कोई कोरोना वॉरियर्स को दे रहा फ्री में टिफिन, कोई स्पाइडरमैन बन शहर सैनिटाइज कर रहा, तो कहीं मस्जिद से हो रही ऑक्सीजन सप्लाई

Posted By: Himmat Jaithwar
4/24/2021

मुम्बई। बढ़ते कोरोना संक्रमण से पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है। मीडिया में भी ज्यादातर निगेटिव खबरें हैं, लेकिन इस मुश्किल घड़ी में भी कई ऐसे लोग हैं जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद कर रहे हैं। दैनिक भास्कर ऐसे ही कुछ रियल कोरोना वारियर्स की कहानी आपके सामने लेकर आया है। तो शुरुआत महाराष्ट्र से...

पुणे की 'स्कॉटिश लड़की' 1500 लोगों तक पहुंचा चुकी है टिफिन
इनमें से एक हैं 22 साल तक स्कॉटलैंड में रहीं पुणे की आकांक्षा सादेकर। दोस्त उन्हें 'स्कॉटिश लड़की' बुलाते हैं। वे 5 अप्रैल से फ्रंटलाइन पर काम कर रहे डॉक्टर्स, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों तक अपने हाथ से बना खाना पहुंचाने का काम कर रही हैं। अब तक वे 1500 से ज्यादा टिफिन की सप्लाई कर चुकी हैं। इस काम में उनकी मदद सिर्फ उनकी मेड करती है।

आकांक्षा पुणे में अपने परिवार का बिजनेस देख रही हैं और इस काम में उनके दिन के 8 घंटे चले जाते हैं। इसी के साथ वे अपनी मेड के साथ मिलकर फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए टिफिन तैयार करती हैं।
आकांक्षा पुणे में अपने परिवार का बिजनेस देख रही हैं और इस काम में उनके दिन के 8 घंटे चले जाते हैं। इसी के साथ वे अपनी मेड के साथ मिलकर फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए टिफिन तैयार करती हैं।

आकांक्षा बताती हैं कि संक्रमण के बढ़ते खतरे के बाद हॉस्पिटल्स में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों का काम बढ़ गया है। दिन भर मरीजों की सेवा के बाद कई ऐसे लोग थे, जिनके लिए घर जाकर खुद के लिए खाना बनाना मुश्किल हो रहा था। उनकी परेशानी को कम करने के लिए ही आकांक्षा ने यह टिफिन पहुंचाने का काम शुरू किया।

आकांक्षा हर दिन इसी तरह के टिफिन में खाना पैककर कोरोना से लड़ रहे फ्रंटलाइन वर्कर्स तक खाना पहुंचाती हैं।
आकांक्षा हर दिन इसी तरह के टिफिन में खाना पैककर कोरोना से लड़ रहे फ्रंटलाइन वर्कर्स तक खाना पहुंचाती हैं।

लगातार बढ़ रही है लोगों की संख्या
अपनी फैमिली का बिजनेस संभाल रही आकांक्षा बताती हैं कि वे स्वास्थ्यकर्मियों के साथ सड़कों पर रहने वाले भूखे-बेघर लोगों तक भी खाना पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं। जरूरतमंद उनके ट्विटर हैंडल @scottishladki पर अपना नाम और डिटेल डालते हैं और अगले दिन उन्हें टिफिन मिलने लगता है। आकांक्षा कहती हैं कि लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन उनका प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक मदद पहुंचे।

180 किलोमीटर स्कूटी चला कर मरीजों की सेवा करने पहुंची नागपुर की यह डॉक्टर
मध्य प्रदेश के बालाघाट की रहने वाली डॉ. प्रज्ञा घरड़े नागपुर के एक कोविड सेंटर में RMO के पद पर तैनात हैं। कुछ दिनों पहले वे नागपुर से 180 किलोमीटर दूर स्थित अपने घर छुट्टियां मनाने गईं थीं। लेकिन अचानक शहर में संक्रमण के मामलों में वृद्धि हो गई। प्रज्ञाा को जैसे ही इसकी जानकारी मिली, वे अपनी छुट्टी बीच में छोड़ अपनी स्कूटी से 180 किलोमीटर का सफर तय कर नागपुर पहुंचीं और ड्यूटी ज्वॉइन की।

नागपुर के एक कोविड सेंटर में तैनात डॉक्टर प्रज्ञा छुट्‌टी पर गई थीं। लेकिन जैसे ही उन्हें केसेज बढ़ने की खबर मिली तो वे स्कूटी से लौट पड़ीं और ड्यूटी ज्वॉइन की।
नागपुर के एक कोविड सेंटर में तैनात डॉक्टर प्रज्ञा छुट्‌टी पर गई थीं। लेकिन जैसे ही उन्हें केसेज बढ़ने की खबर मिली तो वे स्कूटी से लौट पड़ीं और ड्यूटी ज्वॉइन की।

प्रज्ञा बताती हैं कि नक्सल प्रभावित इलाका होने के चलते उनके परिवार के लोग उन्हें इतना लंबा सफर करने से रोक रहे थे, लेकिन उन्हें सिर्फ हॉस्पिटल के मरीज नजर आ रहे थे। वे दिन में 12 से 14 घंटे PPE किट पहन कर मरीजों की सेवा कर रही हैं।

