मोदी सरकार के ‘आत्मनिर्भर’ भारत में नियम बदलकर ली जा रही विदेशी मदद, 16 साल पहले मनमोहन सिंह ने ठुकरा दी थी

Posted By: Himmat Jaithwar
5/7/2021

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले साल 'आत्मनिर्भर भारत' का नारा बुलंद किया। कहा कि उनकी सरकार अन्य देशों पर निर्भरता खत्म कर रही है। जल्द से जल्द हर वह सामान भारत में बनेगा, जो अभी बाहर से मंगवाया जा रहा है। इसके लिए पॉलिसी में भी कई बदलाव किए गए। पर कोरोना वायरस की दूसरी लहर की वजह से मोदी सरकार ने न सिर्फ मनमोहन सिंह सरकार के 16 साल पुराने नियम को बदला, बल्कि चीन समेत 40 से ज्यादा देशों से गिफ्ट, डोनेशन भी कबूल किए हैं।

आइए, समझते हैं कि विदेशी सहायता को लेकर भारत की नीति क्या रही है और मनमोहन सिंह सरकार के बनाए किस नियम को मोदी सरकार ने बदला है?

क्या थी मनमोहन सिंह की आत्मनिर्भर भारत पॉलिसी?

  • प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार 2004 से 2014 तक केंद्र में रही। दिसंबर 2004 में जब दक्षिण भारतीय तटीय इलाकों में सुनामी ने तबाही मचाई, तब मनमोहन सिंह ने विदेशी मदद की पेशकश यह कहते हुए ठुकरा दी थी कि हम अपने स्तर पर हालात से निपट सकते हैं। जरूरत पड़ेगी तो ही विदेशी सहायता लेंगे। खैर, उसके बाद कभी जरूरत पड़ी नहीं।
  • मनमोहन सिंह ने जो कहा, उस पर कायम भी रहे। 2005 के कश्मीर भूकंप, 2013 की उत्तराखंड की बाढ़ और 2014 की कश्मीर बाढ़ की राष्ट्रीय आपदाओं के समय भी मनमोहन सिंह ने न तो किसी और देश से राहत मांगी और न ही उनकी पेशकश को स्वीकार किया। और तो और, अगर कोई देश मदद की पेशकश करता तो उसे सम्मान के साथ मना कर दिया जाता।
  • पर ऐसा नहीं है कि भारत सरकार की हमेशा से पॉलिसी ऐसी ही रही है। इससे पहले उत्तरकाशी भूकंप (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल तूफान (2002) और बिहार की बाढ़ (2004) में भारत ने विदेश से राहत कार्यों में मदद ली थी।
  • आपको 2018 की केरल बाढ़ याद होगी। तब राज्य सरकार ने कहा था कि 700 करोड़ रुपए की सहायता की पेशकश UAE ने की है। पर केंद्र की मोदी सरकार ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है। राज्य में जो भी राहत एवं पुनर्वास के काम होंगे, उसके लिए घरेलू स्तर पर ही पैसा जुटाया जाएगा। इस पर केंद्र व राज्य सरकारों में विवाद की स्थिति भी बनी थी।

तो अभी क्या बदला है?

मनमोहन सिंह का दिसंबर 2004 में दिया बयान पॉलिसी बना और उसके बाद कभी भी राष्ट्रीय आपदा के समय विदेशी सहायता नहीं ली गई। कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में जरूर मोदी सरकार की विदेश पॉलिसी में तीन बड़े बदलाव हुए हैं।

1. चीन से ऑक्सीजन संंबंधी सामान और जीवनरक्षक दवाएं खरीदने में कोई वैचारिक समस्या नहीं है। पाकिस्तान से मदद ली जाए या नहीं, इस पर सरकार विचार कर रही है। कोई फैसला नहीं हुआ है। संभावना कम ही है कि मदद स्वीकार की जाएगी।
2. राज्य सरकार विदेशों से टेस्टिंग किट से लेकर दवाएं तक खरीद सकेंगी। साथ ही किसी भी तरह की मदद प्राप्त कर सकेंगी। इसमें केंद्र सरकार या उसकी कोई पॉलिसी आड़े नहीं आएगी। यह पॉलिसी लेवल पर एक बड़ा बदलाव है।
3. भारत सरकार ने विदेशों से गिफ्ट, डोनेशन और अन्य सहायता स्वीकार करना शुरू कर दिया है। यह एक बड़ा बदलाव है क्योंकि 2004 के बाद यह पहली बार हो रहा है।

चीन को लेकर पॉलिसी में क्या बदलाव किया है?

