हिंदू धर्म में अमावस्या का महत्व ज्योतिषीय और धार्मिक नजरिये से वैशाख महीने की अमावस्या बहुत खास मानी गई है। इस बार ये 11 मई को है। इस दिन चावल के आटे से बने सत्तू का भी दान किया जाता है। इसलिए इसे सतुवाई अमावस्या भी कहा जाता है। अमावस्या पितरों को समर्पित होती है। इसलिए पितृदोष से छुटकारा पाने के लिए अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। इस तिथि पर स्नान, श्राद्ध और दान करना विशेष फलदायी होता है। पुराणों में कहा गया है कि वैशाख अमावस्या पर किए गए श्राद्ध से पितृ संतुष्ट होते हैं।
चावल से बने सत्तू का दान
इस दिन पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध में चावल से बने पिंड का दान किया जाता है और चावल के ही आटे से बने सत्तू का दान किया जाता है। इससे पितृ खुश होते हैं। चावल को हविष्य अन्न कहा गया है यानी देवताओं का भोजन। चावल का उपयोग हर यज्ञ में किया जाता है। चावल पितरों को भी प्रिय है। चावल के बिना श्राद्ध और तर्पण नहीं किया जा सकता। इसलिए इस दिन चावल का विशेष इस्तेमाल करने से पितर संतुष्ट होते हैं।
सतुआई अमावस्या पर दान
- सतुवाई अमावस्या पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करने की परंपरा है। महामारी के चलते ऐसा नहीं हो सकता इसलिए घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाने से इसका पुण्य मिल सकता है।
- इसके बाद उगते हुए सूरज को जल चढ़ाएं। फिर श्रद्धानुसार दान का संकल्प लेना चाहिए।
- फिर एक लोटे में पानी, कच्चा दूध और तिल मिलाकर पीपल के पेड़ पर चढ़ाना चाहिए। इसके बाद पीपल के पेड़ के पास दीपक लगाएं।
- इसके बाद चावल के आटे से सत्तू बनाएं और जरूरतमंद लोगों को इसका दान करें।
- दोपहर में चावल के आटे से पिंड बनाएं और पितरों का श्राद्ध करें।
- किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद लोगों को अन्न और जल का दान करें।