कोरोना कहर के बीच देशभर में कई लोग मदद के लिए आगे आए हैं। कोई जरूरतमंदों को ऑक्सीजन पहुंचा रहा है तो कोई अस्पतालों में बेड उपलब्ध करवा रहा है। कई लोग ऐसे भी हैं जो इस आपदा में मरीजों और उनके परिजनों की भूख मिटा रहे हैं। वे अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें लगातार खाना पहुंचा रहे हैं। आज की पॉजिटिव खबर में ऐसी ही दो कहानियों का हम जिक्र कर रहे हैं...
जम्मू की रहने वाली पूजा गंडोत्रा पिछले कुछ सालों से रेस्टोरेंट चला रही हैं। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच जब प्रशासन ने रेस्टोरेंट खोलने का वक्त तय कर दिया और ग्राहकों की संख्या घटने लगी तो पूजा ने अपना रेस्टोरेंट बंद कर दिया। इसी दौरान पूजा ने मीडिया में देखा कि जम्मू में कोरोना के चलते कई लोग भूखे-प्यासे तड़प रहे हैं। उन्हें खाना नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने सोचा कि इस मुश्किल हालात में लोगों की मदद करनी चाहिए। इसके बाद उन्होंने घर से खाना बनाकर कोरोना संक्रमितों, उनके परिजनों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को देना शुरू कर दिया। अभी वे हर दिन 30 से ज्यादा मरीजों को मुफ्त खाना पहुंचा रही हैं।
पूजा रोज सुबह 6.30 बजे जाग जाती हैं और खाने बनाने की तैयारी में जुट जाती हैं। वे दोपहर और शाम को खाना देती हैं।
पूजा कहती हैं कि जब कोरोना का संक्रमण बढ़ने लगा तो मुझे जानकारी मिली कि कई ऐसे परिवार हैं, जिसमें घर की मुख्य महिला ही संक्रमित हो गई है। कई परिवारों में बुज़ुर्ग दंपती हैं और सक्रमण से ग्रसित हैं। ये लोग खुद से खाना नहीं बना पा रहे हैं। इन्हें एक वक्त के खाने के लिए भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है। ऐसे में अगर मैं इनकी मदद न करूं तो ठीक नहीं होगा। फिर मैंने अपने पति से इस बारे में चर्चा की और ये काम शुरू कर दिया।
सोशल मीडिया से शुरू की मुहिम
पूजा बताती हैं कि शुरुआत में हमने सोशल मीडिया की मदद ली। हम अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर इसको लेकर पोस्ट करने लगे। इससे एक के बाद एक लोगों की संख्या बढ़ती गई। इसके बाद कुछ लोकल मीडिया ने भी हमारे बारे में जानकारी शेयर की। इससे दूसरे लोगों को भी हमारी मुहिम के बारे में पता लगा। अभी कई लोग फोन करके भी खाना मंगा रहे हैं। वे बताती हैं कि अभी 30 से ज्यादा मरीजों को हम रोज खाना पहुंचा रहे हैं। इसके साथ ही कई फ्रंटलाइन वर्कर्स को भी हम भोजन उपलब्ध करा रहे हैं।
डॉक्टरों से चर्चा के बाद तैयार किया मेन्यू
पूजा ने डॉक्टरों से चर्चा के बाद अपना मेन्यू तैयार किया है। वे दाल-चावल, रोटी-सब्जी के साथ सलाद भी लोगों को पैक करके देती हैं।
पूजा कहती हैं कि आम लोगों को क्या खाना चाहिए ये तो हमें पता था, लेकिन कोरोना संक्रमित लोगों को किस तरह खाने का ध्यान रखना चाहिए और उन्हें क्या खाना चाहिए, इसकी जानकारी के लिए हमने कुछ डॉक्टरों से बात की। इसके बाद खाने का एक मेन्यू तैयार किया। हम चावल, दो सादी रोटी, एक दाल, एक सब्ज़ी, थोड़ा ग्रीन सलाद खाने में दे रहे हैं| हम इसे एक पैकेट में भरकर कोरोना संक्रमित मरीजों के घर डिलीवरी करते हैं।
इस मुहिम से पूजा की डेली रूटीन भी बदल गई है। वे कहती हैं कि जब रेस्टोरेंट था तो लेट उठती थी, लेकिन अब रोज सुबह 6:30 बजे उठ जाती हूं और अपने काम में लग जाती हूं। सबसे पहले मार्केट से सब्जी और राशन के सामान लाती हूं। फिर खाना बनाने का काम शुरू करती हूं। सुबह का खाना हम लोग 11 बजे तक तैयार कर देते हैं। इसके बाद इसकी पैकिंग और डिलीवरी का काम करते हैं। इसके बाद फिर शाम में चार बजे से रात के भोजन की तैयारी में लग जाती हूं। इस तरह रात के 10 बजे तक काम चलता रहता है, उसके बाद ही फ्री होती हूं।
पूजा बताती हैं कि उनके इस काम में परिवार का भी काफी सपोर्ट मिल रहा है। उनके पति, मेड और उनके ड्राइवर इस मुहिम में उनका भरपूर साथ दे रहे हैं। वे कहती हैं कि हमें किसी से पैसे नहीं चाहिए। हां अगर कुछ लोग राशन के लिए मदद का हाथ बढ़ाते हैं तो इस मुहिम को लंबा ले जाने में मदद मिलेगी।
बुजुर्गों को वैक्सीन और दवाइयां दिलाने में कर रहे हेल्प
सुनीता संतोषी बताती हैं कि हमारे टीम के लोग हर दिन 20 से 30 बुजुर्गों की हेल्प कर रहे हैं। वे उन्हें दवाइयां भेजने और इलाज करवाने में मदद कर रहे हैं।
जम्मू की ही हेल्पेज इण्डिया नाम के एक समूह के लोग कोरोनाकाल में लोगों की मदद कर रहे हैं। खास करके बुजुर्गों की। ये लोग उन्हें वैक्सीन लगवाने और उनका इलाज करवाने में मदद कर रहे हैं। साथ ही दवाइयां और बाकी जरूरत की चीजें पहुंचाने में भी हेल्प कर रहे हैं। टीम की मैनेजर सुनीता संतोषी बताती हैं। हम लोग तीन सदस्य ही हैं, लेकिन ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद करने की कोशिश करते हैं। अभी कई ऐसे बुजुर्ग हमें फोन करते हैं जो असहाय होते हैं, वे खुद के बल पर वैक्सीन लगवाने नहीं जा पा रहे हैं, उन्हें दवाइयां नहीं मिल पा रहीं। ऐसे में हम उनकी मदद कर रहे हैं।
वे कहती हैं कि हर रोज अभी 20 से 30 बुजुर्गों की हेल्प हम कर रहे हैं। जो बुजुर्ग घर से बाहर नहीं आ सकते उन्हें हम उनके घर ही दवाइयां उपलब्ध करा रहे हैं।