केरल में 50 साल बाद एक नया इतिहास बना है। इस इतिहास को उसी वामपंथी पार्टी ने लिखा है, जिसने 1957 में राज्य में पहली कम्युनिस्ट सरकार बनाई थी। ऐसा दुनिया में पहली बार हुआ था। अब वही कम्युनिस्ट पार्टी केरल में 50 साल बाद लगातार दूसरी बार सरकार बनाने जा रही है। इससे पहले ऐसा राज्य में 1970 में कम्युनिस्ट पार्टी ने ही किया था। इसके बाद से हर पांच साल में राज्य में यूडीएफ और एलडीएफ के बीच ही सत्ता बदलती रही थी।
इस नए इतिहास को लिखा है, राज्य के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने। विजयन को केरल में लोग राज्य का मोदी कहते हैं, बोलते हैं कि बस दोनों में लुंगी का फर्क है। ऐसा इसलिए भी कहते हैं कि क्योंकि विजयन हमेशा चौंकाते हैं। इस बार भी उन्होंने चौंकाया है। जिस तरह 2019 में मोदी के दम पर भाजपा केंद्र में रिकॉर्ड सीटों के साथ दूसरी बार लौटी थी, उसी तरह अब 2021 में विजयन के चेहरे पर ही एलडीएफ लगातार दूसरी बार सत्ता में आई है। और सीटों की सेंचुरी बनाने के करीब है।
खैर ये तो बात हुई विजयन कद की। लेकिन अब जानते हैं कि ऐसा हुआ कैसे? विजयन सत्ता में दोबारा वापस कैसे हुए? इसकी पटकथा खुद विजयन ने ही लिखी है। बात पहले चुनावी स्ट्रैटजी की करते हैं। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले विजयन सीपीएम के अंदर टू टर्म नॉर्म लेकर आए, मतलब लगातार दो चुनाव जीत चुके लोगों को तीसरी बार टिकट नहीं मिलेगा। शुरू में पार्टी में बहुत हो हल्ला हुआ। कई जगहों पर तो पार्टी कार्यकर्ताओं ने विजयन के खिलाफ प्रदर्शन किया। लेकिन विजयन खामोश रहे।
बारी टिकट देने की आई तो विजयन ने पार्टी के 33 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए थे। इसमें पांच तो मंत्री थे। ये सभी सीपीएम के टॉप नेता थे, जो विजयन से सवाल पूछने की हैसियत रखते थे। इस बारे में जब विजयन से सवाल पूछे गए तो, बोले- अगली बार यानी पांच साल बाद मैं भी इस नियम के अंदर आऊंगा।
कोझिकोड के वरिष्ठ पत्रकार आमिया कहते हैं कि टू टर्म नॉर्म के फैसले से सीपीएम को बहुत फायदा हुआ है। विजयन की रणनीति काम कर गई। इसकी वजह से सीपीएम एंटी इनकंबेंसी से भी बच गई, क्योंकि जिन विधायकों से लोग नाराज थे, उन्हें पार्टी ने टिकट ही नहीं दिया।
केरल में क्यों बदला 50 साल का इतिहास? विजयन को रिकॉर्ड जीत क्याें मिली? इसके पीछे की 5 बड़ी वजह समझते हैं-
1. विजयन की लोकप्रियता
सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी(सीपीपीआर) के चेयरमैन डॉक्टर धनुराज बताते हैं कि केरल में अब विजयन का फीगर मोदी जैसा हो गया है। हमारी संस्था ने एक सर्वे कराया है, उसमें बाकी नेताओं की तुलना में विजयन की लोकप्रियता 45% ज्यादा है। लोग उन्हें निर्णय लेने वाला, योग्य और क्षमतावान लीडर और प्रशासक मानते हैं। वरिष्ठ पत्रकार एस अनिल बताते हैं कि विजयन की लोकप्रियता के आगे बाकी राहुल और मोदी भी फीके पड़ गए, इसकी वजह विजयन का गरीब लोगों और पार्टी कैडर के लिए काम ही है।
धनुराज कहते हैं कि दूसरी बड़ी वजह है, विजयन का फेस। राज्य में विजयन से ज्यादा लोकप्रिय कोई नेता नहीं है। यही वजह है कि विजयन के चेहरे पर ही इस बार लोगों ने एलडीएफ को वोट किया।
2. राहुल की स्ट्रैटजी का फेल होना
धनुराज बताते हैं कि केरल जीतने के लिए राहुल गांधी ने पूरी ताकत लगा दी, सभी चुनावी राज्यों में सबसे ज्यादा रैली और रोड शो राहुल ने केरल में ही किए। राहुल की जबरदस्त लोकप्रियता और स्ट्रैटजी के बावजूद यूडीएफ को खास फायदा नहीं हुआ। वजह, उसे जमीन पर कांग्रेस कार्यकर्ता नहीं पहुंचा पाए।
अनिल बताते हैं कि भाजपा ने राज्य में ध्रुवीकरण की भरसक कोशिश की, लेकिन ये भी बेकार साबित हुई है। पार्टी ने राज्य में सबरीमाला और लव जिहाद के मसले को बहुत जोर-शोर से उठाया। विकास के नाम पर मेट्रो मैन ई श्रीधरन को लेकर भी आए। लेकिन पार्टी को दो अंकों में नहीं पहुंच पाई है। क्योंकि इनके पास कोई पब्लिक फेस नहीं है।
3. क्राइसिस मैनेजर की इमेज
वरिष्ठ पत्रकार अमिया कहते हैं कि विजयन क्राइसिस मैनेजर हैं। उन्होंने बैक टू बैक आई दो सालों में बाढ़ के बाद भी राज्य को संभाले रखा। लोगों की मदद की। उसके बाद कोविड आया तो भी राज्य के हालात बेकाबू नहीं होने दिया। विजयन की यही इमेज इस चुनाव में काम कर गई।
4. फ्री किट रही मास्टरस्ट्रोक
आमिया कहते हैं कि विजयन ने हर घर को फ्री राशन किट दी। माइग्रेंट मजदूरों के लिए कम्युनिटी किचन की व्यवस्था की। गल्फ से लौटे लोगों को पैसे दिए। संकट के वक्त भी बुजुर्गों को वेलफेयर पेंशन टाइम पर मिली। हर हाउसहोल्ड को फ्री राशन की किट विजयन का मास्टरस्ट्रोक रहा है। यही नहीं, कोविड की वैक्सीन भी हर किसी को राज्य में फ्री लग रही है।
धनुराज भी कहते हैं कि विजयन ने बाढ़ और कोविड के वक्त राज्य में बेहतर क्राइसिस मैनेजमेंट किया। लोगों को फ्री में राशन किट, मेडिसिन किट और पेंशन देने का काम किया है। इसलिए वह जीते हैं। अब सीपीएम और केरल में विजयन ही सुप्रीम लीडर हैं।
5. कांग्रेस का कमजोर संगठन
धनुराज बताते हैं कि आम चुनाव में लोगों ने राहुल गांधी के चेहरे पर वोट किया था। इसलिए कांग्रेस को राज्य की 20 में 19 सीटों पर जीत मिली, लेकिन विधानसभा चुनाव में यह नहीं हो सका, क्योंकि पहले तो कांग्रेस का संगठन राज्य में बहुत कमजोर हो चला है। कांग्रेस के प्रमुख नेता रमेश चेन्नीथाला की लोकप्रियता 10 फीसदी से भी कम है।