केंद्र का फैसला बना तेजी से वैक्सीनेशन घटने की वजह; बढ़े वैक्सीन के दाम, ज्यादा बर्बादी का भी डर

Posted By: Himmat Jaithwar
5/13/2021

नई दिल्ली। जब केंद्र सरकार अकेले कोरोना वैक्सीन खरीदकर देशभर में उपलब्ध करा रही थी, उस दौरान वैक्सीन को मैन्युफैक्चरिंग यूनिट से लोगों तक पहुंचाने का एक मजबूत सिस्टम बन गया था, लेकिन केंद्र सरकार के 1 मई से राज्यों और अस्पतालों को खुद से वैक्सीन खरीदने का अधिकार देने के बाद वैक्सीन सप्लाई में नई रुकावटें पैदा हो गई हैं। जिससे वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन में समस्या आ रही है और इसके लोगों तक पहुंचने में देरी हो रही है। साथ ही वैक्सीन बहुत महंगी भी होती जा रही है।

केंद्र-राज्य के 50-50% वैक्सीन खरीद फॉर्मूले में दो बड़ी अड़चनें
वैक्सीन सप्लाई से जुड़े लोगों ने '50-50% वैक्सीन खरीद' मॉडल की दो बड़ी अड़चनों के बारे में बताया। पहली यह कि कितनी वैक्सीन कहां भेजी जानी है, इसे लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है। पहले केंद्र सरकार वैक्सीन की अकेली खरीदार थी और वही तय करती थी कि कितनी वैक्सीन किस राज्य को दी जानी है। इसे 'हब एंड स्पोक मॉडल' भी कहा जाता है। अब ऐसी केंद्रीय व्यवस्था न होने के चलते, किस राज्य में कितनी वैक्सीन की जरूरत है, इसे लेकर गड़बड़ी की स्थिति पैदा हो गई है।

दूसरी अड़चन यह है कि वैक्सीन की खरीद करने वाले राज्यों और प्राइवेट अस्पतालों को वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज में भारी समस्या हो रही है। और इसके लिए केंद्र की ओर से उनकी मदद नहीं की जा रही है।

केंद्र ने देश भर में वैक्सीन सप्लाई का मजबूत ढांचा बनाया था
1 मई से पहले केंद्र सरकार के यूनिवर्सल इम्युनाइजेशन प्रोग्राम (UIP) इन्फ्रास्ट्रक्चर के तहत वैक्सीन का ट्रांसपोर्टेशन किया जा रहा था। जिसके लिए देशभर में 29 हजार कोल्ड चेन पॉइंट का एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया गया था, ताकि वैक्सीन को तय तापमान पर स्टोर किया जा सके।

ऐसे में वैक्सीन का ऑर्डर मिलते ही सप्लाई भी शुरू हो जाती थी क्योंकि केंद्र सरकार ही अकेली खरीदार थी और उसके पास ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज का पर्याप्त प्रबंध था।

SII और भारत बायोटेक से देश भर में कैसे पहुंची वैक्सीन?
अब तक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) में वैक्सीन निर्माण के बाद उसे 10-10 डोज वाली कांच की शीशियों में भरा जाता है। ये शीशियां स्कॉट कैसा कंपनी बनाती है, जिसके साथ SII की डील है।

शीशियों में वैक्सीन भर जाने के बाद इन्हें आइस बॉक्स में पैक किया जाता है और रेफ्रिजरेटेड ट्रकों में चढ़ाया जाता है। फिर इसे पुणे एयरपोर्ट लाया जाता है और केंद्र सरकार के निर्देश के आधार पर अलग-अलग फ्लाइट से केंद्र के स्टोरेज सेंटर में भेजा जाता है। केंद्र सरकार राज्यों की जनसंख्या और वहां संक्रमण आदि के प्रसार को देखते हुए फैसला करती है कि कहां, कितनी वैक्सीन भेजी जानी है।

इसी मॉडल के आधार पर भारत बायोटेक भी अपने हैदराबाद और बेंगलुरु सेंटर से कोविड-19 वैक्सीन की सप्लाई कर रही थी।

प्लेन से ट्रांसपोर्ट महंगा होने के चलते सड़क मार्ग से भी पहुंचाई गई वैक्सीन
16 जनवरी को वैक्सीनेशन प्रोग्राम की शुरुआत से पहले SII और भारत बायोटेक; इंडिगो, स्पाइसजेट, गोएयर, विस्तारा और एयर इंडिया जैसी कॉमर्शियल फ्लाइट से कार्गो के रूप में वैक्सीन ट्रांसपोर्ट कर रही थीं। चूंकि हवाई ट्रांसपोर्टेशन महंगा होता है, इसलिए बाद में ट्रांसपोर्टेशन का खर्च कम करने के लिए ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया जैसी कंपनियों की सेवाएं भी ली गईं ताकि वैक्सीन सड़क मार्ग से ले जाई जा सकें। ये कंपनियां वैक्सीन को रेफ्रिजरेटेड ट्रकों में भरकर नई दिल्ली, मुंबई, करनाल, कोलकाता और चेन्नई पहुंचा रही थीं, जहां केंद्र सरकार के बड़े-बड़े डिपो मौजूद हैं।

