नई दिल्ली। कोरोना के चलते आने वाली बुरी खबरों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। निराशा से भरे इस माहौल में कुछ मददगार ऐसे भी हैं, जो अपनी कोशिशों से लोगों की मदद कर उनकी मुश्किलें आसान कर रहे हैं।
'दो-तीन दिन पहले की बात है, एक लड़की मेरे पास आई और कहा, पापा का अंतिम संस्कार करना है। मैंने कहा, शव कहां से लाना होगा। बोली डेड बॉडी कार में ही है... दो दिन से मैं और मेरा भाई पापा को कार में लेकर अस्पताल में भर्ती करने के लिए घूम रहे थे, पर कहीं बेड नहीं मिला। वो मर गए। मैंने पूछा कहां रहते हो? बोले सूर्य नगर, विवेक विहार, दिल्ली।'
इतना कहकर जितेंद्र सिंह शंटी फूट-फूटकर रोने लगते हैं। शंटी पिछले 25 सालों से लावारिस और जरूरतमंद परिवार के मृतकों के अंतिम संस्कार करा रहे हैं। फिलहाल, कोरोना संकट में वे कोरोना से मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार में जुटे हैं। किसी की डेड बॉडी के साथ परिजन नहीं होते हैं तो किसी के घरवालों के पास अपनों को खो देने के बाद अंतिम संस्कार की सामग्री जुटाने भर की हिम्मत नहीं बचती, लेकिन शंटी भरसक कोशिश करते हैं कि परिजन महामारी से मारे गए लोगों को एक मर्यादित अंतिम विदाई दे सकें।
दिल्ली के सीमापुरी स्थित श्मशान में 21 अप्रैल तक औसतन 70 लाशें आ रही थीं, लेकिन 24 अप्रैल तक यह आंकड़ा 120 से ऊपर निकल चुका है।
'शर्म नहीं आती है इन सरकारी लोगों को'
हमसे बातचीत में दुख और गुस्से से भरे जितेंद्र सिंह शंटी की आवाज भर्राने लगती है, लेकिन वे बोलते जाते हैं, 'शर्म नहीं आती इन सरकारी लोगों को, ये लोगों को ऑक्सीजन नहीं दे पा रहे। इलाज नहीं कर पा रहे। मेरी छाती फटने लगी है अब, यहां लाशों का अंबार लग रहा है। हालात नहीं बदले तो एक दो दिन में सीमापुरी का यह श्मशान छोटा पड़ने लगेगा।'
यह सभी अंतिम संस्कार सीमापुरी स्थित श्मशान घाट में शहीद भगत सिंह सेवा दल नाम की संस्था के तहत किए जा रहे हैं। जितेंद्र सिंह शंटी ने 1996 में यह संस्था शुरू की थी। शंटी 1996 से लावारिस लाशों का विधिवत अंतिम संस्कार करवाते रहे हैं। किसी गरीब परिवार को भी अगर अंतिम संस्कार में कुछ परेशानी आती है तो वे बिना किसी जाति-धर्म के भेदभाव के उसकी मदद करते हैं।
कोरोना संक्रिमतों के अंतिम संस्कार में मदद करवाने वाले शंटी बताते हैं कि मृतकों की अंतिम यात्रा के साथ दो-चार लोग ही होते हैं। कई बार तो कांधा देने के लिए भी चार लोग नहीं मिलते हैं।
शंटी कहते हैं कि 'इतना भयावह मंजर कभी नहीं देखा। कैसा वक्त आ गया है। लोग अपनों के शवों को कोरोना के डर से नहीं छू रहे हैं। लाशों को चार कांधे भी नसीब नहीं हो रहे हैं। एक दिन में ही बाप-बेटे का शव अंतिम संस्कार के लिए आ रहा है।' शंटी कहते हैं कि मैं मजबूत कलेजे वाला आदमी हूं, लेकिन मौजूदा हालात ने मुझे भी हिला कर रख दिया है। वे आंसू पोंछते हैं और फिर आ रही लाशों का अंतिम संस्कार करवाने के बंदोबस्त में जुट जाते हैं।
तेजी से बढ़ रही लाशों की संख्या
शंटी के मुताबिक, 'दाह संस्कार के लिए आने वाले शवों का यह आंकड़ा 21 तारीख तक रोजाना 70 के करीब था। 23 अप्रैल को 93 शवों का अंतिम संस्कार किया गया था। लेकिन एक ही दिन के अंतर में यह आंकड़ा बढ़कर 120 पार कर गया। 24 अप्रैल को जिन लोगों का अंतिम संस्कार हुआ उनमें से महज 10 ही शव ऐसे थे, जो कोरोना संक्रमण की वजह से नहीं मरे थे, बाकी सभी लाशें कोरोना संक्रमितों की थीं। आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। हालात यह हैं कि अब श्मशान घाट के पार्क में भी चिताएं जलानी पड़ रही हैं। अगर आगे हालात नहीं सुधरे तो सड़क पर भी अंतिम संस्कार करना पड़ेगा।'
कोरोना संक्रमितों के अंतिम संस्कार में जुटे जितेंद्र सिंह शंटी बताते हैं कि श्मशान के साथ-साथ अब कब्रिस्तान में भी लोगों को दफनाने की जगह नहीं बची है।
कब्रिस्तानों में भी कम पड़ रही जगह
शंटी कहते हैं कि 'हमारी संस्था के पास हर धर्म के लोग आ रहे हैं। उनके परिजनों का अंतिम संस्कार उनके रीति रिवाज के मुताबिक होता है। ईसाइयों के लिए बुराड़ी और पहाड़गंज में कब्रिस्तान है, लेकिन वहां जगह कम पड़ रही है तो अब इनके शवों को पहले जलाया जा रहा है, उसके बाद उनकी राख को चर्च और मस्जिद में ले जाकर जरूरी रस्में कर दफनाया जा रहा है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में अब तक संस्था 11 ईसाइयों और 63 मुसलमान मृतकों का अंतिम संस्कार करवा चुकी है, लेकिन अब उनके अंतिम संस्कार भी चिता जलाकर करने पड़ रहे हैं। हां, उनकी राख को जरूर दफना दिया जा रहा है।'