नई दिल्ली। एक बार फिर अरब की रेगिस्तानी धरती झुलस रही है। कुदरत ने इसे मरुस्थल और वीरान पहले ही बनाया था अब रॉकेट और मिसाइलें यहां खून से अपनी प्यास बुझा रही हैं। विवाद जमीन का है, लेकिन ये भी सच है कि इसे मजहबी चश्मे से देखा जाता है। इजराइल में यहूदी तो अरब देशों में सुन्नी मुस्लिम हैं।
अंग्रेजों का किया-धरा
जहां आप इजराइल-फिलिस्तीन विवाद देख रहे हैं वो मिडिल ईस्ट यानी मध्य पूर्व में आता है। ये एशिया के बाद का हिस्सा है। यहां 95 फीसदी आबादी मुस्लिम है। नक्शे पर अगर इसे सीधे-सीधे देखें तो भारत से पाकिस्तान और ईरान होते हुए इजराइल पहुंचते हैं। 1948 में फिलिस्तीन को तोड़कर इजराइल बनाया गया। हालांकि, यहां पहले भी यहूदी रहा करते थे। यह विवाद वास्तव में अंग्रेजों की देन है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1948 में फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बांटा गया। इजराइल और फिलिस्तीन। इसके एक साल पहले भारत को तोड़कर पाकिस्तान बनाया गया। यहां भी अंग्रेज कश्मीर समस्या छोड़ गए।
IPL यानी इजराइल-फिलिस्तीन और लंदन
दूसरे विश्व युद्ध के बाद कहें या उसके पहले भी अंग्रेज जहां भी जाते वहां अपनी सल्तनत कायम कर लेते। कुछ ऐसे बंटवारे कर देते कि वहां के लोग आपस में लड़ते रहें। यहां भी ऐसा ही है और इसीलिए हम इसे IPL कह रहे हैं। इजराइल और फिलिस्तीन बनाने का फैसला लंदन में हुआ। इंडिया-पाकिस्तान भी लंदन की ही देन हैं। यानी यहां भी IPL ही हो रहा है।
हमास ने गाजा पट्टी में इसी तरह की कई सुरंगें बनाई हैं। ये कई मीटर लंबी हैं।
UNO की आड़ में अपने हित साधे
ब्रिटिश एम्पायर गुलाम देशों को आजाद तो करता, लेकिन उनके बीच विवाद का एक बीज भी बो जाता। फिर इसकी ओट में इन्हीं देशों को ब्रिटेन और अमेरिका हथियार भी बेचते। कुछ दिनों बाद ये विवाद संयुक्त राष्ट्र संघ यानी UNO पहुंच जाते। इजराइल-फिलिस्तीन के साथ यही हुआ और भारत-पाकिस्तान के साथ भी कश्मीर मुद्दे पर यही हो रहा है। सच्चाई ये है कि UNO कभी किसी मसले का हल खोज ही नहीं सका।
BALFOUR डिक्लरेशन
1948 में अंग्रेज ही यह कॉन्सेप्ट (बेलफोर) लेकर आए। इसके तहत फिलिस्तीन को तोड़ा गया। 14 मई 1948 को इजराइल की स्थापना हुई। फिलिस्तीन की कुल जमीन का 44% हिस्सा इजराइल और 48% फिलिस्तीन को दिया गया। यरुशलम को 8% जमीन देकर इसे UNO का हिस्सा बना दिया गया। यानी इस पर न तो फिलिस्तीन का हक था और न इजराइल का। अरब देश इससे नाराज हो गए। इजराइल बना ही था कि जंग शुरू हो गई। ठीक वैसे ही जैसे 1947 में भारत से टूटकर पाकिस्तान बना और इसी वक्त कश्मीर के मुद्दे पर दोनों देश भिड़ गए। दोनों मामलों में आज भी यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।
इजराइल बनते ही उस पर 6 अरब देशों ने हमला बोला। इजराइलियों के लिए अस्तित्व की लड़ाई थी। वो ये जंग जीत गए।
यरुशलम को लेकर विवाद क्यों
