भीलवाड़ा। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में ऑक्सीजन का संकट पेड़ाें की अहमियत समझा रहा है। हर पेड़ किसी ऑक्सीजन सिलेंडर से कम नहीं लग रहा। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया ब्लाॅक में विक्रमपुरा ऐसा गांव है, जिनसे सांसाें के लिए ऑक्सीजन का महत्व 10 साल पहले समझ लिया था। इलाका खनन बाहुल्य है। दूर-दूर तक गहरी खदानें और इनसे निकले पत्थराें के ढेर नजर आते हैं। बेतहाशा खनन हरियाली काे लील गया था।
विस्फाेटकाें या जेसीबी से खुदाई के समय धूल उड़ती। जिससे सांस लेने में तकलीफ वाली बीमारी अस्थमा, टीबी, सिलिकाेसिस हाेने लगी। लोग तड़प-तड़प कर मरने लगे थे। अधिकांश को सिलिकोसिस की बीमारी होती। जिसमें सांस लेने की तकलीफ रहती तब सिलेंडर जुटाने पड़ते थे। दस साल पहले हालात ये बने कि गांव में मौतों का सिलसिला चल पड़ा।
पंचायत क्षेत्र में दाे हजार के करीब स्थानीय निवासी व बाहरी श्रमिक सांस की बीमारियाें के पीड़ित थे। साल-दाे साल में 250 लाेगाें की माैत हाे गई थी। दाे हजार के करीब लाेग बीमार हाे गए। तब पेड़ लगाने शुरू किए। तब और अब की स्थिति...
सांस की बीमारी से दो साल में करीब दो हजार लोग बीमार हो गए थे, 250 की हुई मौतों से लिया सबक
कई गांव ऐसे हो गए कि पुरुष बचे ही नहीं। कई गांव विधवाओं के गांव कहे जाने लगे। तब विक्रमपुरा ने पहल की पौधे लगाने की। पेड़ाें काे सहेजने की। यहां अब हर घर के बाहर नीम का पेड़ है। मुख्य द्वार के आगे भी नीम का पेड़ आ रहा तो उसे काटा नहीं। गांव के घीसीलाल धाकड़ ने बताया कि उनको सांस लेने में तकलीफ होने लगी। वे पिछले 2 साल से रोज सुबह अपने घर के बाहर वाले नीम के पेड़ के नीचे 3 घंटे बैठते हैं।
देवगढ़ के 40 घरों में सिलिकोसिस से मौतें हुई थीं। अभी 30 विधवाएं हैं।
इसी की टहनी से दातुन कर कुछ पत्तियां खाते भी हैं। अब उनको सांस लेने में तकलीफ नहीं है। अस्पताल जाए बगैर इलाज हाे गया। गांव के लोगों ने बताया कि सरकारी भवन हो या किसी का मकान। सभी के बाहर व परिसर में पेड़ हैं। मदनलाल भील, रामफूल धाकड़, सुशील जैन, शंभू धाकड़ ने बताया कि गांव में कोई आता है तो पेड़ाें काे देखकर आश्चर्य करता है। आनंदित हो जाता है। गांव-गांव में इन दिनाें काेराेना संक्रमण के हालात गंभीर है। अपेक्षाकृत पंचायत क्षेत्र में स्थिति भयावह नहीं है।
काेराेना के समय मरीजाें के लिए साफ हवा बहुत जरूरी है। इसलिए जिस भी जगह पेड़ अधिक हाेंगे और मरीज उसके आसपास रहेगा ताे सांस लेने में तकलीफ नहीं हाेगी। ताजा हवा सुकून देगी। पेड़ जीवन के लिए वेंटीलेटर हैं। अब तक मैंने गांव उलेला कजरी में वन विभाग व जन सहयाेग से 5 हजार पेड़ लगवाएं।
-डाॅ. सुधीर मालू, वरिष्ठ फिजिशियन
पहल लक्ष्मणपुरा में बाहर बैठता है पूरा गांव...इसी पंचायत का एक मजरा है लक्ष्मणपुरा। इसमें 30 घर और 50 पेड़ है। गांव के सीताराम धाकड़ और देवीलाल ने बताया कि गांव में हमने पेड़ लगाए है ताकि ताजा हवा मिले। कोरोना से ठीक होने के बाद गट्टूदेवी को दिन में 4 घंटे पेड़ के नीचे सुलाते थे ताकि ऑक्सीजन लेवल बना रहे। इसका फायदा भी मिला।
समर्पण हर साल लगाते हैं पेड़ ताकि बनी रहे ऑक्सीजन विक्रमपुरा गांव के लोग पंचायत के सहयोग से हर साल पेड़ लगाते हैं। दस साल सरपंच रहे मुकेश धाकड़ ने बताया कि हमने ट्री गार्ड भी पत्थरों से ही बना रखे हैं। ये पत्थर खदानाें का वेस्ट हैं जिनका उपयाेग किया हुआ है। महिलाएं नियमित रूप से नीम के पेड़ में जल भी चढ़ाती हैं।
बेरोजगारी पत्थरों की खदानों में सन्नाटा बिजौलिया ब्लॉक में सैंड स्टोन पत्थर की हजारों खदानें हैं। अधिकांश अभी बंद पड़ी हैं। कोबल्स का काम जरूरत हो रहा है। कई मजदूर बेरोजगार हैं। अब पगार नहीं मिलने से खाने-पीने का संकट आ गया है। अनोपीदेवी ने कहा कि कोरोना तो यहां नहीं आया लेकिन अब दिन निकालना मुश्किल हो रहा है।
ढिलाई जांचें ही नहीं कैसे पता चले मरीज का भास्कर टीम मांडलगढ़ और बिजौलिया ब्लॉक मुख्यालय समेत करीब एक दर्जन गांवों में पहुंची। अधिकांश में कभी न सर्वे हुआ और न ही जांचें। लोग बुखार से पीड़ित भी हुए लेकिन कोरोना का उपचार नहीं लिया। अधिकतर गांवों में यही हाल हैं। बिजौलिया, मांडलगढ़ में जरूरी सेनेटाइजर का तीन से पांच बार छिड़काव हो चुका है।
हालात 40 घरों में 30 विधवा-अब खाने का संकट भास्कर टीम देवगढ़ जिसे नला का माताजी भी कहते हैं में पहुंची। 40 घरों में 30 विधवा हैं। अधिकांश के पति की माैत सिलोकोसिस से हुई है। अब कमाने वाला कोई नहीं है। महिलाओं ने बताया कि पिछली बार तो राशन मिला था लेकिन इस बार कुछ नहीं मिला है। ऐसे में खाने-पीने का संकट आ गया है।
लापरवाही 03 जनों की मौत पर कोई सर्वे नहीं लक्ष्मणपुरा में 3 जनों की मौत हाे चुकी है। इसके बाद भी न तो अस्पताल से कोई टीम आई न किसी का सैंपल लिया। सेनेटाइज भी नहीं किया। सीताराम धाकड़ की 72 वर्षीय मां का 12 मई काे निधन हुआ। वे काेराेना पाॅजिटिव थी। न काेई सर्वे हुआ न सैंपल लिए।