जबलपुर। कोरोना संक्रमण के बीच अब ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) नाम की बीमारी ने भी चिंता बढ़ा दी है। कोरोना संक्रमितों को यह बीमारी चपेट में ले रही है। शहर में पिछले 15 दिनों में इस बीमारी ने तीन लोगाें की जान ले ली है। 12 नए पीड़ित मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती हैं। वहीं, शहर के निजी अस्पतालों में भी इसके कई मरीजों के भर्ती होने की खबर है। कुछ के आंख व जबड़ा का ऑपरेशन कर निकालना पड़ा है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के ईएनटी के विभागाध्यक्ष डॉक्टर कविता सचदेवा ने बताया, 38 वर्षीय देवांशु वर्मा समेत तीन लोगों की मौत पिछले एक सप्ताह में हुई है। वहीं, इससे पीड़ित 12 लोगों का इलाज चल रहा है। तीनों ही युवक कोविड से संक्रमित थे। पॉजिटिव आने के बाद इस बीमारी के लक्षण सामने आए। जांच में फंगस की पुष्टि हुई। इलाज के बाद भी बचाया नहीं जा सका।
निगेटिव होने के चार-पांच दिन में फंगस की चपेट में आ रहे
चिकित्सकों के मुताबिक कोविड संक्रमित मरीज ही इस ब्लैक फंगस की चपेट में आ रहे हैं। निगेटिव होने के चार से पांच दिन के बाद इस बीमारी के लक्षण सामने आ रहे हैं। महाकौशल में तेजी से यह बीमारी बढ़ रही है। 12 फंगस से पीड़ित अकेले मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती हैं।
आंख का फंगस जानलेवा
मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर परवेज सिद्दकी ने बताया कि ब्लैक फंगस नाक से आंख की ओर बढ़ता है। यदि आंख का इलाज नहीं किया गया, तो यह जानलेवा हो जाता है। इसकी चपेट में आने वाले मरीजों में मृत्युदर 50% तक है।
पुरानी बीमारी है ब्लैक फंगस
विक्टोरिया जिला अस्पताल के ईएनटी विशेषज्ञ डॉक्टर पंकज ग्रोवर के मुताबिक यह पुरानी बीमारी है। कोविड संक्रमण के दौरान मरीज को देने वाले जीवन रक्षक दवा स्टेराॅयड के प्रयोग से इसका खतरा बढ़ गया है। जिला अस्पताल में पांच मरीज इस बीमारी से पीड़ित सामने आए हैं। सभी का इलाज जारी है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर खतरा ज्यादा
मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विभाग के रिटायर्ड विभागाध्यक्ष डॉक्टर अनिल अग्रवाल ने बताया कि ब्लैक फंगस के लिए कारगर दवा नहीं बनी है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर कोविड संक्रमित ठीक होने के चार से पांच दिन बाद इसकी चपेट में आ रहे हैं। स्टेराॅयड का हाईडोज लेने वालों को इसका खतरा अधिक है।
इससे मरीज अस्थाई तौर पर डायबिटिक होते हैं। यही वह समय रहता है, जब ब्लैक फंगस चपेट में लेता है। लगातार ऑक्सीजन पर रहने वाले मरीज भी चपेट में आ रहे हैं। ऑक्सीजन नली साफ नहीं करने और लगातार ऑक्सीजन चलने पर नाक सूखने लगता है। नाक के रास्ते से यह आंख और ब्रेन को डैमेज कर देती है।
दो निजी अस्पताल में आंख व जबड़े का ऑपरेशन
शहर के रसल चौक और दमोह नाका स्थित दो अस्पतालों में तीन फंगस से पीड़ित मरीजों का ऑपरेशन किया गया। इसमें दो की आंख निकालना पड़ी, तो एक का जबड़ा काट कर अलग करना पड़ा। ऐसा नहीं करने पर फंगस शहर को चपेट में ले लेता।
दवाओं की कालाबाजारी भी शुरू
ब्लैक फंगस का अभी जिले में 50 से भी कम मामले सामने आए, लेकिन इसके लिए जरूरी दवाओं की कालाबाजारी शुरू हो गई। प्रशासन ने जल्द ध्यान नहीं दिया, तो संकट और बढ़ जाएगा। फंगस की दवा Amphotericin B इंजेक्शन और टैबलेट Posaconazole 200 MG अभी से बाजारों से गायब हो गया। पीड़ित लोग इन दवाओं के लिए भटक रहे हैं। दोनों ही दवाओं की कीमत भी हजारों में है।