कोरोना के रिकॉर्ड मामलों के बीच हुए असम विधानसभा चुनाव के बाद रविवार को चुनाव नतीजे आने शुरू हो गए हैं। शुरुआती रुझानों में असम में भाजपा गठबंधन को बहुमत मिलता नजर आ रहा है। वह 84 सीटों पर आगे है। वहीं, कांग्रेस गठबंधन 40 सीटों पर आगे चल रहा है। 2 सीटों पर अन्य बढ़त बनाए हुए हैं। अगर यह रुझान नतीजों में तब्दील होते हैं, तो राज्य में भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में वापसी कर लेगी।
उधर, केरल में सत्ताधारी लेफ्ट को आसानी से बहुमत मिलता दिख रहा है। शुरुआती रुझानों में LDF को 92, UDF को 45 और भाजपा को 3 सीटें मिलते दिख रही हैं। पलक्कड़ से मेट्रोमैन और भाजपा उम्मीदवार ई श्रीधरन बढ़त बनाए हुए हैं। केरल में 140 सीटों पर करीब 74% मतदान हुआ था। 2016 के विधानसभा चुनाव में 77.53% हुआ था। इसके साथ ही अब हर किसी की नजर नतीजों पर है। बहरहाल, थोड़ी देर में समीकरण साफ हो जाएगा।
असम में NRC सबसे बड़ा मुद्दा
असम की राजनीति में पिछले कुछ साल से NRC सबसे बड़ा मुद्दा है। NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस। इस मुद्दे पर असम में बड़े पैमाने पर हिंसक आंदोलन हो चुके हैं और कई लोग खुदकुशी भी कर चुके हैं। 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में भी NRC ही सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। बांग्लादेशी घुसपैठियों के मसले ने प्रदेश में BJP का आधार मजबूत किया है।
BJP कहती रही है कि असम के नतीजे आते ही बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकाला जाएगा। 2016 में पार्टी ने पहली बार राज्य में सरकार भी बना ली। इसके बावजूद NRC पर बात आगे नहीं बढ़ी। ऐसे में यह मुद्दा इस बार भाजपा की चुनावी रणनीति पर आखिरी मुहर लगाएगा। यह चुनाव मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के लिए भी परीक्षा है। अगर वे दूसरी बार पार्टी को जीत दिला देते हैं तो पार्टी के अंदर से मिल रही चुनौतियों पर भी पार पा लेंगे।
NRC पर BJP का कन्फ्यूजन
मुख्यमंत्री बनने के बाद सर्बानंद सोनोवाल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि NRC का मकसद असम को विदेशियों से मुक्त करना है। इसमें किसी भी भारतीय को संदेह करने की जरूरत नहीं है। वहीं, इस साल 23 जनवरी को शिवसागर में एक सरकारी कार्यक्रम में पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने NRC का जिक्र तक नहीं किया। इसी के अगले दिन गृहमंत्री अमित शाह ने नलबाड़ी में एक रैली की लेकिन उनके भाषण में भी यह मुद्दा गायब रहा।
इससे साफ जाहिर हुआ कि फिलहाल BJP इस मुद्दे को नहीं छेड़ना चाहती। हालांकि, उसके चुनाव प्रचार में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा शामिल रहा। अमित शाह बार-बार दोहराते रहे कि अगर कांग्रेस गठबंधन सत्ता में आता है तो असम में घुसपैठ की घटनाएं बढ़ जाएंगी।
पार्टी बोली- NRC का चुनाव से लेना-देना नहीं
असम के भाजपा उपाध्यक्ष विजय कुमार कहते हैं कि NRC से चुनाव का कोई लेना-देना नहीं है। घुसपैठियों की शिनाख्त के लिए इसका काम हुआ था। इसमें बहुत गलतियां रह गई हैं। कई भारतीयों के नाम लिस्ट में नहीं आए और काफी संख्या में अवैध बांग्लादेशी शामिल हो गए।
उनका कहना है कि कोरोना के कारण सरकारी कामकाज ठप पड़ गए थे। हमारी प्राथमिकता लोगों को इस महामारी से बचाना है। देशभर में टीकाकरण का काम शुरू हुआ है और जैसे ही स्थिति सामान्य होगी फिर से NRC को लेकर पक्ष रखेंगे। हमारी पार्टी NRC चाहती है।
राज्य में BJP का टारगेट- 100+
असम में भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 126 विधानसभा सीटों में से 100 प्लस का टारगेट रखा था। उसकी सहयोगी रही बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट यानी BPF ने वोटिंग से पहले गठबंधन से अलग होने का ऐलान कर दिया। असम की कुल साढ़े तीन करोड़ आबादी में 34% मुसलमान हैं। 33 सीटों पर इनकी भूमिका निर्णायक होती है।
क्या है नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) असम में रहने भारतीय नागरिकों की पहचान के लिए बनाई गई लिस्ट है। इसका मकसद राज्य में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों खासकर बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करना है। इसकी पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही थी। इसकी आखिरी सूची 31 अगस्त 2019 को जारी की गई थी। इसमें राज्य के 3.29 करोड़ लोगों में से 3.11 करोड़ लोगों को भारत का वैध नागरिक करार दिया गया है। करीब 19 लाख लोग इससे बाहर रखे गए थे।
केरल : कुल 140 सीटों पर चुनाव हुए, 71 पर बहुमत
पिछली बार कौन जीता: LDF
दिलचस्प यह है कि बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट मिलकर चुनाव लड़ते हैं, जबकि केरल में वे एक-दूसरे के विरोध में रहते हैं। पिछली बार यहां लेफ्ट की अगुआई वाला LDF जीता था। कांग्रेस इसका हिस्सा नहीं है। कांग्रेस की अगुआई वाला UDF यहां विपक्षी गठबंधन है। भाजपा ने इस बार 140 में से 113 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। उधर, भाजपा ने पिछली बार केरल में 1 सीट जीती थी।
केरल का मतदाता काफी अवेयर
केरल का मतदाता काफी पढ़ा-लिखा है, इसलिए यह देश का सबसे ज्यादा पॉलिटिकली अवेयर स्टेट है। यहां के वोटर्स सिर्फ लोकल मुद्दों पर ही नहीं, देश और दुनिया के मुद्दों पर भी नजर रखते हैं। यहां की महिलाएं घर के पुरुषों के कहने पर वोट नहीं डालती हैं। बल्कि वे अपने विवेक से सोच-समझकर प्रत्याशी चुनती हैं। यही नहीं, यहां की महिलाएं हमेशा करीब 80% सीटों पर पुरुषों से वोटिंग करने में भी आगे रहती हैं।