आज भगवान महावीर की जयंती है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के सिद्धांतों को 'जियो और जीने दो' का आधार माना जाता है। वर्तमान समय में महावीर के विचारों पर नई रोशनी डाल रहे हैं तीन विख्यात जैनाचार्य। आचार्य विद्यासागर महाराज, आचार्य पुष्पदंत सागर महाराज और आचार्य महाश्रमण महाराज ने संयम, दान और अहिंसा को व्यावहारिक तौर पर समझाया है..
संयम: सीमित आहार ही औषधि
आचार्य विद्यासागर महाराज का कहना है कि कोरोना ने सबको संयम का पाठ पढ़ा दिया।
आचार्य विद्यासागर महाराज कहते हैं कि जैसे छाेटी-सी अगरबत्ती से पूरा कमरा सुवासित हाे जाता है, उसी प्रकार स्वयं जलकर भी दूसरों काे सुख शांति, आनंद प्रदान करना चाहिए। असंयमी हाेकर भटके लोगों को काेराेना ने संयम का पाठ पढ़ा दिया। राेग हाे और उसकी चिकित्सा न हाे ऐसा हमारे आयुर्वेद में है ही नहीं। भारत में आहार ही औषधि है, जाे शक्तिप्रद, वीर्यप्रद और बुद्धि के विकास में सहायक है। अब हमें अपने भीतर की संवेदना और संयम को जगाने की आवश्यकता है। भारत भगवान महावीर स्वामी के इस सिद्धांत काे अपनाकर पूरे देश ही नहीं, विश्व काे काेराेना महामारी से बचाना चाहता है।
दान: मदद ही सबसे बड़ा दान
गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज कहते हैं कि सक्षम लोग जरूरतमंदों की मदद के लिए दान करें।
गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज कहते हैं कि यह संकट का समय है। जब भगवान महावीर के समय महामारी का प्रकाेप फैला था, ताे लाेग उनसे मदद मांगने पहुंचे। उन्होंने अपना विहार उस गांव में किया जहां प्रकोप था। उनकी आभा से महामारी का प्रकाेप खत्म हाे गया। अब देश के जितने संत हैं, सक्षम लाेग हैं, वे लोगों को संकट से बचाने के लिए दान करें, आर्थिक सहयाेग करें। जहां जैसी जरूरत हाे, वहां उन्हें मदद करना चाहिए। हमें लोगों को मास्क और प्राेटाेकाॅल के पालन के लिए प्रेरित करना है। जाे जहां है, जिस स्तर पर है, जैसी भी मदद कर सकता है वह करे।
अहिंसा: वाणी में भी हिंसा न हो
आचार्य महाश्रमण महाराज इन दिनों पूरे देश में अहिंसा यात्रा पर हैं।
आचार्य महाश्रमण महाराज का कहना है कि महावीर का अहिंसा सिद्धांत सभी के लिए फायदेमंद है। कल, आज और कल अहिंसा हर काल के लिए फायदेमंद है। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति अहिंसा के तीन प्रमुख अंग हैं। जाति, धर्म, पंथ, विचार, भाषा के अनुसार दुनिया में विविधता है। इस विविधता में भी मित्रता, सद्भावना होनी चाहिए। यह अहिंसा है। संयम हमारे भोजन, वस्त्र, मन, वाणी और इंद्रियों में होना चाहिए। बेवजह निंदा करने, बुरा बोलने, असत्य बोलने, चुगली करने और किसी की बदनामी करने से बचना चाहिए।