हार्वर्ड के पूर्व प्रोफेसर का दावा:भारत में वायरस के नए वैरिएंट को ट्रैक करना सबसे बड़ी चुनौती, अच्छी बात ये कि स्वदेशी वैक्सीन हर स्ट्रेन में कारगर

Posted By: Himmat Jaithwar
5/7/2021

भारत की बड़ी आबादी के बीच वैज्ञानिकों के लिए वायरस के नए वैरिएंट को ट्रैक करना सबसे बड़ी चुनौती है, लेकिन अच्छी बात ये है कि स्वदेशी कोवैक्सिन अभी तक के सारे वैरिएंट में कारगर सिद्ध हुई है। यह कहना है हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के पूर्व प्रोफेसर और अमेरिकी वैज्ञानिक विलियम हैसलटिन का।

नए वैरिएंट को लेकर जताई चिंता
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हैसलटिन ने बताया कि भारत में पिछले 14 दिनों से लगातार 3 लाख से ऊपर संक्रमित मिल रहे हैं। देश में अब तक 2 करोड़ से ज्यादा लोग इस महामारी का शिकार हो गए हैं। ऐसे में रोज बढ़ते केस और आबादी के लिहाज से आने वाले समय में भारत के वैज्ञानिकों के लिए नए म्यूटेशन की पहचान करना चिंता का विषय हो सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि B.1.617 नाम से जाने जाने वाले भारतीय वैरिएंट की शायद दूसरी या तीसरी पीढ़ी भी फैल रही है और उनमें से कुछ बहुत ही ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं। ये अच्छी बात है कि भारत में आवश्यक जीनोम सिक्वेंसिंग क्षमता है, लेकिन इसके लिए एक बड़े पैमाने पर निगरानी कार्यक्रम की आवश्यकता है। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा नए वैरिएंट पर नजर रखना होगा।

नए वैरिएंट से वैक्सीनेशन प्रक्रिया प्रभावित
हैसलटिन ने बताया कि कोरोना वायरस के कई वैरिएंट पहले से ही दुनिया के कई हिस्सों में वैक्सीनेशन प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं, क्योंकि ज्यादा पैमाने पर संक्रमण से इसे तेजी से फैलने का मौका मिल रहा है। अमीर देशों ने जल्दी से वैक्सीनेशन करके अपने यहां महामारी को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया है, लेकिन विकासशील देशों में यह तेजी से फैल रही है और खत्म होने का नाम नहीं ले रही है।

भारत में पिछले 14 दिनों से लगातार 3 लाख से ऊपर संक्रमित मिल रहे हैं। देश में अब तक 2 करोड़ से ज्यादा लोग इस महामारी का शिकार हो गए हैं।
भारत में पिछले 14 दिनों से लगातार 3 लाख से ऊपर संक्रमित मिल रहे हैं। देश में अब तक 2 करोड़ से ज्यादा लोग इस महामारी का शिकार हो गए हैं।

डबल म्यूटेंट वैरिएंट पर कारगर हैं वैक्सीन
जानकार भारतीय स्ट्रेन को डबल म्यूटेंट बता रहे हैं, क्योंकि इसमें वायरस के जीनोम में दो बदलाव हुए हैं, जिसे E484Q और L452R नाम कहा जाता है। दोनों वायरस की स्पाइक प्रोटीन पर असर डालते हैं, जिसके सहारे वह इंसान के शरीर में दाखिल होता है।

कुछ रिसर्चर्स का अनुमान है कि भारतीय वैरिएंट यूके के B.1.1.7 वैरिएंट की तरह ही शुरुआती वायरस से 70% ज्यादा संक्रामक है। हालांकि स्टडी में भारतीय वैरिएंट को ज्यादा खतरनाक नहीं बताया जा रहा है।

भारत में दी जा रही कोवैक्सिन और कोवीशील्ड इस स्ट्रेन के खिलाफ भी कारगर हैं। स्पुतनिक V के भी इस पर प्रभावी होने की उम्मीद है। फाइजर के भारतीय सहयोगी भी अपनी वैक्सीन को लेकर ऐसी ही उम्मीद कर रहे हैं।



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