इन सरकारी मेडिकल स्टोर डिपो (GMSD) या प्राथमिक वैक्सीन स्टोरेज सेंटर को चलाने का काम डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज (DGHS) करता है। यहां से फिर रेफ्रिजरेटेड ट्रक या वैन में वैक्सीन अलग-अलग राज्यों तक ले जाई जाती है। जैसा पहले भी बताया गया कि केंद्र सरकार तय करती है, कहां-कितनी वैक्सीन भेजी जानी है।

साधारण रेफ्रिजरेटर में स्टोर की जा सकती है कोवीशील्ड और कोवैक्सिन
इसके बाद भले ही केंद्र सरकार का काम खत्म हो जाता है, लेकिन यह मॉडल आगे भी काम करता रहता है। स्टेट के लिए तय स्टोरेज से वैक्सीन को स्थानीय और जिले स्तर के वैक्सीन स्टोर पर भेजा जाता है। जहां से प्राइमरी और कम्युनिटी हेल्थ सेंटर या प्राइवेट हॉस्पिटल को वैक्सीन भेजी जाती है। अगर यहीं वैक्सीन लग जाती है तो ठीक, वर्ना इसे उस सेंटर पर भेज दिया जाता है, जहां वैक्सीनेशन हो रहा होता है। कोविन डैशबोर्ड आंकड़ों के मुताबिक देश में 58,259 सरकारी और 2,305 प्राइवेट वैक्सीनेशन साइट हैं।

इस मॉडल के जरिए वैक्सीन आसानी से नॉर्थ-ईस्ट के दूर-दराज इलाकों में भी पहुंच जा रही थी। सबसे पहले वैक्सीन कोलकाता पहुंचती थी, जहां से इसे स्थानीय फ्लाइट्स के जरिए नॉर्थ-ईस्ट के अलग-अलग राज्यों में भेजा जाता था। चूंकि कोवीशील्ड और कोवैक्सिन दोनों को ही 2 डिग्री से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखा जा सकता है, इसलिए इन्हें सेंटर पर साधारण रेफ्रिजरेटर में भी रखा जा सकता है।

1 मई से वैक्सीनेशन की रणनीति में किया गया बदलाव
मई से वैक्सीनेशन की रणनीति में जो बदलाव किए गए हैं, उनके तहत केंद्र वैक्सीन की 50% मात्रा ही खरीदेगा, बाकी 50% का इंतजाम राज्यों को खुद करना है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से यह भी बताया गया कि केंद्र जो वैक्सीन खरीदेगा, उन्हें राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश को संक्रमणों की संख्या और उनके वैक्सीन लगाने की गति के आधार पर बांटा जाएगा। 19 अप्रैल को मंत्रालय ने यह भी कहा था, 'इस दौरान वैक्सीन की बर्बादी पर भी नजर रखी जाएगी और जिन राज्यों में बर्बादी हो रही होगी, उस राज्य की सप्लाई पर इसका बुरा असर होगा।'

राज्यों के ऑर्डर पूरे नहीं कर पा रहे वैक्सीन निर्माता, विदेशी कंपनियों से खरीदने की मजबूरी
वैक्सीन बनाने वालों के सामने भी राज्यों से आने वाले ऑर्डर पूरे करने की चुनौती है। जानकार मानते हैं कि इससे न सिर्फ वैक्सीन के लोगों तक पहुंचने में एक और अवरोध जुड़ जाएगा, बल्कि भारत का वैक्सीनेशन कार्यक्रम भी धीमा हो जाएगा। उनकी बात सही भी है। अभी तक राज्यों को सप्लाई न होने के चलते वैक्सीनेशन में भारी गिरावट आई है। अप्रैल के मुकाबले मई में रोजाना आधे लोगों को भी वैक्सीनेट नहीं किया जा रहा है। ऐसे में कोरोना से अधिक प्रभावित राज्य अपने लोगों को वैक्सीनेट करने के लिए विदेशी कंपनियों से वैक्सीन खरीदने को मजबूर हो रहे हैं।

कई राज्यों ने विदेशी वैक्सीन निर्माताओं से टीके की खरीद के लिए ऊंची बोलियां लगाई हैं। तेलंगाना, दिल्ली और कर्नाटक जैसे कई राज्यों ने कहा है कि वे वैक्सीन सप्लाई में आने वाली कमी को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय टेंडर निकालने वाले हैं। अगर विदेशी कंपनियों से वैक्सीन ली गई तो इसके दाम कई गुना ज्यादा हो सकते हैं।

