शिवजी से आशीर्वाद में मिला था फरसा इसलिए नाम पड़ा परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं ये

Posted By: Himmat Jaithwar
5/13/2021

वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि पर परशुराम का जन्म हुआ था। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन ही इनकी जयंती मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 14 मई, शुक्रवार को रहेगा। ये भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। अमर होकर कलियुग में मौजूद हनुमानजी समेत 8 देवता और महापुरुषों में परशुराम भी एक हैं। इनका जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था और इन्हें भगवान शिव ने आशीर्वाद में परशु (फरसा) दिया था। इसी कारण इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। इनकी पूजा से साहस बढ़ता है और हर तरह का डर खत्म हो जाता है।

ब्राह्मण कुल में पैदा फिर भी क्षत्रियों जैसा व्यवहार
भगवान राम और परशुराम दोनों ही विष्णु के अवतार हैं। भगवान राम क्षत्रिय कुल में पैदा हुए लेकिन उनका व्यवहार ब्राह्मण जैसा था। वहीं भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ, लेकिन व्यवहार क्षत्रियों जैसा था। भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं। इन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। यही नहीं इनके गुस्से से भगवान गणेश भी नहीं बच पाए थे।

ब्रह्मवैवर्त पुराण: परशुराम ने तोड़ा था गणेशजी का दांत
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे, लेकिन प्रथम पूज्य शिव-पार्वती पुत्र भगवान गणेश ने उन्हें शिवजी से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने परशु से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ा डाला। इस कारण से भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।

पूजा विधि
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाने के बाद साफ कपड़े पहनें। इसके बाद एक चौकी पर परशुरामजी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
हाथ में फूल और अक्षत लेकर परशुराम जी के चरणों में छोड़ दें। इसके बाद अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं और नैवेद्य अर्पित करें फिर कथा पढ़ें या सुनें।
कथा के बाद भगवान को मिठाई का भोग लगाएं और धूप-दीप से आरती उतारें।
आखिरी में भगवान परशुराम से प्रार्थना करें कि वे साहस दें और हर तरह के भय व अन्य दोष से मुक्ति प्रदान करें।



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