स्पाइडरमैन मुंबई के बस स्टॉप को कर रहा सैनिटाइज
मुंबई के सोशल वर्कर और सायन फ्रेंड सर्किल फाउंडेशन के प्रेसिडेंट अशोक कुर्मी इन दिनों मुंबई की सड़कों पर स्पाइडरमैन के गेटअप में घूमते हुए नजर आ रहे हैं। अशोक की पीठ पर एक सैनिटाइजेशन किट बंधी रहती है और यह स्पाइडरमैन मुंबई के अलग-अलग इलाकों में घूम कर बस स्टैंड और बसों को सैनिटाइज्ड करने का काम करता रहता है। अशोक का कहना है कि आमतौर पर यहां सबसे ज्यादा भीड़ आती है और लोगों का ध्यान भी इनकी ओर नहीं जाता है।

अशोक स्पाइडरमैन की ड्रेस पहन हर दिन इसी तरह मुंबई के बस स्टॉपों को सैनिटाइज करने का काम करते हैं। उनका कहना है कि स्पाइडरमैन की ड्रेस में होने की वजह से लोग उनकी बातों को ध्यान से सुनते हैं और याद रखते हैं।
अशोक स्पाइडरमैन की ड्रेस पहन हर दिन इसी तरह मुंबई के बस स्टॉपों को सैनिटाइज करने का काम करते हैं। उनका कहना है कि स्पाइडरमैन की ड्रेस में होने की वजह से लोग उनकी बातों को ध्यान से सुनते हैं और याद रखते हैं।

सैनिटाइजेशन के साथ वे लोगों को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के लिए अवेयर करने का भी काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यह काम सामान्य कपड़ों में भी हो सकता था, लेकिन लोग उनकी बात को याद रखें इसलिए वे स्पाइडरमैन के गेटअप में रहते हैं।

मुंबई में एक एम्बुलेंस को सैनिटाइज़्ड करते स्पाइडरमैन अशोक।
मुंबई में एक एम्बुलेंस को सैनिटाइज़्ड करते स्पाइडरमैन अशोक।

मुंबई की एक मस्जिद, फ्री में लोगों तक पहुंचा रही ऑक्सीजन
मुंबई के कुंभारवाड़ा इलाके में स्थित फूल मस्जिद में ऑक्सीजन सिलेंडर का एक बड़ा स्टॉक रखा गया है। मस्जिद से हर दिन सैंकड़ों घरों तक ऑक्सीजन सप्लाई का काम किया जा रहा है। यहां के मौलाना सरफराज मंसूरी बताते हैं कि मुंबई में हॉस्पिटल में एडमिट होने से पहले ही ऑक्सीजन की कमी से हर दिन कई लोगों की मौत हो रही थी। लोगों को प्राइमरी मदद पहुंचाने के लिए पिछले साल से वे इस सर्विस को फ्री में चला रहे हैं।

मुंबई के कुंभारवाड़ा इलाके की फूल मस्जिद से वॉलंटियर हर दिन 100 घरों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
मुंबई के कुंभारवाड़ा इलाके की फूल मस्जिद से वॉलंटियर हर दिन 100 घरों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

हर दिन 100 से ज्यादा लोगों के घरों तक उनके लोग फ्री में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इस दौरान वे मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखते हैं। मस्जिद ने लोगों की मदद के लिए धर्म की कोई बाधा नहीं रखी है। मंसूरी कहते हैं कि उनका उद्देश्य इंसानियत को बचाने का है, कोई भी धर्म सबसे पहले यही सिखाता है।

मुंबई के कुंभारवाड़ा मस्जिद के वॉलंटियर्स ही इन्हें लोगों को इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग देते हैं।
मुंबई के कुंभारवाड़ा मस्जिद के वॉलंटियर्स ही इन्हें लोगों को इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग देते हैं।

बेटे की मौत पर रिश्तेदारों ने दूरी बनाई, मुस्लिम परिवारों ने अंतिम संस्कार कराया।

मंगलवार को औरंगाबाद के सिटी चौक सर्राफा इलाके में रहने वाले दलाल घोड़ाई के दिव्यांग बेटे सुबोध की मौत हो गई थी। उसके निधन के बाद संक्रमण की वजह से जहां एक ओर उनके करीबी रिश्तेदारों ने उनसे दूरी बनाई, वहीं दूसरी ओर उनके पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम परिवार एकजुट हुए और रमजान के बावजूद सबने कांधे पर अर्थी ले जाकर श्मशान में पूरे रीतिरिवाजों से उसका अंतिम संस्कार किया।

दलाल घोड़ाई के दिव्यांग बेटे सुबोध की मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए शव ले जाते उनके पड़ोसी मुस्लिम परिवार।
दलाल घोड़ाई के दिव्यांग बेटे सुबोध की मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए शव ले जाते उनके पड़ोसी मुस्लिम परिवार।
यह तस्वीर सुबोध के अंतिम संस्कार के समय की है।
यह तस्वीर सुबोध के अंतिम संस्कार के समय की है।



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