यह शहर तीन धर्मों की आस्था का केंद्र है। ईसाई, मुस्लिम और यहूदी। ईसाई मानते हैं कि यरुशलम ही बैथलेहम है जहां ईसा मसीह का जन्म हुआ। यहूदी मानते हैं कि यहीं से उनके धर्म की शुरुआत हुई। और मुस्लिमों की तीसरी सबसे पवित्र मस्जिद अल अक्सा यहीं है।
इजराइल और फिलिस्तीन की ताजा जंग अल अक्सा मस्जिद में इजराइली पुलिस के घुसने और लोगों से मारपीट का नतीजा है।
48% से सिकुड़कर अब महज 12% जमीन पर फिलिस्तीन
1948 के पहले 100% हिस्से पर फिलिस्तीन था। 14 मई 1948 को इजराइल बना और फिलिस्तीन महज 48% हिस्से में रह गया। इजराइल के हिस्से 44% जमीन आई। फिर इजराइल अपनी ताकत के दम पर फिलिस्तीनी जमीन पर कब्जा करता चला गया। हालात ये हैं कि आज महज 12% जमीन पर फिलिस्तीन है। इजराइल ने कुछ ऐसे नियम बनाए कि फिलिस्तीनी अपनी रक्षा के लिए सेना ही नहीं बना सकते। उन्हें हथियार रखने की भी इजाजत नहीं है।
मुस्लिमों के लिए ये आन की लड़ाई क्यों
आम लोगों के लिए मुस्लिमों के दो धार्मिक स्थल अहम हैं। एक मक्का और दूसरा मदीना। ये दोनों सऊदी अरब में हैं, लेकिन तीसरी पवित्र मस्जिद अल अक्सा है और ये यरुशलम में है। इस पर UN का कब्जा है और ये बात दुनिया जानती है कि संयुक्त राष्ट्र और कुछ नहीं बल्कि अमेरिका और इजराइल जैसे ताकतवर देशों की कठपुतली है।
विवाद कैसे शुरू हुआ
यरुशलम में एक जगह है- शेख जर्राह। इजराइल के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इस जगह को खाली किया जाए, क्योंकि ये जगह यहूदियों की है। करीब 150 साल पहले जब ब्रिटिश शासन ने यहूदियों को यह भरोसा दिलाया कि इस जगह उन्हें ही बसाया जाएगा तो यहूदियों ने अरब के लोगों से बहुत महंगे दाम पर यह जमीन खरीदी। इसके डॉक्यूमेंट्स भी यहूदियों यानी इजराइल के पास मौजूद हैं। अब इजराइली सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि शेख जर्राह इलाके में मौजूद फिलिस्तीनियों के 500 मकानों को तुड़वा दिया जाए क्योंकि इस जमीन का मालिकाना हक 150 साल से यहूदियों के पास है।
शेख जर्राह से कुछ दूरी पर अल अक्सा मस्जिद है। 13 अप्रैल को यहां नमाज के बाद इजराइली पुलिस और मुस्लिमों में संघर्ष हुआ। पुलिस मस्जिद के अंदर घुस गई।
सैन्य ताकत के मामले में हमास या फिलिस्तीन इजराइल के आगे कहीं नहीं ठहरता। ये भी कहा जा सकता है कि दोनों की कोई तुलना ही नहीं है।
नेतन्याहू पर दबाव
अल अक्सा में इजराइली कार्रवाई का विरोध कई देशों ने किया। भारत ने भी कहा कि यथास्थिति बनाकर रखनी चाहिए। UN ने कहा- वहां हमारा शासन है। लिहाजा, इजराइल कार्रवाई बंद करे। इजराइल की आबादी एक करोड़ से भी कम है और इसमें 14% (करीब 15 लाख) अरब मुस्लिम या कहिए कि फिलिस्तीनी हैं। अल अक्सा के अपमान से ये भी नाराज हो गए। इजराइल में यहूदियों और मुस्लिमों के बीच दंगे शुरू हो गए। बाहर से हमास हमले कर रहा था। नेतन्याहू की सरकार भी अल्पमत में है। यानी नेतन्याहू सरकार के लिए तीन तरफ से मुसीबत आन पड़ी।
फिलिस्तीन में अब दो हिस्से
