बीकानेर। लालेश्वर महादेव मंदिर और शिवबाड़ी मठ के अधिष्ठाता व संत संवित् सोमगिरि महाराज ने बुधवार सुबह भू समाधि ली। मंगलवार रात करीब नौ बजे PMB अस्पताल के TB व चेस्ट विभाग में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। मृत्यु से पहले तक वो आराधना में लीन रहे। अंतिम समय भी उन्होंने खुद ही गीता का पाठ किया और उसके बाद अपने प्राण छोड़े। उनके शिष्यों ने मंदिर के पीछे ही उन्हें भू समाधि तक पहुंचाया। उन्हें देशभर में श्रीमद्भगवत गीता से लोगों को जोड़ने के लिए भी जाना जाता है।
जिस मंदिर में दो दशक तक आध्यात्म यात्रा की, उसी से आगे निकलते हुए।
बुधवार सुबह उनकी अंतिम यात्रा से पहले जिला प्रशासन ने कड़े प्रबंध किए। सुबह चार बजे से ही जयनारायण व्यास कॉलोनी पुलिस ने मठ की ओर जाने वाले सभी रास्तों पर बैरिकेड्स लगा दिए थे। किसी भी आम व्यक्ति को मठ में नहीं जाने दिया जा रहा था। सोमगिरि महाराज के विशेष सदस्य और मठ से जुड़े कुछ सदस्यों को ही यहां प्रवेश दिया गया।
भक्त अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो सके तो दूर से ही अपने गुरु को निहारते रहे। आंसू बहाते रहे।
बुधवार सुबह करीब साढ़े नौ बजे उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुई। महाराज को शिव मंदिर की एक फेरी के साथ ही मंदिर परिसर के पीछे ले जाया गया, जहां उनकी समाधि पहले से तैयार थी। जिस वाहन में उनकी बैकुंठी रखी गई थी, उसमें सिर्फ मंदिर के शिष्यों को ही स्थान दिया गया। इससे पहले सोमगिरिजी की नियमित बैठक के पास ही आंगन में अंतिम दर्शन की व्यवस्था की गई। यहां भी बहुत सीमित संख्या में लोग पहुंच सके। जो अतिविशिष्ट पहुंचे थे, उन्हें भी एक-एक करके ही अंदर प्रवेश दिया गया। दर्शन के बाद तुरंत बाहर निकाल दिया गया। अंतिम यात्रा के दौरान "ऊं नम: शिवाय" का जाप निरंतर चलता रहा। इस दौरान संतों ने ही समाधि की सारी प्रक्रिया पूरी की।
समाधि स्थल की ओर बढ़ती अंतिम यात्रा।
अंतिम समय में भी गीता पाठ
यहां पीबीएम अस्पताल के टीबी व चेस्ट विभाग के आईसीयू में वो अंतिम दिन तक गीता पाठ करते रहे। देशभर में गीता के प्रति जागरूकता लाने के लिए उन्होंने गीता प्रतियोगिता का आयोजन किया था, जिसमें हर साल हजारों विद्यार्थी शामिल होते थे। इन बच्चों से स्वयं सोमगिरि जी महाराज स्कूल जाकर मिलते थे।
जीवन परिचय
सोमगिरिजी महाराज का जन्म 23 नवम्बर 1943 को बीकानेर में हुआ था। यहां जैन स्कूल व डूंगर कॉलेज में शिक्षा लेने के बाद उन्होंने जोधपुर से इंजीनियरिंग की। व्याख्याता पद पर रहते हुए 9 मई 1971 को स्वामी ईश्वरानंदगिरिजी से उत्तरकाशी में जगदगुरु शंकराचार्य से प्रवर्तित परमहंस सन्यास की दीक्षा ग्रहण की।