  • पिछले साल सीमा पर संघर्ष के बीच भारत ने चीन के साथ कई डील्स रद्द कर दी थीं। कई ऐप्स को भी प्रतिबंधित किया था। इसके बाद उससे माल खरीदने पर भी कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं। अब नई पॉलिसी के तहत ऑक्सीजन से जुड़े उपकरण खरीदने को केंद्र ने मंजूरी दे दी है।
  • भारत में चीनी राजदूत सुन विडोंग ने सोशल मीडिया पर इस बात की पुष्टि की और कहा कि चीनी मेडिकल सप्लायर्स भारत से मिले ऑर्डर को पूरा करने के लिए ओवरटाइम कर रहे हैं। कम से कम 25 हजार ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के ऑर्डर उन्हें मिले हैं। कार्गो प्लेन मेडिकल सप्लाई लेकर उड़ने वाले हैं। चीनी कस्टम भी इसके लिए सभी आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराएगा।

25 अप्रैल को पहली मदद आई थी, पर अब तक राज्यों में पहुंची क्यों नहीं?

  • सरकार ने तय तो किया था कि विदेशों से आई सहायता को जल्द से जल्द राज्यों में पहुंचाएंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। कई राज्यों का कहना है कि केंद्र से क्या मिल रहा है, उन्हें अब तक बताया ही नहीं गया है। इस पर केंद्र सरकार ने मंगलवार को सफाई दी कि 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पहले ही सामान भेजा जा चुका है।
  • हालांकि राज्यों के अधिकारियों के मुताबिक वितरण प्रक्रिया पर फैसला 3 मई की शाम को हुआ। शाम को नीति आयोग की बैठक हुई। इसमें ही विदेशी सहायता राज्यों को पहुंचाने पर चर्चा हुई। तब जाकर राज्यों के अधिकारियों को केंद्र से ई-मेल मिले कि उन्हें क्या मिलने वाला है। 25 अप्रैल को पहली खेप आने के बाद भी राज्यों को एक हफ्ते तक उसका लाभ नहीं मिल सका।
  • दिल्ली एयरपोर्ट के प्रवक्ता के अनुसार 28 अप्रैल से 2 मई के बीच 300 टन राहत सामग्री पहुंची। पर वह सही जगह नहीं पहुंच सकी। अब केंद्र सरकार के अधिकारी सफाई दे रहे हैं कि उन्होंने सही समय पर एक्शन लिया और सभी राज्यों को राहत सामग्री पहुंचाने का काम किया।

अब तक कितने देशों ने सहायता की पेशकश की है?

  • 40 देशों ने। इसमें पड़ोसियों से लेकर दुनिया की बड़ी महाशक्तियां तक शामिल हैं। भूटान ऑक्सीजन सप्लाई कर रहा है, वहीं अमेरिका जल्द ही एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन भेजने वाला है। यह वही वैक्सीन है जिसे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कोवीशील्ड नाम से बना रहा है।
  • अमेरिका, भूटान के अलावा यूके, फ्रांस, जर्मनी, रूस, आयरलैंड, बेल्जियम, रोमानिया, लक्जमबर्ग, पुर्तगाल, स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, सऊदी अरब, हांगकांग, न्यूजीलैंड, मॉरीशस, थाईलैंड, फिनलैंड, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, इटली और UAE ने राहत सामग्री भेज दी है या भेजने वाले हैं। इसके अलावा भी कई देश राहत सामग्री भेजने वाले हैं।

पॉलिसी में इस बदलाव पर सरकार का क्या कहना है?

  • सरकार इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर रही है। अधिकारियों का कहना है कि भारत ने किसी से मदद की अपील नहीं की है और यह खरीद से जुड़े निर्णय हैं। अगर कोई सरकार या निजी संस्था गिफ्ट के तौर पर डोनेशन दे रही है तो हमें उसे कृतज्ञता के साथ स्वीकार करना चाहिए।
  • विदेश सचिव हर्ष वर्धन शृंगला का कहना है कि इसे पॉलिसी चेंज नहीं कहा जाना चाहिए। हमने उन्हें मदद की। अब हमें मदद मिल रही है। यह बताता है कि दुनिया के सभी देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं। यह एक ऐसी दुनिया को दिखाता है जहां देश एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी इसे मित्र देशों की मित्रता करार दिया है।

विदेशी सामग्री का इस्तेमाल कौन और कब करेगा?

  • सरकार ने इसके लिए पॉलिसी तय कर ली है। भारत सरकार ने सभी विदेशी सरकारों और एजेंसियों से भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी को डोनेशन देने को कहा है। इसके बाद एम्पॉवर्ड ग्रुप तय करेगा कि इस मदद का इस्तेमाल किस तरह, कहां और कब किया जाएगा।
  • विदेश सचिव शृंगला के मुताबिक भारत ने कई देशों को जरूरत में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, पैरासिटामॉल और यहां तक कि रेमडेसिविर और वैक्सीन भी सप्लाई की है। अब वह देश ही भारत की मदद कर रहे हैं। भारत ने अब तक 80 देशों को 6.5 करोड़ वैक्सीन भेजी हैं।



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