मार्च 2011, ICICI बैंक के दो कर्मचारी मुंबई वाले कॉर्पोरेट ऑफिस के बाहर कैफे में बैठे चाय पी रहे थे। उन्हें बैंक ने खेती-किसानी और किसानों को लोन आदि देने की पूरी प्लानिंग की जिम्मेदारी सौंपी हुई थी। इनमें से एक थे बैंक के एग्री कमोडिटी फाइनेंस हेड प्रसन्ना राव और दूसरे प्रोडक्ट हेड आनंद चंद्रा। इन्हें चिंता थी कि बैंक असली किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा। उसकी पहुंच व्यापारियों तक ही है, जो किसानों से अनाज कम पैसे में खरीदकर जमाखोरी कर लेते हैं।
तभी आनंद कहा कि अगर हम अपनी कोई कंपनी ले आएं और किसानों को सीधे गोदाम दें तो...? प्रसन्ना उनकी बात पर थोड़ा सा मुस्कुरा दिए और काम पर वापस लौट गए, लेकिन वो बात दोनों के मन में कहीं अटक गई। फिर उन्होंने यही बात ग्रुप प्रोडक्ट हेड चटानाथन देवाराजन से की, लेकिन ये बातें करीब दो साल चलती रहीं। साल 2013 में तय किया कि वे नौकरी छोड़कर अपना स्टार्टअप करेंगे। उन्होंने जेएम बक्सी ग्रुप की कंपनी आर्या में एक हिस्सेदारी खरीदकर काम शुरू कर दिया।
आइडियाः किसानों को खेत से अनाज कटने के बाद की सारी सेवाएं देना
देश के किसान अपना खून-पानी लगाकर अनाज पैदा करते हैं, लेकिन जब बारी अनाज के बदले पैसे लेने की आती है तो माल की अधिकता होने के चलते उसे औने-पौने दामों में बेचना पड़ता है। किसानों को ऐसा न करने पड़े, इसके लिए काम करता है स्टार्टअप- आर्या। यह अनाज रखने के लिए किसानों को गोदाम उपलब्ध कराता है, उस रखे हुए अनाज पर किसानों को लोन दिलाता है और अनाज बेचने का सही समय भी बताता है।
स्टार्टः फाउंडर्स के लिए पिछली नौकरी छोड़ने का फैसला सबसे कठिन था
आर्या के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर आनंद चंद्रा बताते हैं कि जब इस स्टार्टअप को शुरू करने के लिए वे मेहनत कर रहे थे, तब सबसे बड़ी चुनौती पिछली नौकरी को छोड़ना था। सभी लोग बहुत स्थापित और अच्छी सैलरी वाली नौकरी कर रहे थे। आनंद को तब नौकरी करते छह-सात साल ही हुए थे। परिवार वालों ने कई तरह के सवाल पूछने शुरू कर दिए। ईएमआई से लेकर कई तरह के बोझ थे।
चटानाथन कहते हैं कि उन्हें नौकरी करते हुए 20 साल हो गए थे, इसके बाद भी यह फैसला चुनौतीपूर्ण था, लेकिन प्रसन्ना और आनंद को देखकर उन्हें हिम्मत मिली।
फंडिंगः अपनी सैलरी के पैसे से शुरू किया काम, अब 180 करोड़ की है फंडिंग
मैनेजिंग डायरेक्टर डी चटानाथन कहते हैं कि हम नौकरी में यही काम कराते थे, लोगों को फंडिंग दिलाना, लेकिन 20 साल नौकरी के बाद भी जब अपने काम शुरू किया तो फंडिंग को लेकर तमाम शर्तें रखी जाने लगीं। आनंद कहते हैं कि हमने सैलरी से करीब एक करोड़ रुपए बचाए थे। उसी से काफी वक्त तक काम करते रहे। हालांकि अब LGT लाइटस्टोन एस्पाडा, ओमनीवोर और क्वोना कैपिटल की ओर से करीब 180 करोड़ रुपए की फंडिंग है।
बिजनेस मॉडलः गोदाम में अनाज रखने के किराए से लेकर लोन देने तक का है काम
आनंद बताते हैं कि किसानों को गोदाम देने के लिए आर्या उनसे किराया लेता है। यह बेहद कम होता है, लेकिन अगर किसान अनाज को रख दे तो पैसे कहां से आएंगे। इसलिए आर्या ने ICICI समेत कई बैंकों से टाई-अप कर रखा है। उनसे किसानों के रखे हुए अनाज पर लोन दिलाता है।
बैंकों से बात न बनने पर आर्या धन फाइनेंशियल सॉल्यूशन के तहत कंपनी खुद किसानों को लोन देती है। इसमें वो किसानों से बैंकों से कम दरों पर ब्याज लेते हैं। साथ ही किसानों को अनाज बेचने का सही समय भी बताते हैं। इसे वो आर्या एनबीएफसी के तहत करते हैं। यानी नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कॉर्पोरेशन सॉल्यूशन पर किसानों की मदद करते हैं, इसके लिए किसानों से कुछ पैसे लेते हैं।
आनंद के अनुसार उन्होंने 40 कर्मचारियों के साथ काम शुरू किया था, लेकिन जैसे-जैसे वे गांव और छोटे शहरों की ओर बढ़े, उनका काम बढ़ता गया। अब कंपनी में 1600 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं।
टारगेटः गांव के किसानों तक पहुंचकर उन्हें फायदा पहुंचाना
डी चटानाथन कहते हैं कि हम चाहते हैं जब कभी पोस्ट हार्वेस्ट यानी अनाज उगने के बाद का सॉल्यूशन देने वाली कंपनियों की चर्चा हो तो हमारा नाम सबसे पहले लिया जाए। यह तब तक संभव नहीं है, जब तक हम गांव-गांव में नहीं पहुंचेंगे। अभी हमारे पास 15 हजार 400 से ज्यादा अपने गोदाम हैं। इस वक्त हम करीब 3.5 लाख किसानों को फायदा दे पा रहे हैं। साथ ही 450 FPOs यानी किसानों को सहायता करने वाली संस्थाओं से जुड़े हैं। अब तक मध्यप्रदेश, राजस्थान समेत 17 राज्यों में हम पहुंच चुके हैं। आने वाले दिनों में बाकी राज्यों में भी पहुंचेंगे।