, उदय मुदलियार, योगेंद्र शर्मा सहित तमाम पुलिस कर्मियों, राहगीरों की भी हत्या कर डाली थी। सवा सात बजे तक हम बंधक रहे। वहां से छूटकर नीचे आए। करीब सवा आठ बजे पुलिस की पहली गाड़ी आई। उसमें एसपी महेंद्र श्रीवास्तव थे। सबसे आखिर में हम निकले विद्या भइया को लेकर। उन घावों की वजह से 17 दिन बाद उनका निधन हो गया। ऐसे बहुत से लोगों का निधन देर से इलाज मिलने की वजह से हुआ।"
तब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे नंद कुमार पटेल का शव इस तरह फोर्स ने बरामद किया।
कार्यक्रम पहले से तय था, लेकिन घाट पर पुलिस नहीं थी
दौलत रोहड़ा बताते हैं परिवर्तन यात्रा का कार्यक्रम पहले से तय था। प्रशासन के पास मिनट टू मिनट का कार्यक्रम था। उसके बाद भी झीरम घाटी के उस इलाके में कोई सुरक्षा बल मौजूद नहीं था। हमला हुआ तो भी पुलिस मदद के लिए नहीं पहुंची। समय से पुलिस पहुंच गई होती तो बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती थी।
पीड़ितों काे अभी भी न्याय का इंतजार
इस घटना में अपनों को गंवाने वाले परिवार और घायलों को अभी भी न्याय का इंतजार है। विद्याचरण शुक्ल की बेटी प्रतिभा पाण्डेय और महेंद्र कर्मा के बेटे दीपक कर्मा रायपुर से दिल्ली तक न्याय की लड़ाई लड़ते हुए इस दुनिया से चले गए। हमले में जिंदा बच गए लोग कहते हैं, पीड़ित परिवार तो आज भी न्याय का इंतजार कर रहे हैं। यह साधारण नक्सली हमला नहीं था। यह सुपारी कीलिंग थी। इसके षड़यंत्रकारी अभी भी बेनकाब नहीं हुए हैं। हम चाहते हैं कि इस मामले में न्याय हो और अपराधी बेनकाब हों।
हमले के करीब 4 घंटे बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल इस हाल में मिले थे।
कांग्रेस ने भाजपा और रमन सिंह पर तथ्य छिपाने के आरोप लगाए
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग प्रमुख शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा, रमन सिंह जी को यह बताना चाहिए कि झीरम षडयंत्र की जांच उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए क्यों नहीं होने दी? उनकी केन्द्र सरकार हर बार झीरम कांड के षडयंत्र की जांच को क्यों रोकती है? रमन सिंह जी को यह भी बताना चाहिए कि वे क्या छिपाना चाहते हैं और क्यों छिपाना चाहते हैं। रमन सिंह जी को यह भी बताना चाहिये कि जिस जगह कांग्रेस के काफिले पर हमला हुआ ठीक वहीं पर पुलिस की सुरक्षा क्यों नहीं थी? कथित माओवादियों के हमले की जगह पर पुलिस सुरक्षा न होने के बीच क्या संबंध था ये भी रमन सिंह जी को बताना चाहिये।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दी श्रद्धांजलि
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने झीरम घाटी नक्सल हमले में शहीद नेताओं और जवानों को नमन करते हुए उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि झीरम घाटी के शहीदों और विगत वर्षों में नक्सल हिंसा के शिकार हुए सभी लोगों की स्मृति में वर्ष 2020 से 25 मई को हर वर्ष 'झीरम श्रद्धांजलि दिवस’ मनाया जाता है। प्रदेश के सभी शासकीय एवं अर्धशासकीय कार्यालयों में नक्सल हिंसा में शहीदों की स्मृति में 25 मई को दो मिनट का मौन धारण कर श्रद्धांजलि दी जाएगी। इस दौरान राज्य को पुनः शांति का टापू बनाने के लिए शपथ भी ली जाएगी।