भारतीय फुटबॉल जगत का एक शर्मनाक पहलू सामने आया है। झारखंड में रह रहीं इंटरनेशनल फुटबॉलर संगीता सोरेन और उनका परिवार मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर है। संगीता के पिता दूबे सोरेन नेत्रहीन होने की वजह से कोई काम करने में असमर्थ हैं। जबकि उनका भाई दिहाड़ी मजदूर है। भाई की आमदनी किसी दिन होती है और किसी दिन नहीं। ऐसे में परिवार का पेट पालने के लिए संगीता को ईंट भट्टे में काम करना पड़ रहा है।
संगीता ने 4 महीने पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मदद भी मांगी थी। अब महिला आयोग ने इस पर एक्शन लेते हुए झारखंड सरकार और ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन को चिट्ठी लिखी है। आयोग ने उनसे संगीता को अच्छी नौकरी देने के लिए कहा है, ताकि वे अपना बाकी जीवन सम्मान के साथ गुजार सकें। संगीता अंडर-17, अंडर-18 और अंडर-19 लेवल पर देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। अंडर-17 फुटबॉल चैंपियनशिप में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता था।
टैलेंटेड फुटबॉलर संगीता को मजदूरी करना पड़ रही।
संगीता को मजबूरी में ईंट भट्टे में काम करना पड़ रहा है।
झारखंड सरकार ने भी संगीता की मदद नहीं की
संगीता की मदद के लिए सबसे पहले पिछले साल अगस्त में आवाज उठी थी। तब हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पोस्ट कर कहा था - संगीता और उनके परिवार को जरूरी सभी सरकारी मदद पहुंचाते हुए सूचित करें। खेल-खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार कृत-संकल्पित है। पर इसके बाद कोई मदद नहीं मिली। इसके बाद 4 महीने पहले संगीता ने फिर से मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाई।
इस पर संज्ञान लेते हुए CM सोरेन ने फिर से मदद का आश्वासन दिया था। पर अब तक संगीता को किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिली। मदद नहीं मिलने पर संगीता राज्य सरकार पर भी बिफर पड़ीं। उन्होंने कहा- सरकार से हम क्या मांग करें। उन्हें खुद ही मेरे बारे में सोचना चाहिए। जिन आदिवासियों की मदद के लिए झारखंड का गठन हुआ है, राज्य सरकार उस उद्देश्य से ही भटक चुकी है। मैंने पहले भी कई बार सरकार से मदद मांगी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
द टेलीग्राफ ऑनलाइन को दिए इंटरव्यू में संगीता ने कहा कि इंटरनेशनल प्लेयर्स का ख्याल रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। मैंने सोशल मीडिया के जरिए उनका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की। मैंने स्कॉलरशिप के लिए भी आवेदन किया, लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। मैंने अब कोशिश करना भी छोड़ दिया है। संगीता का सिलेक्शन पिछले साल सीनियर नेशनल टीम में भी होने वाला था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से उन्हें यह मौका नहीं मिल पाया।
भारतीय जूनियर महिला फुटबॉल टीम के साथ संगीता सोरेन (नीचे वाली पंक्ति में दाएं)।
महिला आयोग ने प्रेस नोट जारी किया
महिला आयोग ने झारखंड सरकार को लिखी चिट्ठी को लेकर एक प्रेस नोट भी जारी किया। इसमें उन्होंने लिखा- संगीता पिछले 3 साल से जॉब पाने की कोशिश कर रही हैं, पर किसी ने उनकी मदद नहीं की। इंटरनेशनल लेवल पर खेलने के लिए भी उन्हें सिर्फ 10 हजार रुपए दिए गए। संगीता की स्थिति देश के लिए शर्म की बात है। उन्हें तरजीह दी जानी चाहिए। उन्होंने सिर्फ अपने देश को नहीं बल्कि, झारखंड को भी वर्ल्ड फुटबॉल में रिप्रजेंट किया है। यह सब उनकी लगन और मेहनत की वजह से हो सका।
''झारखंड सरकार संगीता की मदद करे''
महिला आयोग ने लिखा- चेयरपर्सन रेखा शर्मा ने झारखंड के मुख्य सचिव से कहा है कि संगीता को हरसंभव मदद दी जाए, ताकि वह अपनी बाकी जिंदगी सम्मान के साथ जी सके और परिवार की मदद कर सके। इसकी कॉपी AIFF को भी भेजी गई है।
गांव में प्रैक्टिस करतीं संगीता।
फुटबॉल में हासिल सर्टिफिकेट दिखातीं संगीता।
10 साल पहले पिता की आंखों की रोशनी गई
धनबाद जिले के बाघमारा प्रखंड के रेंगुनी पंचायत में आने वाले बांसमुड़ी गांव में रहने वाली संगीता बताती हैं कि उनके पिता की आंखों की रोशनी 10 साल पहले चली गई थी। तब से ही वे कोई काम नहीं कर रहे हैं। लॉकडाउन की वजह से भाई को भी कोई काम नहीं मिल पा रहा। ऐसे में संगीता खुद ईंट भट्टे में मजदूरी कर घर का भरण-पोषण कर रही हैं। कभी-कभी तो गरीबी की वजह से उन्हें चावल-नमक से भी गुजारा करना पड़ता है।
फुटबॉल की प्रैक्टिस कभी नहीं छोड़तीं
गरीबी के बावजूद संगीता हर रोज सुबह फुटबॉल की प्रैक्टिस के लिए जाती हैं। संगीता बताती हैं कि मैं हर रोज सुबह साढ़े 6 बजे उठकर मैदान में प्रैक्टिस करती हूं। इंटरनेशनल फुटबॉल खेलने से पहले जब मैं मैदान में प्रैक्टिस करने आती थी, तो यहां के लड़के मेरा मजाक उड़ाते थे। मैं उनसे अपनी टीम में शामिल करने के लिए रिक्वेस्ट भी करती थी। पर वे मुझे नहीं खिलाते थे। जब फुटबॉल मैदान से बाहर जाता, तो मैं उसे ही किक मारती थी। इस पर भी लड़के मजाक उड़ाते थे।
लड़के पहले मजाक उड़ाते थे, अब सेल्फी लेते हैं
संगीता ने कहा कि मैंने इस मजाक को चुनौती के रूप में लिया। मैंने काफी मेहनत की। इसके बाद एक सर ने बिरसा मुंडा क्लब धनबाद में मेरी एंट्री कराई। यहीं से डिस्ट्रिक्ट और स्टेट लेवल होते हुए नेशनल अंडर-17 फुटबॉल टीम में सिलेक्ट हुई। मैंने 2018 में अंडर-18 टीम के साथ भूटान और अंडर-19 टीम के साथ थाईलैंड में फुटबॉल चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। अब जब गांव जाती हूं, तो जो लड़के मेरा मजाक उड़ाते थे, वे अब मेरे साथ सेल्फी लेने आते हैं। मेरी किक पर तालियां भी बजाते हैं।
गांव में बकरी चरातीं संगीता।
भूटान और थाईलैंड में अंडर-18 और अंडर-19 भारतीय महिला फुटबॉल टीम ने शानदार प्रदर्शन किया था।