सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को आरक्षण असंवैधानिक करार दिया है। यह आरक्षण आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था। कोर्ट ने कहा है कि 50% आरक्षण सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है। मराठा आरक्षण 50% सीमा का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने साफ कहा कि मराठा समुदाय के लोगों को रिजर्वेशन देने के लिए उन्हें शैक्षिण और सामाजिक तौर पर पिछड़े नहीं कहा जा सकता। साथ ही कहा कि मराठा रिजर्वेशन लागू करते वक्त 50% की लिमिट को तोड़ने का कोई संवैधानिक आधार नहीं था।
कोर्ट ने कहा कि इंदिरा साहनी मामले में फैसले पर दोबारा विचार करने की जरूरत नहीं है। महाराष्ट्र में कोई आपात स्थिति नहीं थी कि मराठा आरक्षण जरूरी हो। साथ ही कहा कि अब तक मराठा आरक्षण से मिली नौकरियां और एडमिशन बरकरार रहेंगे, लेकिन आगे आरक्षण नहीं मिलेगा।
क्या है पूरा मामला
2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 16% आरक्षण दिया था। इसके पीछे जस्टिस एनजी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को आधार बनाया गया था। OBC जातियों को दिए गए 27% आरक्षण से अलग दिए गए मराठा आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लंघन हुआ, जिसमें आरक्षण की सीमा अधिकतम 50% ही रखने को कहा गया था।
हाईकोर्ट ने बनाए रखा मराठा आरक्षण
बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आरक्षण को 2 मुख्य आधारों पर चुनौती दी गई। पहला- इसके पीछे कोई उचित आधार नहीं है। इसे सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए दिया गया है। दूसरा- यह कुल आरक्षण 50% तक रखने के लिए 1992 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार फैसले का उल्लंघन करता है।
जून 2019 में हाईकोर्ट ने इस आरक्षण के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट ने माना कि असाधारण स्थितियों में किसी वर्ग को आरक्षण दिया जा सकता है। हालांकि, आरक्षण को घटा कर नौकरी में 13% और उच्च शिक्षा में 12% कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान इन बातों पर गौर किया गया
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आरक्षण विरोधी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर अंतरिम रोक लगा दी। संविधान पीठ के फैसले से तय होगा कि यह रोक हटेगी या नहीं। सुनवाई में 5 जजों की बेंच ने इन बातों पर गौर किया-
- क्या महाराष्ट्र में वाकई ऐसी कोई असाधारण स्थिति थी कि आरक्षण की तय सीमा से परे जाकर मराठा वर्ग को अलग से आरक्षण दिया जाए?
- क्या संविधान का 102वां संशोधन और अनुच्छेद 324A राज्य विधानसभा के अधिकार का हनन करते हैं? क्या यह संशोधन और अनुच्छेद वैध हैं?
- क्या 1992 में आए इंदिरा साहनी फैसले पर दोबारा विचार की जरूरत है? कुल आरक्षण की सीमा 50% रखने वाले 9 जजों की बेंच के फैसले को दोबारा विचार के लिए बड़ी बेंच में भेजना चाहिए?
फिलहाल महाराष्ट्र में करीब 75% आरक्षण
अलग-अलग समुदायों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिए गए आरक्षण को मिलाकर महाराष्ट्र में करीब 75% आरक्षण हो गया है। 2001 के राज्य आरक्षण अधिनियम के बाद महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52% था। 12-13% मराठा कोटा के साथ राज्य में कुल आरक्षण 64-65% हो गया था। केंद्र की ओर से 2019 में घोषित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% कोटा भी राज्य में प्रभावी है।