केंद्र सरकार ने अब तक राज्यों को 18 करोड़ से ज्यादा डोज की सप्लाई की है। सोमवार तक इसमें से 17.1 करोड़ डोज लोगों को लगाई जा चुकी है यानी मंगलवार को सिर्फ 90 लाख डोज ही राज्यों के पास थी। केंद्र सरकार के डेटा के मुताबिक अगले तीन दिनों में और 7.29 लाख वैक्सीन डोज राज्यों की दी जानी है।

राज्यों के सामने बड़े वैक्सीन ऑर्डर को स्टोर करने की समस्या
केंद्र अब भी 50% वैक्सीन खुद लेकर उसकी सप्लाई राज्यों को करने वाला है, लेकिन राज्य जो ऑर्डर सीधे दे रहे हैं, उसकी सप्लाई हो भी जाए तो भी उसके लिए राज्य पहले की तरह देश के चार-पांच बड़े डिपो का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। उन्हें अपने राज्य के अंदर ही बड़ा डिपो बनाना होगा ताकि वैक्सीन को पर्याप्त तापमान पर सुरक्षित ढंग से स्टोर किया जा सके।

यह समस्या प्राइवेट अस्पतालों के सामने भी है। इसके लिए उन्हें वैक्सीन निर्माताओं के साथ ही कोल्ड चेन कंपनियों के साथ भी समझौता करना पड़ रहा है ताकि जिन वैक्सीन को लोगों को लगाया जाना है, उन्हें सुरक्षित रखा जा सके। यह देखते हुए कि 18 से 44 साल के बीच के 60 करोड़ से ज्यादा लोग इन वैक्सीन को प्राइवेट अस्पतालों में लगवा सकते हैं, उन्हें भी बड़े स्तर पर वैक्सीन स्टोरेज की व्यवस्था करनी पड़ रही है।

पहले ही राज्यों और अस्पतालों के लिए वैक्सीन महंगी, दूसरे खर्चे दाम को और बढ़ा रहे
वैक्सीन निर्माताओं ने भी विक्रेताओं के साथ सप्लाई के लिए डील की है। दाम, उपलब्धता और समय के आधार पर ये एजेंट फ्लाइट या अन्य माध्यम से वैक्सीन खरीदार को भेजते हैं। ऐसे में जब वैक्सीन निर्माता पहले ही राज्यों और प्राइवेट अस्पतालों को अधिक दामों पर वैक्सीन दे रहे हैं, तो वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज में होने वाला खर्च दामों को और बढ़ा रहा है।

किस राज्य को वैक्सीन मिले, किसे नहीं, यह फैसला वैक्सीन निर्माता पर न छोड़ा जाए
प्राइवेट अस्पताल से जुड़े एक अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि केंद्र पहले प्राइवेट वैक्सीनेशन सेंटर से वैक्सीन के ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज में आने वाले खर्च के तौर पर 100-150 रुपए लेता था। अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, 'प्राइवेट सेंटर को केंद्र सरकार से वैक्सीन लेने की छूट मिलनी चाहिए, भले ही उन्हें वैक्सीन डोज की कीमत चुकानी पड़े। सिर्फ सरकार वैक्सीन निर्माता से बात करे। किसी वैक्सीन निर्माता पर यह फैसला क्यों छोड़ा जाए कि वह दो राज्यों या दो प्राइवेट हॉस्पिटल में से किसे पहले वैक्सीन देगा। वह भी ऐसे समय में जब पहले ही सप्लाई कम हो रही है।'

उन्होंने कहा, 'ऐसे में न सिर्फ वैक्सीन पाने की प्रक्रिया पहले आओ-पहले पाओ जैसी हो गई है बल्कि दामों की बोली लगने तक की नौबत आ गई है। अभी हमारे पास ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज की सुविधा हो भी तो वैक्सीन की कीमत केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाली वैक्सीन से बहुत ज्यादा होने वाली है।'

स्टोरेज की कमी से वैक्सीन के खराब होने का खतरा भी बढ़ा
राज्यों की ओर से वैक्सीन स्टोरेज को लेकर भी पर्याप्त तैयारी नहीं है। प्राइवेट कोल्ड चेन कंपनियों को इस काम में लगाने पर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। ऐसे में आने वाली वैक्सीन के खराब होने का भी खतरा है। कोल्ड चेन चलाने वालों के मुताबिक जब देश में वैक्सीन की सप्लाई में कमी आ रही है तो क्या कोल्ड स्टोर में रखने लायक वैक्सीन मिल सकेगी? एक प्राइवेट कोल्ड चेन कंपनी चलाने वाले व्यापारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, 'अभी कुछ साफ नहीं है... कई तरीकों पर विचार किया जा रहा है।'



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