गुजरात। दृढ़ इच्छा शक्ति और सकारात्मक सोच हो तो कोरोना से भी जंग जीती जा सकती है। यह साबित किया है कि सूरत की 105 साल की ऊजीबा गोंडलिया ने। खुद के कोरोना पॉजिटिव होने पर वह घबराई नहीं, बल्कि परिजनों का हौंसला बंधाया। जब उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया तो ऊजीबा ने डॉक्टर से कहा कि बेटा, कोरोना मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है... मुझे कुछ नहीं होगा, देखना जल्दी ठीक होकर घर जाऊंगी।
अपने इसी जज्बे से कोरोना को हरा कर ऊजीबा अपने घर आ गईं। परिजनों ने गर्म जोशी से उनका स्वागत किया। जिदंगी का शतक पार कर चुकी ऊजीबा उन लोगों के लिए मिसाल हैं, जो कोरोना पॉजिटिव हैं और इलाज ले रहे हैं। मूलत: राजकोट जिले के गोंडल तहसील के सुलतानपुर गांव और सूरत के सचिन में क्षेत्र निवासी 105 वर्षीय ऊजीबा 19 सदस्यीय संयुक्त परिवार में रहती हैं।
हॉस्पिटल स्टाफ भी प्रभावित
ऊजीबा स्वतंत्रता आंदोलन सहित कई ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी रही हैं। समर्पण अस्पताल के डॉक्टर भी उनका उत्साह देखकर आश्चर्यचकित हो गए। मात्र 9 दिन के उपचार के बाद उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई। उनके ऊंचे मनोबल के सामने कोरोना हार गया। ऊजीबा के मनोबल से अस्पताल का स्टाफ भी प्रभावित है।
बुढ़ापे में भी अपना काम खुद करना पसंद
ऊजीबा के बेटे गोविंद गोंडलिया ने बताया कि मां ने खेतों में खूब मेहनत की है। खेतों में हल चलाया और बैलगाड़ी खींची। कड़कड़ाती ठंड में भी वह मेहनत करने से पीछे नहीं हटती थीं। आज भी वह अपना ज्यादातर काम खुद ही करती हैं। उनकी श्रवण शक्ति आज भी कायम है। देशी खुराक और मेहनत के कारण दवाखाने नहीं ले जाना पड़ता है। मेरी मौसी 101 साल, दो मामा 108 और 103 साल जिए। 97 साल की आयु में गिरने से मां की कमर की हड्डी टूट गई थी। ऑपरेशन के जरिए स्टील का गोला डाला गया था।
डॉक्टर भी मुरीद बन गए
दादी का उपचार करने वाले डॉ. अनिल कोटडिया ने बताया कि ऊजीबा को 11 अप्रैल को रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर भर्ती किया गया था। बुखार, सर्दी और कमजोरी थी। तीन दिन में ही उनकी हालत में सुधार दिखने लगा। वह हंसते हुए हमेशा कहती थीं, “बेटा, कोरोना मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।” उनकी रिकवरी देखकर मैं कह सकता हूं कि कोरोना के डर से दूर और तनावमुक्त होकर उपचार लिया जाए, तो कई गुना फायदा होता है।