डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ, यही हैं हमारे आज के असली योद्धा, इन्हीं के बूते है जीत की तैयारी

Posted By: Himmat Jaithwar
4/7/2020

नई दिल्ली. कोरोना से हमारी और आपकी जंग तो घरों में रहने तक सीमित है। लेकिन उनके बारे में सोचिए, जो बिना थके वायरस के हर शिकार को ढूंढ़ने और ठीक करने का जिम्मा लिए डटे हुए हैं। ये डॉक्टर हैं, नर्स हैं, पैरामेडिकल स्टाफ है। घर-परिवार, खुद की फिक्र और तकलीफें भूलकर मरीजों की सेवा में लगे हैं। वर्ल्ड हेल्थ डे पर पढ़िए ऐसे ही योद्धाओं की 8 कहानियां...


समर्पण: मरीजों की देखभाल में जुटे डॉक्टर पिता घर आए, बाहर से ही बेटी को जन्मदिन की बधाई दी और लौट गए

जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल में कोरोना नोडल अधिकारी डाॅ. बीएस परिहार की बेटी हिरल का बीते बुधवार को 10वां जन्मदिन था। लेकिन वे उसके साथ जन्मदिन नहीं मना सकें। अब 5 दिन बाद जब वे घर आए, तो भी अंदर नहीं गए। उन्होंने घर के बाहर से ही बेटी हिरल को बर्थडे विश किया और ड्यूटी पर लौट गए।

बेटी को निहारता पिता। 

जिद: बुजुर्ग दंपती की सेवा में थीं, भरोसा था कि उनका आशीर्वाद विजेता बनाएगा

तिरुवनंतपुरम में देश की सबसे बुजुर्ग दंपती केरल के 93 साल के थॉमस और 88 साल की मरियम्मा के कोरोना को हराने की कहानी पूरी दुनिया ने देखी, सुनी और पढ़ी। लेकिन उनकी देखभाल के दौरान नर्स रेशमा मोहनदास को भी संक्रमण हो गया। रेशमा अब ठीक हो गईं हैं। 14 दिन बाद फिर से अपने काम पर लौटेंगी। रेशमा कोट्टयम मेडिकल कॉलेज में स्टाफ नर्स हैं। वे केरल में कोरोना से संक्रमित पहली स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं। रेशमा के मुताबिक 12 मार्च से 22 मार्च तक कोरोना आइसोलेशन वार्ड में ड्यूटी लगी हुई थी। यहीं थॉमस और मरियम्मा भी भर्ती हुए। 23 मार्च को ड्यूटी खत्म हुई, तो मामूली बुखार हुआ। जल्द ही कोविड-19 के लक्षण दिखने शुरू हुए, तो तुरंत आइसोलेशन वार्ड में भेजा गया। उनकी जब अस्पताल से छुट्टी हुई तो तालियों से हौसला बढ़ाने वाले साथी डॉक्टरों, नर्सों और कर्मचारियों से उन्होंने कहा- जल्द ड्यूटी पर लौटूंगी।

केरल की पहली संक्रमित स्वास्थ्यकर्मी रेश्मा ठीक होकर आज घर लौटी।

जज्बाः एम्स के वॉरियर्स; अस्पताल ही बना घर, 15 दिन से किसी ने नहीं देखा चेहरा 

रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 60 डाक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ की एक ऐसी टीम है, जिसका सीधा मुकाबला जानलेवा कोरोनावायरस से है। अब तक इनका चेहरा सामने नहीं लाया गया है, लेकिन ये टीम ऐसा संघर्ष कर रही है, जिसकी कल्पना से भी रोंगटे खड़े हो जाएं। कोरोना सैंपल की जांच से लेकर मरीज तक के इलाज में ये किसी योद्धा की तरह ही काम कर रहे हैं। अस्पताल में ही आइसोलेशन, वहीं रहना-खाना और हर 15 दिन में एक बार 14 दिन का वहीं क्वारेंटाइन। इनके परिजन कई दिन से इन्हें देख नहीं पा रहे हैं, फिर भी संघर्ष चल रहा है और कामयाबी भी मिल रही है। इनकी मेहनत की बदौलत यहां भर्ती हुए 9 में से 8 मरीज स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं। एकमात्र भर्ती मरीज भी खतरे से बाहर है। इन योद्धाओं में से 15 लोग क्वारेंटाइन में जा चुके हैं। 

एम्स में कोरोना से लड़ रहा मेडिकल स्टाफ।

त्यागः मां से बढ़कर जिम्मेदारी; वीडियो कॉल से देखी मां की अंत्येष्टि, बोले-माफी मांगता हूं

जयपुर के सवाई मानसिंह हॉस्पिटल में कोरोना वायरस के मरीजों के लिए बने आइसोलेशन वार्ड और आईसीयू के नर्सिंग इंचार्ज राममूर्ति मीणा कोरोना से जंग लड़ने वाले असली सिपाही हैं। 30 मार्च को उनकी मां का निधन हो गया था, लेकिन खुद पर कोरोना मरीजों की देखभाल की जिम्मेदारी के चलते वे अंतिम संस्कार में नहीं जा सके। परिवार के बाकी सदस्य मौजूद थे। मजबूरन, उन्होंने वीडियो कॉल के जरिए करौली के राणोली गांव में हुई मां का अंत्येष्टि देखी और वहीं से उन्हें अंतिम प्रणाम भी किया। राममूर्ति कहते हैं, ‘मेरी ड्यूटी यहां भर्ती मरीजों की जान बचाना है। इन्हें छोड़कर मैं नहीं जा सकता। मां से माफी ही मांग सकता हूं कि बेटा होने के नाते उन्हें मुखाग्नि नहीं दे सका।'  फिलहाल मीणा खुद 14 दिन के क्वारेंटाइन में हैं। उन्होंने कहा है कि क्वारेंटाइन से निकलने के बाद वे गांव जाएंगे। 

जयपुर के सवाई मानसिंह हॉस्पिटल में आईसीयू के नर्सिंग इंचार्ज राममूर्ति मीणा।

जोशः थकान का नाम नहीं; मेडिकल इंटर्न हैं, 16-16 घंटे मरीजों की निगरानी में जुटे हैं

कोरोना संकट के बीच देश के कई शहर हाई रिस्क कैटेगरी में हैं, इसमें ग्वालियर भी है। यहां अफसरों के साथ डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा मेडिकल इंटर्न भी लगाए गए हैं। सभी 16-16 घंटे ड्यूटी कर रहे हैं। मेडिकल इंटर्न डॉ. राहुल सिंह राजपूत भी इनमें से एक हैं। उनकी ड्यूटी एक पुलिस छावनी में है, जहां उन लोगों की स्क्रीनिंग की जा रही है जो ग्वालियर के रहने वाले हैं और बाहर से आए हैं। राहुल बताते हैं, वे चार दिन से लगातार काम कर रहे हैं। हर दिन औसतन 30 से 40 लोगों को क्वारेंटाइन कराना और उनकी निगरानी होती है। स्क्रीनिंग के बाद उन्हें 14 दिन के लिए क्वारेंटाइन सेंटर में भेजा जा रहा है। मेरा घर ग्वालियर में ही है, लेकिन फिलहाल हमें एक होटल के अलग-अलग कमरों में ही ठहराया गया है। लगातार काम के बाद भी थकान नहीं लगती, बल्कि ऊर्जावान महसूस करता हूं।

मेडिकल इंटर्न डॉ. राहुल सिंह राजपूत



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