नई दिल्ली: कोरोना मामले को लेकर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दोटूक लहजे में सवाल किया है कि रेमेडेसिविर जैसी दवाओं को कब उपलब्ध कराया जाएगा. कोर्ट ने यह भी पूछा है कि राज्यों और केंद्र के बीच वैक्सीन की अलग-अलग कीमत के पीछे क्या तर्क है और कोरोना को काबू करने के लिए केंद्र किन प्रतिबंधों, लॉकडाउन पर विचार कर रहा है?. SC ने शुक्रवार को कहा कि हमने देश के विभिन्न मामलों के विभिन्न मुद्दों की पहचान की है और हमारी सुनवाई का उद्देश्य राष्ट्रीय हित के मुद्दों की पहचान करना और संवाद की समीक्षा करना है.SC ने यह भी पूछा कि रेमेडेसिविर के आवंटन के पीछे क्या प्रणाली है और बेड पर केंद्र और राज्यों के बीज जिम्मेदारी किस तरह बांटी गई है ?
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केंद्र पर सवालों की बौछार करते हुए शीर्ष कोर्ट ने पूछा कि मरीजों के अस्पताल में भर्ती करने की क्या प्रक्रिया है. अहमदाबाद में सिर्फ 108 एंबुलेंस में आने वाले मरीजों को भर्ती किया जाता है, इसके अलावाअस्थायी कोविड सेंटर बनाने की क्या तैयारी है, जो लोग इंटरनेट नहीं जानते या पढ़े लिखे नहीं है, उनके लिए वैक्सीन की क्या व्यवस्था है, श्मशान में काम करने वाले कर्मियों का टीकाकरण की क्या योजना है, जरूरी दवाओं के लिए पेटेंट की व्यववस्था होगी और यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि वैक्सीन को लेकर एक राज्य को दूसरे पर प्राथमिकता नहीं मिलेगी? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि जरूरी दवाओं का उत्पादन और वितरण सुनिश्चित क्यों नहीं हो पा रहा? केंद्र ने हलफनामे में कहा है कि हर महीने औसतन एक करोड़ तीन लाख रिमेडिसिविर उत्पादन करने की क्षमता है, लेकिन सरकार ने मांग और सप्लाई की जानकारी नहीं दी है. केंद्र ने आवंटन का तरीका भी नहीं बताया है. केंद्र को डॉक्टरों से ये कहना चाहिए की रेमडिसिविर या फेविफलू की बजाय अन्य उपयुक्त दवाएं भी मरीजों को बताएं. मीडिया रिपोर्ट बता रही हैं कि आरटीपीसीआर से कोविड के नए रूप की पड़ताल नहीं हो पा रही है. इसमें भी अनुसंधान की जरूरत है, जिला स्तर पर कोविड की नई लहर और स्वरूप की पहचान और इलाज के तरीके ढूंढने की जरूरत है.
जस्टिस भट ने सवाल उठाया, वैक्सीन निर्माता 300 या 400 का शुल्क वसूल रहे हैं.एक राष्ट्र के रूप में हमें इसका भुगतान क्यों करना चाहिए, कीमत का अंतर 30 से 40,000 करोड़ रुपये हो जाता है. जब हमने इसके लिए भुगतान किया है.मूल्य अंतर का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने कहा कि हम निर्देश नहीं दे रहे हैं लेकिन आपको इस पर गौर करना चाहिए. सुनवाई के दौरान SC ने कहा कि हमारे चिकित्साकर्मी ब्रेकिंग प्वाइंट पर हैं.उनको भी देखभाल की जरूरत है. ये समय उनका आभार मानने का है.उनको ज्यादा भुगतान होना चाहिए. एम्स में कहा जा रहा है कि कोविड पॉजिटिव डॉक्टर 11 दिन बाद ड्यूटी पर लौट आएं,ऐसा नहीं होना चाहिए.जस्टिस भट ने कहा कि एस्ट्राजेनेका अमेरिकी नागरिकों को कम कीमत पर टीके उपलब्ध करा रही है फिर हम इतना भुगतान क्यों करें. हमें ये भी पता होना चाहिए कि उपलब्ध बेड्स में से कितने आईसीयू बेड हैं? SC ने टीकाकरण का मुद्दा उठाते हुए कहा कि हमको राष्ट्रीय टीकाकरण मॉडल का पालन करना चाहिए जिसका हमने आजादी के बाद से पालन किया था. ये मुद्दा असाधारण रूप से गंभीर है. 50% से ऊपर फ्रंट लाइन और +45 का टीका मुफ्त लगा, बाकी 50% का उपयोग 18 प्लस के लिए किया जाना है.18-45 समूह के 59 करोड़ भारतीय एक बड़ा तबका गरीब और हाशिए पर है जहां उनसे टीका लगने के लिए पैसा लिया जाना है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाना होगा. दो यूनिट काम कर रही हैं, अतिरिक्त यूनिट तलाशनी होंगी. इन विचारों का मकसद सरकार की आलोचना करना नहीं है. एक देश के तौर पर समाधान तलाशना है.-कानूनी कार्रवाई के डर के बिना जरूरी दवाओं के निर्माण के लिए जेनेरिक को सक्षम करने के लिए क्यों ना आदेश जारी किया जाए ?जस्टिस चंद्रचूड
ने कहा कि दिल्ली में ऑक्सीजन के हालात खराब हैं. गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी ये ही हालात हैं. उन्होंने कहाकि हमने नागरिकों को ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए रोते हुए भी सुना है.दिल्ली में हकीकत में ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है. आपको भविष्य में हमें यह बताना होगा कि आज और सुनवाई के अगले दिन से क्या बेहतर हुआ.
केंद्र सरकार की ओर से बताया गया कि दिल्ली सरकार टैंकरों की अपर्याप्त संख्या के कारण दिल्ली को आवंटित ऑक्सीजन कोटा को उठाने में असमर्थ है. दिल्ली अधिक टैंकर प्राप्त करने की प्रक्रिया में है और स्थिति जल्द ही आसान हो जाएगी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी पूछा कि केन्द्र हमें बताएं कि महत्वपूर्ण राज्यों को कितनी ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जाएगी. इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऑक्सीजन की इतनी मांग की उम्मीद नहीं थी. हमने राज्यों को उनकी जरूरत बताने को.कहा है.