1948, 1956, 1967, 1973 और 1982 में झड़पें हुईं। इजराइल को भारी पड़ना ही था और वो पड़ा भी। हर बार फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करता चला गया। अब फिलिस्तीन कहता है कि हमको 1948 में मिला 44% हिस्सा ही दे दो, लेकिन इजराइल भला ऐसा क्यों करेगा? उसने जंग से ये जमीन हासिल की है। और एक बात- फिलिस्तीन इतनी भी जमीन नहीं संभाल सका। उसके दो हिस्से हो गए। पहला वेस्ट बैंक और दूसरा गाजा पट्टी। वेस्ट बैंक में रहने वाले समस्या का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं। वहीं, गाजा पर हमास का कब्जा है। वो जंग के जरिए इजराइल से अपनी जमीन वापस लेना चाहते हैं।
2014 की जंग में भी इजराइल ने गाजा पट्टी को तबाह कर दिया था। अब 7 साल बाद गाजा उसी हालत में पहुंच गया है।
हमास को ईरान का समर्थन
रॉकेट गाजा पट्टी से दागे जाते हैं। यह हमास के कब्जे वाला हिस्सा है और इसे ईरान का समर्थन हासिल है। ईरान और इजराइल के बीच कट्टर दुश्मनी है। एक रोचक बात यह है कि ईरान शिया बहुल देश है, जबकि अरब, फिलिस्तीन या हमास सब सुन्नी हैं।
हमास के पास बहुत छोटे रॉकेट्स हैं। इन्हें कासिम नाम दिया गया है। एक रॉकेट की कीमत ढाई से 3 लाख के बीच है। हमास ने अब इसकी रेंज भी बढ़ा ली है। ये तेल अवीव तक पहुंच रहे हैं। ईरान से ये रॉकेट मिस्र और फिर गाजा भेजे जाते हैं। बहरहाल, इजराइल के पास ‘आयरन डोम’ एयर डिफेंस सिस्टम है। और वो हमास के 92% रॉकेट रास्ते में ही ये मार गिराता है। दूसरी तरफ, जब इजराइल हवाई हमले करता है तो फिलिस्तीन में भारी जान-माल का नुकसान होता है। इसकी एक वजह यह है कि फिलिस्तीन के पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है। ये इलाका भी बहुत छोटा और बेहद घनी आबादी वाला है।
इजराइल क्यों मजबूत
- हर मामले में सेल्फ डिपेंड है
- दुनिया के सबसे घातक हथियार उसके पास मौजूद
- वो एटमी ताकत (अघोषित) है
- UN सिक्युरिटी काउंसिल में हर मुल्क उसका दोस्त
ग्रेटर इजराइल कॉन्सेप्ट
ये माना जाता है कि इजराइल अब ग्रेटर इजराइल कॉन्सेप्ट पर काम कर रहा है। इसके जरिए वो इजिप्ट, सऊदी अरब, कुवैत, ईरान और फिर सीरिया को अपने कब्जे में लेना चाहता है। इन्हीं 6 देशों ने मिलकर 1967 में उस पर हमला किया था और मुंह की खाई थी।
एक हकीकत यह है कि अरब देश फिलिस्तीन के मुद्दे पर तो बोलते हैं, लेकिन चीन के शिनजियांग प्रांत में खत्म हो रही उईगर मुस्लिमों की प्रजाति पर चुप रहते हैं। इसकी एक ही वजह है। और वो ये कि चाहे अरब हो या दूसरे मुस्लिम देश। हर किसी के अपने हित हैं। 57 मुस्लिम देशों में से एक भी ऐसा नहीं जो हमास तो छोड़िए, फिलिस्तीन की भी खुलकर मदद कर पाए। रहा UN तो वो इजराइल और अमेरिका के खिलाफ मुंह तक नहीं खोल सकता। कुल मिलाकर इस मसले का हल निकट भविष्य में दिखाई नहीं देता। इजराइल और फिलिस्तीन या हमास यूं ही टकराते रहेंगे, जान-ओ-माल का नुकसान होता रहेगा और दुनिया? वो तमाशा देखती रहेगी।